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न बहुत जल्दी न बहुत लेट.... बच्चे से शारीरिक बदलावों के बारे में बात करने की ये है सही उम्र

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 26 Apr, 2025 05:12 PM
न बहुत जल्दी न बहुत लेट.... बच्चे से शारीरिक बदलावों के बारे में बात करने की ये है सही उम्र

नारी डेस्क: हाल ही के एक अध्ययन में कहा गया कि बच्चों के साथ यौवन के बारे में बात करना शुरू करने की सही उम्र पर माता-पिता में समान रूप से मतभेद हैं। साथ ही, अधिकांश माता-पिता इस बात पर सहमत हैं कि अपने बच्चों से यौवन के बारे में बात करना महत्वपूर्ण है, लेकिन बातचीत कब और कैसे शुरू की जाए, यह अक्सर कम स्पष्ट होता है। चलिए जानते हैं कि  बच्चों से उनके शरीर में होने वाले बदलावों (जैसे प्यूबर्टी, हार्मोनल बदलाव आदि) के बारे में बात करने की सही उम्र आखिर क्या है। 
 

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6 से 8 साल की उम्र

इस उम्र में बच्चों कोशरीर के अंगों के सही नाम, उनकी सामान्य कार्यप्रणाली और शरीर की निजता (privacy) के बारे में सिखाना शुरू कर देना चाहिए। उन्हें समझाएं कि उनका शरीर उनका अपना है और कोई भी बिना उनकी अनुमति के उन्हें छू नहीं सकता। 9 से 12 साल की उम्र के बच्चोंको  आपको प्यूबर्टी (Puberty) के बारे में खुलकर बातचीत करनी चाहिए। लड़कों और लड़कियों दोनों को शरीर में आने वाले बदलावों जैसे कि:लड़कियों में पीरियड्स (Periods) की शुरुआत, लड़कों में आवाज का भारी होना, शरीर पर बाल आना, हार्मोनल बदलाव और भावनात्मक उतार-चढ़ाव  के बारे में साफ, सरल और सच्ची जानकारी  देनी चाहिए।
 

13 साल और उससे ऊपर (टीनेजर्स)

 इस उम्र में बच्चे ज्यादा सवाल करते हैं, इसलिए उन्हें यौन स्वास्थ्य (sexual health),सेफ्टी, हॉर्मोन से जुड़ी भावनात्मक समस्याएं औरसही फैसले लेने की क्षमता के बारे में गाइड करें। उन्हें शरीर के प्रति आत्म-सम्मान और दूसरों के शरीर के प्रति सम्मान का भी पाठ पढ़ाएं।
 

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बच्चों से बातचीत करते समय ध्यान देने वाली बातें

- खुले और ईमानदार तरीके से बात करें, कोई शर्म या डर न दिखाएं।
- बच्चों के सवालों को नजरअंदाज न करें, चाहे वो आपको कितने भी अजीब क्यों न लगें।
- उम्र के अनुसार जानकारी दें,  न तो बहुत ज्यादा जल्दी, न ही बहुत ज्यादा देर करें।
- सही शब्दावली  का प्रयोग करें, ताकि बच्चों को सही जानकारी मिले।
- बच्चों को शरीर की स्वच्छता (hygiene) के महत्व के बारे में भी सिखाएं।


नोट: बच्चों से सही समय पर और सही तरीके से की गई बातचीत उन्हें आत्मविश्वास, सुरक्षा और समझदारी के साथ बड़े होने में मदद करती है। बच्चों के साथ शुरुआती संवाद जितना सहज होगा, आगे चलकर वो आपसे अपने सवाल और समस्याएं उतनी ही आसानी से शेयर कर पाएंगे।

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