उच्चतम न्यायालय ने देशभर में हाथ से मैला उठाने (मैनुअल स्केवेजिंग) की प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने का निर्देश केंद्र और राज्य सरकारों को देते हुए कहा कि इस प्रथा से जुड़े लोग लंबे समय से ‘बंधुआ' बनकर रह रहे हैं और वे व्यवस्थित रूप से अमानवीय परिस्थितियों में फंसे हुए हैं। शीर्ष अदालत ने हाथ से मैला उठाने का काम करने वाले लोगों के लाभ के लिए कई दिशानिर्देश पारित करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से सीवर की सफाई के दौरान मरने वालों के परिजनों को मुआवजे के रूप में 30 लाख रुपये देने को कहा।
चोट लगने पर 10 लाख रुपये का मुआवजा
न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने हाथ से मैला साफ करने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा- ‘‘हमारी लड़ाई सत्ता की ताकत के लिए नहीं है। यह आजादी की लड़ाई है। यह मानव व्यक्तित्व को पुनः प्राप्त करने की लड़ाई है।'' न्यायमूर्ति भट ने इस दौरान बाबा साहेब बी. आर. आंबेडकर को उद्धृत किया। पीठ ने कहा कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी दिव्यांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा और किसी अन्य प्रकार की चोट के लिए उसे 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा।
कोर्ट ने जारी किए 14 दिशानिर्देश
पीठ ने निर्देश दिया कि सरकारी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करना चाहिए कि इस प्रथा का पूरी तरह उन्मूलन हो। पीठ ने ‘हाथ से मैला उठाने वालों के रोजगार पर प्रतिबंध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013' के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को 14 दिशानिर्देश जारी किए। पीठ की ओर से न्यायमूर्ति भट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अधिकारियों को पीड़ितों और उनके परिवारों के पुनर्वास के लिए उपाय करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पीड़ितों के परिजनों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाए और कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाए। न्यायमूर्ति भट ने कहा- ‘‘यदि आपको वास्तव में सभी मामलों में समान होना है, तो संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 15(2) जैसे मुक्तिदायक प्रावधानों को लागू करके समाज के सभी वर्गों को जो प्रतिबद्धता दी है..., हममें से प्रत्येक को अपने वादे पर खरा उतरना होगा।
हाथ से मैला साफ करने की प्रथा को खत्म करने पर जोर
केंद्र और राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं कि हाथ से मैला साफ करने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो। संविधान के अनुच्छेद 15(2) में कहा गया है कि सरकार किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी।'' न्यायमूर्ति भट ने कहा कि "सच्चे भाईचारे" को साकार करना सभी का कर्तव्य है। उन्होंने कहा, ‘‘यह अकारण नहीं है कि हमारे संविधान में गरिमा और भाईचारे के मूल्य पर बहुत जोर दिया गया है। लेकिन इन दोनों के लिए, अन्य सभी स्वतंत्रताएं कल्पना हैं।
5 साल में सफाई के दौरान 347 लोगों की मौत
अपने गणतंत्र की उपलब्धियों पर गर्व करने वाले हम सभी को आज जागना होगा, ताकि वह अंधेरा छंट जाए।'' पीठ ने जनहित याचिका की आगे की सुनवाई के लिए एक फरवरी, 2024 की तारीख निर्धारित की है। जुलाई 2022 में लोकसभा में उद्धृत सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 40 प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुईं।