सुधा मूर्ति आज एक ऐसा नाम है, जिसे किसी पहचान की कोई जरूरत नहीं है। Infosys के फाउंडर एन आर नारायण मूर्ति की पत्नी होने से अलग उन्होंने एक समाज सेविका के तौर पर अपना नाम बनाया, वो खुद भी एक इंजीनियर हैं। हाल में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इस साल 74वें गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत सरकार ने पद्म पुस्कारों की घोषण की थी। इनमें 91 लोगों को पद्मश्री, 6 को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसमें सुधा मूर्ती का नाम भी शामिल था। बता दें वो इससे पहले भी पद्मश्री से भी सम्मानित की जा चुकी हैं। सुधा मूर्ति औद्योगिक जगत में एक काफी बड़ा और सम्मानित नाम है। वहीं ये बात तो आम हो गई है कि यूके के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक उनके दामाद हैं। एक समय पर नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10,000 रुपये लेकर इंफोसिस की नींव रखी थी। साधारण सी दिखने वाली सुधा मूर्ति के जीवन के कई किस्से काफी लोकप्रिय है। ये लोगों को बड़ी सीख देते हैं। आइए इनमें से कुछ पर नजर डालते हैं....
जब बेटे को सिखाया दूसरों की मदद करना
सुधा ने एक बार एक किस्से का जिक्र किया था। उन्होंने अपने बेटे से कहा कि वो अपने बर्थडे पर 50 हजार खर्च करने के बजाए एक छोटी पार्टी करके, बाकी के बच्चों की पढ़ाई के लिए देना चाहती हैं। इससे पता चलता है की सुधा मूर्ती का दिल कितना बड़ा है। उन्होंने अपने पति की भी Infosys जैसा बड़ा बिजनेस को शुरू करने में मदद की। अपने पति को उन्होंने 10,000 रुपये दिए थे, जिससे उन्होंने इंफोसिस की नींव रखी थी। सोशल वर्क, इंजीनियरिंग, लेखन और घर संभालने जैसे अलग-अलग भूमिकाओं को सुधा ने बहुत बखूबी निभाया है। सामाजिक क्षेत्र में अति विशिष्ट सेवा कार्यों के लिए सुधा को पद्म भूषण सम्मान से राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्म ने इस समारोह में नवाजा। इससे पहले साल 2006 में सुधा को पद्मश्री मिला था।
सलवार-कमीज के लिए सुनना पड़ा था ताना
सुधा मूर्ति को सादगी से जीवन जीना पसंद है। आज के समय में उनका दामाद ब्रिटेन का पीएम है। लेकिन कभी इसी ब्रिटेन में सुधा को सलवार-कमीज पहनने पर नस्लभेदी टिप्पणी सुननी पड़ी थी। मूर्ति से कहा गया था कि आपको इकॉनमी में खड़े होना चाहिए क्योंकि आप 'कैटल क्लास' से हैं। सुधा ने एक पॉडकास्ट के दौरान उस घटना के बारे में बताया था। लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर सुधा मूर्ति से यह बात कही गई थी। आज उसी देश के पीएम सुधा के दामाद हैं। सुधा मूर्ति ने बताया था, 'मैंने सलवार-कमीज पहना था और मैं लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर थी। तभी किसी ने कहा कि तुम्हें इकॉनमी क्लास में खड़े होना चाहिए, क्योंकि तुम कैटल क्लास से हो। उन्हें लगा कि मुझे इंग्लिश नहीं आती... आजकल लोग देखते हैं... आपने साड़ी पहनी है, सलवार-सूट पहना है और आप सिंपल दिख रहे हैं, कोई मेकअप नहीं है तो इसका मतलब है कि आप अनपढ़ हैं।'
सुधा मूर्ति ने ऐसे बनाई अपनी पहचान
1960 के साल में इंजीनियरिंग पूरी तरह से पुरुषों का वर्चस्व था। उस समय सुधा इंजीनियरिंग कॉलेज में 150 स्टूडेंट्स के बीच दाखिल पाने वाली पहली महिला थीं। सुधा के लिए इंजीनियर बनना आसान नहीं था, क्योंकि उनके समय का समाज आज से बहुत अलग था। तब महिलाएं कॉलेज नहीं जाती थीं और ना ही उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करें। सुधा ने जब पूणे में टेल्को में एक इंजीनियर के रुप में कार्यकत थीं, तब एनआर नारायण मूर्ति से शादी की थी।
सुधा हैं बैंगलोर विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर
सुधा बैंगलोर विश्वविद्यालय की विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं। वह क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रही थीं। आपको बता दें कि जब नारायण मूर्ति ने अपने घर को इंफोसिस का दफ्तर बना दिया तो सुधा ने Walchand group of Industries में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट के तौर पर कंपनी में काम शुरू किया,ताकि वह फाइनेंशियली मजबूत रह सकें। इसके साथ ही उन्होंने इंफोसिस में एक कुक, क्लर्क और प्रोग्रामर की भूमिकाएं भी निभाई। सुधा ने एक बेहतरीन इंजीनियर, टीचर, सोशल वर्कर, बेस्ट सेलिंग राइटर और मां की भूमिका निभाई और इन सभी भूमिकाओं के साथ उन्होंने न्याय करने का प्रयास किया। उनके संगठन ने अब तक 16000 से ज्यादा सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण भी कराया है।