दुर्गा पूजा का उत्सव शारदीय नवरात्रि में मनाया जाता है, जो इस साल हिंदू कैलेंडर के अनुसार, 24 अक्टूबर, 2020 को पड़ रही है। दुर्गा पूजा का शुभारंभ आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से होता है और दशमी पर समापन होता है। पश्चिम बंगाल में तो दुर्गा पूजा के लिए पंडाल लगने शुरू भी हो गए हैं। इसके अलावा बिहार, त्रिपुरा, ओड़िशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में सेलिब्रेट किया जाता है, जिसमें नवदुर्गा के स्वरुप के साथ माता लक्ष्मी, माता सरस्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की पूजा होती है। दुर्गा पूजा के प्रथम दिन मां की मूर्ति स्थापित की जाती है और 5वें दिन उनका विसर्जन किया जाता है।
दुर्गा पूजा 2020 की तिथियां
पहला दिन (21 अक्टूबर): मां दुर्गा को आमंत्रण एवं अधिवास, पंचमी तिथि
दूसरा दिन (22 अक्टूबर): नवपत्रिका पूजा, षष्ठी तिथि
तीसरा दिन (23 अक्टूबर): सप्तमी तिथि
चौथा दिन (24 अक्टूबर): दुर्गा अष्टमी, कन्या पूजा, सन्धि पूजा तथा महानवमी
पांचवा दिन (25 अक्टूबर): बंगाल महानवमी, दुर्गा बलिदान, नवमी हवन, विजयदशमी या दशहरा
छठा दिन (26 अक्टूबर): दुर्गा विसर्जन, बंगाल विजयदशमी, सिन्दूर उत्सव
दुर्गा पूजा का शुभ मूहूर्त
अष्टमी तिथि - शनिवार, 24 अक्टूबर 2020
अष्टमी तिथि प्रारंभ - 06:56 बजे (23 अक्टूबर 2020) से
अष्टमी तिथि समाप्त - 06:58 बजे (24 अक्टूबर 2020) तक
दुर्गा पूजा का महत्त्व
धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सांसारिक नजरिए से दुर्गा पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। पांच, सात या पूरे नौ दिन तक इस पर्व को लोग आस्था, परंपरा और विश्वास के साथ सेलिब्रेट कर सकते हैं। इस पर्व में लोग पंडाल सजाकर दुर्गा मां की पूजा करते हैं। हालांकि कुछ लोग अपने घर पर ही मां की मूर्ति स्थापित करके भी पूजा-अर्चना करते हैं।
दुर्गा बलिदान
नवरात्रि की नवमी तिथि में लोग पशु बलि से दुर्गा मां को प्रसन्न करते हैं। हालांकि समय के साथ उस परंपरा में काफी बदलाव आया है। अब लोग पशुओं की बजाए सब्जियों के साथ सांकेतिक बलि देते हैं।
सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव
जिस दिन मां दुर्गा को विदा किया जाता है यानी प्रतिमा विसर्जन के दिन बंगाल में सिंदूर खेला या सिंदूर उसत्व भी मनाया जाता है। इसमें सुहागन महिलाएं मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर अर्पित करती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। मान्यता है कि इससे मां दुर्गा सुहाग की आयु लंबी करती है। ऐसा भी कहा जाता है कि मां दुर्गा 9 दिनों तक मायके में रहने के बाद ससुरात जाती है इसलिए सिंदूर खेला उत्सव मनाया जाता है।
मान्यता है कि भगवान राम ने रावण का वध करने के लिए देवी दुर्गा की आराधना करके उनसे आशीर्वाद लिया था। दुर्गा पूजा के 10वें दिन ही भगवान राम ने रावण का वध किया, जिसके बाद से वह दिन विजयादशमी कहलाया जाने लगा।