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"बच्चे को सरनेम देने का अधिकार मां से नहीं छीन सकता कोई"

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 30 Jul, 2022 10:14 AM

"मां अगर दूसरी शादी करती है तो वो अपने बच्चों का सरनेम तय करने की हकदार है" ...यह कहना है उच्चतम न्यायालय ने। काेर्ट ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए कहा-  पिता के निधन के बाद दूसरी शादी करने वाली मां के पास अधिकार है कि वह अपने बच्चे का सरनेम तय करे। 

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

  • मां बच्चे के बायोलॉजिकल पिता की मौत के बाद उसकी इकलौती लीगल और नैचुरल गार्जियन होती है
  • वह पति की मौत के बाद अपने बच्चों का सरनेम तय करने की होती है हकदार 
  • अपने बच्चों को दूसरे पति का सरनेम दे सकती है मां
  • मां को नए परिवार में बच्चे को शामिल करने से रोका नहीं जा सकता 
  • सरनेम केवल वंश का संकेत नहीं है
  • मां अपने बच्चे को दूसरे पति को गोद लेने का अधिकार भी दे सकती है

उच्च न्यायालय के फैसले को बताया क्रूर

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में महिला को निर्देश दिया था कि वह दस्तावेजों में अपने दूसरे पति का नाम सौतेले पिता के रूप में दर्ज करे। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि दस्तावेजों में महिला के दूसरे पति का नाम ‘सौतेले पिता’ के रूप में शामिल करने का उच्च न्यायालय का निर्देश ‘लगभग क्रूर’ और इस तथ्य के प्रति नासमझी को दिखाता है कि यह बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान को कैसे प्रभावित करेगा।

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मां से नहीं छीन सकता कोई हक

न्यायालय ने कहा कि बच्चे की एकमात्र नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते मां को बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार है और उसे बच्चे को गोद लेने के लिए छोड़ने का भी अधिकार है। शीर्ष अदालत पहले पति की मृत्यु के बाद पुनर्विवाह करने वाली मां और बच्चे के मृत जैविक पिता के माता-पिता के बीच बच्चे के उपनाम से जुड़े एक मामले से सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि अपने पहले पति की मृत्यु के बाद बच्चे की एकमात्र नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते मां को अपने नये परिवार में बच्चे को शामिल करने और उपनाम तय करने से कानूनी रूप से कैसे रोका जा सकता है।

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बच्चे के लिए नाम बहुत महत्वपूर्ण

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक नाम महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक बच्चा इससे अपनी पहचान प्राप्त करता है और उसके नाम और परिवार के नाम में अंतर गोद लेने के तथ्य की निरंतर याद दिलाने के रूप में कार्य करेगा। ऐसे में बच्चे को अनावश्यक सवालों का सामना करना पड़ेगा, जो उसके माता-पिता के बीच एक सहज और प्राकृतिक संबंध में बाधा उत्पन्न करेंगे।
 

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