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Pollution से  गल तो नहीं गए फेफड़े? घर में करें ये Test, 2 मिनट में पता चलेगी lungs की हालत

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 09 Dec, 2025 06:19 PM
Pollution से  गल तो नहीं गए फेफड़े? घर में करें ये Test, 2 मिनट में पता चलेगी lungs की हालत

नारी डेस्क:  दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहरों में लगातार बढ़ते प्रदूषण और हाई-AQI वाले दिनों की वजह से फेफड़ों की सेहत पर असर पड़ना आम हो गया है। खासकर सर्दियों में हवा में धूल, धुआं और जहरीले कणों की मात्रा तेजी से बढ़ जाती है। स्मॉग की मोटी चादर दिनभर आसमान को ढक देती है और सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। कौन ज्यादा प्रभावित होता है बच्चों, बुजुर्गों और पहले से सांस की बीमारी वाले लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। प्रदूषण सिर्फ मौसम की समस्या नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर हेल्थ इमरजेंसी बन चुका है। इसलिए हर व्यक्ति को फेफड़ों की सुरक्षा और नियमित जांच पर ध्यान देना जरूरी है।

प्रदूषण में फेफड़ों की निगरानी क्यों जरूरी है?

डॉक्टर आभा महाशूर, चेस्ट स्पेशलिस्ट, लीलावती हॉस्पिटल, मुंबई के अनुसार, प्रदूषित हवा के जहरीले कण फेफड़ों तक पहुंचकर सूजन, जलन और सांस लेने में कमी पैदा करते हैं। लगातार खराब हवा में सांस लेने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और बार-बार होने वाले सांस संबंधी इंफेक्शन बढ़ सकते हैं। लक्षण जो सतर्क करते हैं थकान, सीने में भारीपन, थोड़ी मेहनत में सांस फूलना। प्रदूषण धीरे-धीरे फेफड़ों में जमा होता है और समय रहते जांच न होने पर गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

घर पर किए जाने वाले फेफड़ों की जांच के आसान टेस्ट

घर पर किए जाने वाले ये टेस्ट सस्ते, आसान और बिना दर्द के हैं। ये रोजाना किए जा सकते हैं और खासकर बुजुर्गों, बच्चों, खिलाड़ियों, अस्थमा मरीजों और ज्यादा प्रदूषण वाले शहरों में रहने वालों के लिए उपयोगी हैं।

पीक फ्लो मीटर (Peak Flow Meter – PFM)

पीक फ्लो मीटर फेफड़ों से बाहर निकलने वाली हवा की गति (PEFR) मापता है। यह संकेत देता है कि सांस की नलियां सिकुड़ रही हैं या ब्रोंकस्पाज़्म हो रहा है। कैसे करें: सीधे खड़े हो जाएं या बैठ जाएं, गहरी सांस लें, माउथपीस से हवा पूरी तेजी से बाहर निकालें।

पोर्टेबल डिजिटल स्पाइरोमीटर

यह उपकरण FEV₁, FVC और FEV₁/FVC रेशियो जैसी माप करता है। ये संकेत देते हैं कि फेफड़ों की क्षमता और हवा के बहाव में कोई रुकावट तो नहीं है।

पल्स ऑक्सीमीटर

यह शरीर में ऑक्सीजन के स्तर (SpO₂) को मापता है। सामान्य स्तर 95-100% होता है, जबकि 93% से कम होना फेफड़ों में सूजन या गैस एक्सचेंज की समस्या का संकेत है।

 ब्रीथ-होल्डिंग टेस्ट और काउंटिंग टेस्ट

गहरी सांस लेकर उसे रोकने या धीरे-धीरे गिनती करने से फेफड़ों की क्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है। स्वस्थ फेफड़े 30-90 सेकंड तक सांस रोक सकते हैं।

मेडिकल टेस्ट – ज्यादा सटीक और भरोसेमंद

यदि घरेलू टेस्ट असामान्य आएं या लक्षण बने रहें, तो मेडिकल टेस्ट कराना जरूरी है। पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (PFT) फेफड़ों की स्थिति जानने का गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है। यह FEV₁, FVC, टोटल लंग कैपेसिटी और गैस एक्सचेंज क्षमता (DLCO) मापता है। अन्य टेस्ट: चेस्ट एक्स-रे से फेफड़ों में बदलाव जैसे COPD, पुरानी सूजन या पानी भरने की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।

किन लोगों को कब और क्यों कराना चाहिए टेस्ट

डॉक्टर के अनुसार, यदि आपको बार-बार खांसी (सूखी या बलगम वाली), घरघराहट, सीटी जैसी आवाज, सीने में जकड़न, सांस फूलना, जल्दी थक जाना, पीक फ्लो मीटर की वैल्यू गिरना या बार-बार सांस की संक्रमण जैसी समस्याएं हो रही हों, तो यह संकेत हैं कि हवा आपके फेफड़ों को प्रभावित कर रही है। ऐसे में तुरंत डॉक्टर से मिलकर फेफड़ों की जांच कराना बेहद जरूरी है।  

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