शंतरज के खेल में आज न केवल पुरुष बल्कि महिलाएं भी काफी आगे है। इस बात को सच कर किया है भारत की युवा महिला ग्रैंड मास्टर हम्पी कोनेरु ने। शनिवार को हम्पी ने ब्लिट्ज प्लेऑफ में चीन की लेई तिंगजी को हरा कर वर्ल्ड रेपिड चैंपियनशिप 2019 का खिताब अपने नाम किया है। वहीं पुरुषों में नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन ने तीसरी बार यह खिताब अपने नाम किया है।
2016 में शतरंज को किया था विराम
भारत की इस युवा महिला ग्रैंडमास्टर हम्पी ने 2016 में शतरंज को कुछ समय के लिए अलविदा कहा था जिससे की भारत के शतरंग प्रेमी काफी निराश हुए थे। मां बनने के बाद उन्होंने यह ब्रेक 2 साल तक लिया। 2018 में जब वह वापिस लौटी तो लोगों को लगा की वह पहले की तरह प्रदर्शन नहीं कर पाएंगी लेकिन हंपनी ने लगातार मेहनत की और 2019 में अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन दिया।
9 साल की उम्र में शुरु की थी शतरंज
31 मार्च 1987 में आंध्रप्रदेश के गुड़ीवाड़ा में जन्मी कोनेरु हम्पी ने 9 साल की उम्र में नेशनल शतरंज टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीता कर नया इतिहास रचा था। बतौर महिला ग्रैंड मास्टर वह पहली महिला था जिन्हें यह खिताब हासिल हुआ था। इसके बाद 1997 में नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल जीता। पिता अशोक और माता कोनेरु ने इनका नाम हम्पी इसलिए रखा क्योंकि इसका अर्थ विजेता होता है। अशोक का सपना था कि उनकी बेटी बड़ी होकर विश्व चैंपियन बने।
5 वर्ष में शुरु की थी ट्रेनिंग
हम्पी के पिता चाहते थे कि वह विश्व चैंपियन बने इसलिए उन्होंने उसे 5 साल की उम्र में ही शतरंज की ट्रेनिंग देनी शुरु कर दी थी। 6 साल की उम्र में जब उनके पिता एक दिन शतरंज खेलते हुए अपनी अगली चाल के बारे में सोच रहे थे तब हम्पी ने चाल चल दी जो कि पूरी तरह से ठीक थी। उसके बाद कुछ ही देर में वह अपने मोहल्ले के लड़कों को शतरंज की ट्रेनिंग देने लगी थी।हम्पी ने अपनी शुरुआती ट्रेनिंग अपने पिता अशोक से ही ली है।
जीत चुकी है ये खिताब
1998 में हम्पी ने 3 टूर्नामेंट में गोल्ड,2002 में हैदराबाद में आयोजित वर्ल्ड शतरंज टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक हासिल किया। 2006 में हम्पी ने दोहा एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीत कर भारत का नाम रोशन किया। जिसके बाद विश्व की टॉप 50 महिलाओं की सूची में उनका 16 वां स्थान था।
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