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सास की मौत के बाद ज्वैलरी का असली हकदार कौन? बेटी या बहू… जानिए कानून क्या कहता है

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 20 Nov, 2025 04:05 PM
सास की मौत के बाद ज्वैलरी का असली हकदार कौन? बेटी या बहू… जानिए कानून क्या कहता है

नारी डेस्क:  घर में अक्सर प्रॉपर्टी और ज्वैलरी को लेकर विवाद खड़े हो जाते हैं, खासकर तब जब किसी सदस्य की मौत के बाद चीज़ों के बंटवारे को लेकर लोगों में असमंजस पैदा हो जाए। ऐसा ही मामला सास की ज्वैलरी को लेकर भी होता है आखिर इन गहनों पर हक किसका होता है? बहू का… या बेटी का? इस सवाल का जवाब भावनाओं से नहीं, बल्कि कानून और वसीयत से तय होता है।

अगर सास ने वसीयत बनाई है हकदार वही जिसे वह लिखकर दे जाएं

सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि वसीयत (Will) सबसे मजबूत कानूनी दस्तावेज होता है। अगर सास अपनी मृत्यु से पहले वसीयत बनाकर जाती हैं, तो ज्वैलरी उसी व्यक्ति को मिलेगी जिसका नाम वसीयत में दर्ज है। चाहे वह बेटी हो, बहू हो, पोती हो या कोई और रिश्तेदार।वसीयत के सामने भावनाएं या पारिवारिक पसंद–नापसंद मायने नहीं रखती। इसे तभी चुनौती दी जा सकती है, जब धोखे का ठोस सबूत हो इसका मतलब अगर सास ने बहू को ज्वैलरी देने का फैसला किया है, तो बेटी उसे रोक नहीं सकती। और उल्टा भी सच है।

अगर सास ने वसीयत नहीं बनाई तो कानून तय करेगा बंटवारा अगर वसीयत नहीं है, तो ज्वैलरी को Legal Heirs (कानूनी वारिसों) में बांटा जाता है। भारतीय कानून के अनुसार, एक महिला की संपत्ति उसके Class-I Heirs में बराबर हिस्सों में बंटती है।

कौन होते हैं सास के कानूनी वारिस?

पति, बेटा, बेटी, मां इन सभी को बराबर हिस्सा मिलता है। ध्यान दें बहू कानूनी वारिस नहीं होती बहू को ज्वैलरी का हक सीधे-सीधे नहीं मिलता। वह तभी ज्वैलरी की हकदार बनती है जब उसका पति (यानी सास का बेटा) अपनी हिस्सेदारी उसे दे दे या वह खुद ज्वैलरी को बहू के नाम कर जाएं (वसीयत के जरिये)

शादीशुदा बेटी को पूरा हक

कानून में बेटा–बेटी में कोई फर्क नहीं है। इसलिए शादीशुदा बेटी को भी उतना ही हिस्सा मिलता है जितना बेटे को मिलता है।

अगर सास के पति या मां जीवित नहीं हैं?

ऐसी स्थिति में वारिसों की संख्या कम हो जाती है और ज्वैलरी केवल बेटे और बेटियों में समान हिस्सों में बंटती है सभी का हक बराबर होता है। हक वही जिसका कानून कहे, ना कि रिश्तों के आधार पर

सास की मौत के बाद ज्वैलरी का हक

कानून पूरी तरह स्पष्ट है—भावनाओं से नहीं बल्कि कानूनी नियमों से निर्णय लिया जाता है।   

 

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