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"तुमने ‘हिजड़े' को जन्म दिया है..." सास को ये ताना देने वाली महिला को कोर्ट ने लगाई लताड़, सुनाया बड़ा फैसला

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 23 Oct, 2024 05:29 PM

नारी डेस्क:  पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक पारिवारिक अदालत द्वारा एक व्यक्ति के पक्ष में दिए गए तलाक के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि पति को ‘हिजड़ा' कहना मानसिक क्रूरता के समान है। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट की तरफ से पति के पक्ष में दिए गए तलाक के फैसले के खिलाफ पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. 


 6 साल से अलग रह रहे हैं पति- पत्नी

 पीठ ने अपने फैसले में कहा- ‘‘यदि पारिवारिक न्यायालय द्वारा दर्ज निष्कर्षों की जांच उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के मद्देनजर की जाये तो यह बात सामने आती है कि पति को हिजड़ा (ट्रांसजेंडर) कहना और उसकी मां को ट्रांसजेंडर को जन्म देना कहना क्रूरता का काम है। पति- पत्नी 6 साल से अलग-अलग रह रहे हैं, न्यायालय ने पाया कि दोनों पक्षों के बीच संबंध इतने खराब हो चुके है कि इन्हें अब सुधारा नहीं जा सकता।

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महिला काे थी गलत आदतें


इन दोनों की शादी दिसंबर, 2017 में हुई थी। तलाक की अर्जी देने वाले पति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी ‘‘देर से उठती'' थी। वह उसकी मां से पहली मंजिल पर स्थित अपने कमरे में दोपहर का भोजन भेजने के लिए कहती थी और दिन में चार से पांच बार उन्हें (मां को) ऊपर बुलाती थी और उसे इस बात की जरा परवाह नहीं थी कि उसकी मां गठिया से पीड़ित है। व्यक्ति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी अश्लील वीडियो देखने की आदी है और उसे ‘‘शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं होने'' के लिए ताना मारती थी तथा वह किसी अन्य व्यक्ति से शादी करना चाहती थी। 

 

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महिला की सास ने सुनाया अपना दर्द


महिला ने आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया कि उसका पति यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर सका कि वह अश्लील वीडियो देखती थी। उसने अपने ससुराल वालों पर नशीले पदार्थ देने का भी आरोप लगाया। महिला की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि पारिवारिक अदालत ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि पति और उसके परिवार ने महिला के खिलाफ क्रूरता की। आदेश में कहा गया है कि व्यक्ति की मां ने अपनी गवाही में कहा कि उसके बेटे को उसकी पत्नी ‘हिजड़ा' कहती थी। इसमें कहा गया है कि दूसरी ओर पत्नी को नशीला पदार्थ देने और उसे एक ‘तांत्रिक' के प्रभाव में रखने के आरोप को पत्नी द्वारा साबित नहीं किया जा सका। 

 

कोर्ट ने तलाक को दी मंजूरी

पीठ ने कहा- "निस्संदेह, यह न्यायालय का दायित्व है कि जहां तक ​​संभव हो, वैवाहिक बंधन को बनाए रखा जाए, लेकिन जब विवाह अव्यवहारिक हो जाए और पूरी तरह से समाप्त हो जाए, तो दोनों पक्षों को साथ रहने का आदेश देने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।"  कोर्ट ने कहा कि चूंकि दोनों पक्ष पिछले छह वर्षों से अलग रह रहे हैं और उनके बीच दोबारा मेल-मिलाप या सहवास की कोई संभावना नहीं है, इसलिए तलाक देना उचित है। 

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