चैत्र नवरात्रि 2022 शुक्रवार, 2 अप्रैल यानि कल से शुरू होने जा रहे हैं। नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने के लिए मनाई जाती है। नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव की शुरूआत भक्त पहले दिन घटस्थापना या कलश स्थापना से करते हैं। वहीं, नवरात्रि का पहले दिन नवदुर्गा के स्वरूप देवी शैलपुत्री को समर्पित है। मान्यता है कि मां की अराधना करने से आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में स्थिरता आती है।
देवी शैलपुत्री की जन्म कथा
देवी शैलपुत्री पर्वतों के राजा के घर में जन्मी हिमालय की पुत्री हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने घर में हवन रखा और सभी देवताओं को आमंत्रित किया था लेकिन उन्होंने भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। मगर, माता सती बिना बुलाए अपने पिता के घर हवन में चली गई। तब राजा दक्ष ने उनके सामने भगवान शिव का बहुत अपमान किया और पति का अपमान सहन कर पाई माता सति ने अग्नि में जलकर भस्म हो गई।
इसके बाद उन्होंने पर्वत राजा की बेटी पार्वती के रूप में जन्म लिया। उन्होंने ध्यान किया और प्रार्थना की ताकि वह भगवान शिव से विवाह कर सकें। बाद में, गहन ध्यान के बाद, एक दिन भगवान ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि भगवान शिव उनसे विवाह करेंगे।
देवी शैलपुत्री की वेशभूषा
मां शैलपुत्री के सचित्र चित्रण में उनके दो हाथ हैं, दाहिने हाथ में त्रिशूल या त्रिशूल, बाईं ओर एक गुलाबी कमल और एक अर्धचंद्राकार उनके माथे को सुशोभित करते हैं। वह नंदी बैल पर सवार दिखाई देती है।
मां को लगाएं इन चीजों का भोग
इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है, जो खुशी का प्रतीक है। इसके अलावा देवी शैलपुत्री को देसी घी में बना पीले रंग प्रसाद का ही चढ़ाएं। मां को फूल भी पीले रंग के अर्पित करें।
देवी शैलपुत्री का स्रोत पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
मंत्र - 'ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।'
श्लोक - टवन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्ट