नारी डेस्क: यूरोप में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने मेडिकल दुनिया और फर्टिलिटी इंडस्ट्री दोनों को झकझोर कर रखा है। एक गुमनाम स्पर्म डोनर के शुक्राणु से लगभग 14 देशों में करीब 200 बच्चे जन्म लेने का अंदेशा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस डोनर के कुछ शुक्राणुओं में एक बेहद खतरनाक जीन म्यूटेशन पाया गया, जो आगे चलकर कैंसर का गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। कई बच्चों में यह जीन पाया भी जा चुका है और कुछ की मौत की पुष्टि भी हुई है। यूरोपियन ब्रॉडकास्टिंग यूनियन द्वारा की गई खोजी रिपोर्ट में यह सनसनीखेज मामला सामने आया।
कैसे सामने आया इतना बड़ा मामला?
यह पूरा मामला तब उजागर हुआ जब यूरोपियन ब्रॉडकास्टिंग यूनियन के पत्रकारों ने कई देशों के फर्टिलिटी क्लीनिक, माता-पिता और डॉक्टरों से बातचीत कर डेटा इकट्ठा किया। जांच के दौरान सामने आया कि एक ही डोनर के स्पर्म अलग-अलग देशों के 67 फर्टिलिटी सेंटरों में उपयोग किए गए, जिससे बड़ी संख्या में महिलाओं ने गर्भधारण किया।

कौन था यह स्पर्म डोनर?
रिपोर्ट के अनुसार यह व्यक्ति डेनमार्क का रहने वाला था। वह पढ़ाई के दौरान कुछ अतिरिक्त आय के लिए स्पर्म डोनेट करता था। उसने डोनर स्क्रीनिंग टेस्ट पास किए थे। वह शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ दिखता था। उसके 17 साल तक स्पर्म का उपयोग होता रहा। डेनमार्क के एक फर्टिलिटी क्लिनिक ने उसका स्पर्म यूरोपियन स्पर्म बैंक को दिया, जहां से यह कई देशों में सप्लाई हुआ। इस प्रक्रिया में किसी को यह अंदाज़ा नहीं था कि उसके कुछ शुक्राणुओं में एक घातक जीन म्यूटेशन मौजूद था।
जीन में कैसी गड़बड़ी मिली?
जांच में पता चला कि डोनर की कोशिकाओं में TP53 जीन का गंभीर म्यूटेशन मौजूद था, लेकिन यह म्यूटेशन उसके शरीर के हर हिस्से में नहीं था — इसे मोज़ेक म्यूटेशन कहा जाता है। उसके लगभग 20% शुक्राणुओं में यह दोष पाया गया। जिन बच्चों का जन्म इन प्रभावित शुक्राणुओं से हुआ, उनकी हर एक कोशिका में यह जीन खामी मौजूद होगी। इस स्थिति को ली-फ्रौमेनी सिंड्रोम (Li-Fraumeni Syndrome) कहा जाता है, जिसमें जीवनभर कैंसर का जोखिम 90% तक माना जाता है।
क्या सभी बच्चे होंगे कैंसर के मरीज?
यूरोप के जेनेटिक विशेषज्ञों के अनुसार यह निश्चित नहीं कि सभी 200 बच्चों को यह म्यूटेशन मिला हो। लेकिन जिन बच्चों में यह TP53 म्यूटेशन पुष्टि हुआ है, उनमें कैंसर का खतरा काफी ज्यादा है। कुछ बच्चों में कम उम्र में ही कैंसर की पहचान भी हो चुकी है। ब्रिटेन की इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च की प्रो. क्लेयर टर्नबुल के शब्दों में “यह किसी भी परिवार के लिए सबसे भयानक स्थिति है। ऐसे लोगों को जीवनभर गंभीर स्वास्थ्य निगरानी की जरूरत पड़ती है।”

म्यूटेशन का असर कितना खतरनाक?
इस जीन म्यूटेशन के कारण
बचपन में कैंसर होने का जोखिम ज्यादा रहता है। वयस्क महिलाएं स्तन कैंसर के उच्च जोखिम में होती हैं। मरीजों को हर साल MRI, अल्ट्रासाउंड और कई तरह की स्क्रीनिंग से गुजरना पड़ता है। हालांकि जीन म्यूटेशन होने का मतलब यह नहीं कि हर मरीज की मृत्यु निश्चित है, लेकिन जीवनभर गंभीर निगरानी और उपचार की जरूरत पड़ती है।
यह स्पर्म इतना दूर-दूर कैसे पहुंचा?
यूरोप में स्पर्म डोनेशन की मांग काफी अधिक होती है। डेनमार्क के स्पर्म बैंक कई देशों में सप्लाई करते हैं। एक ही डोनर का स्पर्म बड़ी मात्रा में स्टोर होकर दशकों तक उपयोग किया जा सकता है। इस मामले में भी स्पर्म लगभग 17 वर्षों तक उपयोग में आया। इसी वजह से यह स्पर्म 14 देशों के कई फर्टिलिटी क्लीनिकों तक पहुंच गया।
अब तक क्या आंकड़े सामने आए हैं?
अब तक जांच से यह सामने आया है कि कुल 67 बच्चों की औपचारिक जांच हुई। इनमें से 23 में खतरनाक TP53 म्यूटेशन मिला। 10 बच्चों का कैंसर पहले ही निदान हो चुका है। कई देशों का डेटा अभी सामने नहीं आया, इसलिए संख्या और बढ़ सकती है। अनुमान है कि कुल लगभग 200 बच्चों का जन्म इस स्पर्म से हुआ। जिन परिवारों को यह जोखिम है, उन्हें आधिकारिक रूप से सूचित किया जा चुका है।
इस मामले से क्या सीख मिली?
इस घटना ने स्पर्म डोनेशन की प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं
क्या सभी डोनर का जेनेटिक टेस्ट जरूरी होना चाहिए?
क्या स्पर्म डोनशन की संख्या पर सीमा होनी चाहिए?
क्या अलग-अलग देशों के बीच डेटा साझा करने का एक सुरक्षित सिस्टम होना चाहिए?
अब कई विशेषज्ञ इस दिशा में कड़े नियम लागू करने की मांग कर रहे हैं।
यह मामला आधुनिक फर्टिलिटी सिस्टम की सबसे बड़ी चेतावनियों में से एक है। एक व्यक्ति की जीन खामी यूरोप के 14 देशों में फैली और सैकड़ों परिवारों को जीवनभर के जोखिम में डाल दिया। यह घटना बताती है कि स्पर्म डोनेशन में जेनेटिक स्क्रीनिंग कितनी आवश्यक है और इसकी अनदेखी कितने बड़े खतरे का कारण बन सकती है।