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संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत, जानिए पूजा विधि और कथा

  • Edited By palak,
  • Updated: 16 Oct, 2022 11:38 AM
संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत, जानिए पूजा विधि और कथा

कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी तिथि कहते हैं। अहोई का अर्थ होता है - 'अनहोनी को टाल देना और संकट को मिटाना।' माता अहोई की कृपा से संतान, घर-परिवार स्वस्थ, सुखी  और हमेशा सुरक्षित रहता है। इन दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं। हिंदू धर्म में इस व्रत को बहुत ही खास माना जाता है। अहोई के व्रत में मां पार्वती की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कोई पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से मां की अराधना करता है तो मां प्रसन्न होकर उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। तो चलिए आपको बताते हैं कि अहोई अष्टमी का व्रत कब है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है...

कब मनाई जाएगी अहोई अष्टमी

हिंदू पंचाग के मुताबिक, यह व्रत कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन रखा जाता है। ज्योतिषाशास्त्र के अनुसार, यह तिथि 17 अक्टूबर को सुबह 9:29 पर शुरु होगी और अगले दिन यानी 18 अक्टूबर को 11:57 पर खत्म होगी। उदयातिथि के अनुसार, अहोई अष्टमी का व्रत 17 अक्टूबर यानी कल रखा जाएगा। 

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शुभ मुहूर्त में पूजा करने से मिलेगा फल 

ऐसा माना जाता है कि कोई भी पूजा यदि शुभ मुहूर्त में की जाए तो उसका फल जरुर मिलता है। अहोई अष्टमी के दिन पूजा का शुब मुहूर्त 17 अक्टूबर को शाम 5:50 से लेकर शाम 07:05 तक रहेगा। इस दौरान पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। अहोई अष्टमी के व्रत में तारों का भी विशेष महत्व माना जाता है, क्योंकि यह व्रत तारे को देखकर ही खोला जाता है। पंचांग के अनुसार, अहोई अष्टमी के दिन शाम 06:13 पर तारे निकलेंगे। 

कैसे करें मां अहोई की पूजा 

यह व्रत माताएं अपने बच्चे की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती है। इसके अलावा यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी रखा जाता है। यदि कोई महिलाए संतान की प्राप्ति की इच्छा रखती है तो यह व्रत रख सकती है। यह व्रत करवा चौथ के व्रत के जैसा होता है। करवाचौथ के व्रत में चांद की पूजा की जाती है और इस व्रत में तारों की पूजा का बहुत ही विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन महिलाएं सुबह उठकर सफाई स्नान आदि करके मंदिर की सफाई करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला रखा जाता है। आपने जैसे व्रत की शुरुआत की है। आप वैसे ही सारी उम्र व्रत करें। दोपहर के समय व्रत में कथा पढ़ी और सुनी जाती है। इसके बाद तारे निकलने से पहले मंदिर में चौकी रखें। इस चौकी पर लाल या फिर पीला रंग का कपड़ा बिछाएं। इसके बाद चौकी पर मां अहोई की तस्वीर रखें। साथ में मिट्टी का करवा पानी भरकर भी चौकी में रखें। इसके बाद मां अहोई को तिलक लगाकर पूजा करें। पूजा करने के बाद मां को मीठे का भोग लगाएं। तारे को देखकर अर्घ्य दें। इसके बाद आप अपना व्रत खोल दें। व्रत खोलने के बाद प्रसाद बच्चों में बांटे। 

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अहोई अष्टमी की व्रत कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक साहूकार की बेटी मिट्टी काटने खेत में गई। जिस जगह वह मिट्टी काट रही थी। वहीं साही नाम की एक औरत अपनी सात बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी से खुरपी की चोट से साही का एक बच्चा मर गया। बच्चे की मौत पर साही गुस्से हो गई और साहूकार की बेटी को बोली- 'मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी'। साही की यह सब बातें सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातो भाभियों से विनती करती है कि वह अपनी कोख बंधवा ले। साहूकार की सबसे छोटी बहु ननद के हिस्से में कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी बहु के जो भी बच्चे होते हैं वह सात दिन के बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने साहूकार की छोटी बहु को सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु को मनचाहा वर मांगने को कहती है। इस पर साहुकार की छोटी बहु बोलती है कि साही माता ने मेरी कोख बांध दी है जिसके कारण मेरे बच्चे नहीं हो पाते हैं।  यदि आप मेरी कोख खुलवा दो तो मैं आपका उपकार मानूंगी। इसके बाद गाय माता ने साहुकार की छोटी बहु की बात मान ली और वह उसे साथ में लेकर सात समुद्र पार साही माता के पास चली गई। रास्ते में जाते हुए दोनों थक जाती हैं और आराम करने लगती हैं। अचानक से साहुकार की बहु की नजर एक ओर जाती है और वह देखती है कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चों को डंसने जा रहा है। इतने में वह सांप को मार देती है। कुछ ही समय में गरुड़ पंखनी वहां पर आ जाती है और खून देखकर सोचती है छोटी बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है। इसी कारण वह छोटी बहु को चोंच मारने लग जाती है। इसके बाद छोटी बहु कहती है कि उसने उसके बच्चों की जान बचाई है। गरुड़ पंखनी इस बात को सुनकर खुश होती है। वह सुरही के साथ उन्हें साही के पास पहुंचा देती है। छोटी बहु साही की सेवा करती है। साही बहु की सेवा से खुश हो जाती है और उसे सात पुत्र और सात बहु होने का आशीर्वाद देती है। साही कहती है कि घर जाने पर तू मां अहोई का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसकेसात बेटे और सात बहुएं बैठी हुई मिली। वह बहुत ही खुश हुई। इसके बाद उसने सात कड़ाही देकर व्रत का उद्यापन किया। 

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