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अमेरिका में महिलाओं से छीना गर्भपात का अधिकार, जानें भारत में Abortion को लेकर क्या है नियम

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 25 Jun, 2022 10:30 AM
अमेरिका में महिलाओं से छीना गर्भपात का अधिकार, जानें भारत में Abortion को लेकर क्या है नियम

अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने 50 साल पहले के रो बनाम वेड मामले में दिए गए फैसले को पलटते हुए गर्भपात के लिए संवैधानिक  अधिकार को समाप्त कर दिया है। इसके बाद अब महिलाओं के लिए गर्भपात का हक क़ानूनी रहेगा या नहीं इसे लेकर राज्य अपने-अपने अलग नियम बना सकते हैं। 


कोर्ट ने पलटा 50 साल पुराना फैसला

यह निर्णय कुछ साल पहले तक अकल्पनीय था। उच्चतम न्यायालय का फैसला गर्भपात विरोधियों के दशकों के प्रयासों को सफल बनाने वाला है।अदालत का फैसला अधिकतर अमेरिकियों की इस राय के विपरीत है कि 1973 के रो बनाम वेड फैसले को बरकरार रखना चाहिए जिसमें कहा गया था कि गर्भपात कराना या न कराना, यह तय करना महिलाओं का अधिकार है। इससे अमेरिका में महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार मिल गया था।

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पुराने फैसले काे बताया गलत 

सैमुअल अलिटो ने आए फैसले में लिखा कि गर्भपात के अधिकार की पुन: पुष्टि करने वाला 1992 का फैसला गलत था जिसे पलटा जाना चाहिए। अब माना जा रहा है कि इसके बाद आधे से अधिक अमेरिकी राज्य गर्भपात क़ानून को लेकर नए प्रतिबंध लागू कर सकते हैं। जानकार मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश अब साफ तौर पर गर्भपात की इजाजत देने वाले और इसे बैन करने वाले राज्यों में बंटा दिखेगा। 

क्या है रो बनाम वेड मामला


1971 में गर्भपात कराने में नाकाम रही एक महिला की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, इसे रो बनाम वेड मामले का नाम दिया गया। दरअसल, मैककॉर्वी अपना अबॉर्शन कराना चाहती थीं। उनके पहले से ही दो बच्चे थे। वह टेक्सास में रहती थीं जहां गर्भपात गैरकानूनी है, उसकी इजाजत तभी दी जा सकती है जब गर्भ धारण करने से मां की जान को खतरा हो।

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1973 में  कोर्ट ने गर्भपात को दी थी मंजूरी

 मैककॉर्वी ने फेडरल कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया कि टेक्सस का गर्भपात कानूनी असंवैधानिक है। उन्होंने गर्भपात की सुविधाओं तक आसान पहुंच की गुहार लगाई गई और कहा  कि गर्भधारण और गर्भपात का फ़ैसला महिला का होना चाहिए न कि सरकार का। दो साल बाद 1973 में  कोर्ट ने  इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए गर्भपात को कानूनी करार दिया और कहा कि संविधान गर्भवती महिला को गर्भपात से जुड़ा फ़ैसला लेने का हक़ देता है। 


ये था कानून


इस कानून के अनुसार अमेरिकी महिला को गर्भधारण के पहले तीन महीनों में गर्भपात कराने का कानूनी हक दिया गया।  हालांकि दूसरे ट्राइमेस्टर यानी चौथे से लेकर छठे महीने में गर्भपात को लेकर पाबंदियां लगाई गई।लेकिन इस  मामले ने तूल पकड़ा और कई राज्यों में गर्भपात पर पाबंदियां लगाने वाले नियम लागू किए, जबकि कईयों ने महिलाओं को ये हक़ देना जारी रखा। 

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ये है भारत का कानून

-भारत में 51 साल से अलग-अलग परिस्थितियों में महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का कानूनी अधिकार मिला हुआ है।
 

-कुछ विशेष श्रेणी की महिलाओं के मेडिकल गर्भपात के लिए गर्भ की समय सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया। 


-संशोधित कानून के तहत रेप पीड़ित, कौटुंबिक व्यभिचार की शिकार या नाबालिग 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी को मेडिकली टर्मिनेट करा सकती हैं। 


-इसके अलावा वे महिलाएं जिनकी वैवाहित स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो (विधवा हो गई हो या तलाक हो गया हो) और दिव्यांग महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन का अधिकार है। 

-अगर भ्रूण में कोई ऐसी विकृति या गंभीर बीमारी हो जिससे उसकी जान को खतरा हो या फिर उसके जन्म लेने के बाद उसमें मानसिक या शारीरिक विकृति आने, गंभीर विकलांगता का शिकार होने का खतरा हो तब भी महिला को प्रेग्नेंसी के 24 हफ्ते के भीतर गर्भपात का अधिकार है।

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