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मिशेलिन-विजेता मंजूनाथ ने हालिस किया अपनी मेहनत से मुकाम, फिर भी क्यों है अनजान

  • Updated: 09 Oct, 2017 05:06 PM
मिशेलिन-विजेता मंजूनाथ ने हालिस किया अपनी मेहनत से मुकाम, फिर भी क्यों है अनजान

दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो एक गरीब बैकराउंड से होते हुए भी आज पूरी दुनिया में मशहूर हैं। ऐसे ही मुंबई के एक फेमस शैफ मंजूनाथ मुरल हैं जोकि एक मिडल क्लास फैमिली से थे और आज वे पदम श्री अवार्ड से सम्मानित हैं। 44 साल के मंजूनाथ मुरल मिशेलिन के स्टार रह चुके हैं और उन्हें प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गले लगाकर कहा था कि मुझे आप पर गर्व है। आज मंजूनाथ मुरल सिंगोपर में एक फेमस भारतीय शैफ हैं। मिशेलिन स्टार मंजूनाथ मुरल ने एक इंटरव्यू के दौरान अपनी जिदंगी के बारे में कुछ अहम बातें बताई।
PunjabKesariशैफ मंजूनाथ के पिता एक आयुर्वेदिक डॉक्टर, मां होम्योपैथी व्यवसायी, भाई एक रेडियोलोजिस्ट और बहन एक व्यवसायिक चिकित्सक थी। पूरे परिवार का यही मानना था कि उनका बेटा मंजूनाथ भी बड़ा होकर उनके नक्शे कदम पर ही चलेगा लेकिन वह एक शैफ बनना चाहते थे। उन दिनों में शैफ के काम को बहुत ही छोटी नजरों से देखा जाता था और लोग उनके बारे में कहते थे कि यह एक बावर्ची बनेगा ? सिर्फ मंजूनाथ की मां को ही उन पर विश्वास था और वह अपने बेटे का पूरा स्पोर्ट करती थी लेकिन कैंसर की वजह से उनकी मौत हो गई।
PunjabKesariउन्होंने बैंगलुरू से होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और इसके बाद कई होटलों में नौकरियां की। वैसे तो उनका काम सही था लेकिन मंजूनाथ अपने काम से संतुष्ट नहीं थे। वह कुछ बड़ा करना चाहते थे जिसे लोग याद रख सकें।
PunjabKesariविदेश जाने से पहले वह वहां जाकर कुछ नया ट्राई करना चाहते थे और इंडीयन चटपटी चीजों को वहां पर बसाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने पहले कोमिस-2 रिसोर्ट में 2 महीनों तक ट्रेनिंग ली और इसके बाद जूहु में एक फाइव स्टार होटल में शैफ संजीव कपूर के साथ काम किया। बहुत से होटलों में काम करने के बाद और एक ट्रेन्ड शैफ बनने के बाद वे अपने घर चार्कोप पहुंचे।

काफी रिजैक्शन झेलने के बाद मंजूनाथ को एक होटल रेनाइसेन्स पवई में काम मिला। वहां एक विदेशी शैफ ने उन्हें अपने जूनियर शैफ की नौकरी दी। आखिरकार मंजूनाथ की लगन और काम को देखते हुए उन्हें पहला मिशेलिन स्टार चुना गया। इसके बाद से ही उन्हें पहचान मिली।

उन्होंने लंदन, यूनाइटिड स्टेट्स और दुबई में काम किया लेकिन यहां भी वह अपने काम से संतुष्ट नहीं थे। मंजूनाथ मुरल ने अपनी जिदंगी के संघर्ष पर एक गाना भी गाया। आखिर दस सालों के संघर्ष के बाद उन्हें सफलता मिली और उन्होंने विदेश में भारतीय खाने को एक नया रूप दिया।


 

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