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Yami Gautam कानों में 'देजिहोर' पहनना नहीं भूलती, सिंदूर-मंगलसूत्र के बराबर है ये कश्मीरी गहना

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 25 Jan, 2025 03:46 PM
Yami Gautam कानों में 'देजिहोर' पहनना नहीं भूलती, सिंदूर-मंगलसूत्र के बराबर है ये कश्मीरी गहना

नारी डेस्कः बॉलीवुड में ऐसी बहुत सारी एक्ट्रेस रही हैं जो अपने ट्रडीशन से पूरी तरह जुड़ी हुई हैं। कंगना रानौत, अनुष्का शर्मा और यामी गौतम उन्हीं में से एक हैं। यामी गौतम खुद भी हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी फैमिली से हैं और उन्होंने उरी के डायरेक्टर आदित्य धर से शादी की जो मूल रूप से एक कश्मीरी परिवार हैं। कश्मीरी पंडित परिवार की बहू बनने के बाद यामी गौतम ससुराल वालों के हर ट्रडीशन को अपनाती नजर आती हैं। आपने नोटिस किया होगा यामी गौतम सोने के एक खास किस्म के ईयररिंग्स जरूर पहनती हैं, जिसके साथ गोल्ड की लंबी चैन लटकी रहती है। यह कश्मीरी औरतों का सबसे खास गहना होता है। कश्मीरी औरतें सिंदूर-मंगलसूत्र लगाए या ना लगाए लेकिन वह इस पारंपरिक गहने को जरूर पहनती हैं क्योंकि सिंदूर-मंगलसूत्र की जगह इस गहने को पहना जाता है जिसे देजिहोर कहते हैं।

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सिंदूर और मंगलसूत्र के समान है कश्मीरी महिलाओं का गहना 'देजिहोर'

देजिहोर को कश्मीरी पंडित महिलाओं की शान कहा जाता है क्योंकि देजिहोर कश्मीरी पंडित परंपरा में सिंदूर और मंगलसूत्र के समान है। यह सोने या चांदी से बना होता है और इसकी बनावट षट्कोणीय (hexagonal) होती है। देजिहोर के केंद्र में एक बिंदु होता है जिसे शिव और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। शादी के एक दिन पहले इस गहने को दुल्हन की मां, एक लाल रंग के धागे में पिरोकर पहनाती है। इस सेरेमनी को देवगोन सेरेमनी कहा जाता है। शादी के अलगे दिन ससुराल वाले इस लाल धागे को हटाकर इसमें सोने की चैन जोड़ते हैं जिसे आथ कहा जाता है।

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बता दें कि देवगोन समारोह, कश्मीरी पंडित परंपरा का महत्वपूर्ण पवित्र संस्कार का नाम है।  इस रस्म का उद्देश्य वर (दूल्हा) या वधू (दुल्हन) को दिव्य शक्ति और देवी-देवताओं के आशीर्वाद से जोड़ना है। यह अनुष्ठान शादी से एक या दो दिन पहले आयोजित किया जाता है और इसे परिवार की समृद्धि और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए शुभ माना जाता है। इंदिरा गांधी ने भी देजिहोर पहना था ताकि दो परिवारों की परंपरा और संस्कृति को जोड़ा जा सके। कहा तो यह भी जाता है कि इस कश्मीरी गहने देजिहोर को गौतम बुद्ध की मां माया देवी और बहन प्रजापति गौतमी भी पहनी थी। 

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देजिहोर पहनने की परंपरा, कश्मीरी पंडितों के इतिहास में सदियों पुरानी परंपरा है। यह परंपरा, प्राचीन रीति-रिवाजों को दर्शाती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। कहा जाता है कि देजिहोर हर कश्मीरी पंडित महिला के विवाह का प्रतीक होता है। माना जाता है कि महान कश्मीरी आचार्य इसकी बनावट रच गये थे ताकि विवाहिताओं में दैवी शक्ति समा सके।

 

 

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