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पुरुषों के मुकाबले काम का ज्यादा बोझ उठाती है महिलाएं, कहीं आपके साथ तो नहीं हो रहा ऐसा

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 10 Jan, 2023 07:01 PM
पुरुषों के मुकाबले काम का ज्यादा बोझ उठाती है महिलाएं, कहीं आपके साथ तो नहीं हो रहा ऐसा

दुनिया भर में ज्यादातर लोगों के लिए, शारीरिक काम में हर दिन काफी समय और ऊर्जा लगती है, लेकिन यह कैसे निर्धारित होता है कि घर में पुरुष ज्यादा मेहनत कर रहे हैं या महिलाएं। करेंट बायलॉजी' में प्रकाशित  अध्ययन में यह पता लगाने का प्रयास किया गया कि वास्तव में कौन से कारक तय करते हैं कि किसी घर में कौन ज्यादा परिश्रम करता है और क्यों।

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महिलाएं अधिक परिश्रम करती हैं

पहला निष्कर्ष यह निकला कि महिलाएं पुरुषों से अधिक परिश्रम करती हैं और उनकी इस मेहनत का फल उनके परिवारों को मिलता है। यह जानकारी उनकी खुद की रिपोर्ट और उनके गतिविधि ट्रैकर दोनों से सामने आई। महिलाएं रोजाना औसतन 12,000 से अधिक कदम चलीं, वहीं पुरुष केवल 9,000 से अधिक कदम चले। अत: पुरुषों ने भी मेहनत की, लेकिन महिलाओं की तुलना में कम। उन्होंने आराम करने या सामाजिक गतिविधियों में ज्यादा समय बिताया। संभवत: महिलाएं औसतन शारीरिक रूप से पुरुषों से कमजोर होती हैं और इसलिए उनकी सौदेबाजी की क्षमता कम होने की यह आंशिक वजह हो सकती है। लेकिन हमें ऐसे लोग भी मिले (महिला या पुरुष) जो शादी के बाद घर छोड़कर जाते हैं और अपने परिवारों के साथ रहने वाले लोगों से अधिक काम का बोझ सहते हैं। इसलिए अगर आप महिला हैं और शादी के समय अपने पैतृक घर से दूर चली जाती हैं (जैसा कि दुनिया भर में ज्यादातर महिलाएं करती हैं), तो आप न केवल अपने परिवार को खोने के मामले में बल्कि काम के बोझ के मामले में भी पीड़ित हैं। 

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परिवार से अलग रहना का होता है नुकसान

जब दोनों लोग अपने पैतृक परिवारों के साथ नहीं रहते हैं, तो दोनों कड़ी मेहनत करते हैं (क्योंकि रिश्तेदारों से थोड़ी मदद मिलती है) - लेकिन महिला फिर भी कड़ी मेहनत करती हैं। अध्ययन के अनुसार, काम के बोझ में पूर्ण लैंगिक समानता केवल उन उदाहरणों में होती है जहां पुरुष अपना घर छोड़ते हैं, महिलाएं नहीं। काम के बोझ में लैंगिक असमानता घर और बाहर दोनों जगह बनी रहती है। अध्ययन ने एक विकासवादी परिप्रेक्ष्य दिया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को काम का भारी बोझ क्यों उठाना पड़ता है। लेकिन चीजें धीरे-धीरे बदल रही हैं। महिलाएं अपने परिवार से और अपने पति के परिवार से अलग रह रही हैं और उनकी सौदेबाजी की क्षमता बढ़ रही है। इसके साथ ही खुद के बूते अर्जित धन, शिक्षा और स्वायत्तता के बढ़ते स्तर से भी इस तरह की प्रवृत्ति को मजबूती मिली है। अंतोगत्वा ये बदलाव पुरुषों को कई शहरी, औद्योगिक या उत्तर-औद्योगिक समाजों में काम का अधिक बोझ लेने की ओर प्रवृत्त कर रहे हैं।

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काम का बोझ बढ़ने का कारण 

घर छोड़ना: अध्ययन में इस अवधारणा का परीक्षण किया गया कि अपने पति के परिवार के साथ रहने के लिए महिला को अपनी पैदायशी जगह छोड़नी पड़ती है और काम का बोझ अधिक हो जाता है। ऐसी शादियों में अपने नये घर से पहले ताल्लुक नहीं होना, नये घर में किसी के साथ अतीत साझा नहीं करना और अपने आसपास खून के संबंध वाले रिश्तेदारों का नहीं होना सौदेबाजी के लिहाज से नुकसानदेह हो सकता है। दुनिया भर में विवाह का सबसे आम रूप वह है जहां महिलाएं अपने पैतृक घर को छोड़कर ‘डिस्परसर्स' (फैलाने वाली) होती हैं, जबकि पुरुष अपने परिवार के साथ अपने पैतृक क्षेत्र में रहते हैं। इसे पितृसत्तात्मकता के रूप में जाना जाता है। 


नियोलोकलिटी: इसमें दोनों लोग विवाह के बाद अलग हो जाते हैं, और युगल अपने-अपने परिवारों से दूर किसी नए स्थान पर रहते हैं। यह दुनिया के कई हिस्सों में एक और आम प्रथा है। 
 

मातृसत्तात्मकता:  जहां महिलाएं जन्म से अपने ही परिवार में रहती हैं और पुरुष पत्नी और उसके परिवार के साथ रहता है, ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। और एक है द्वैतवाद - जहां दोनों में से कोई घर नहीं छोड़ता है और पति-पत्नी अलग-अलग रहते हैं ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है।  यह अध्ययन छह अलग-अलग जातीय संस्कृतियों वाले गांवों पर केंद्रित था। ऐसे में 500 से अधिक लोगों के विवाह के बाद घर छोड़ने के पैटर्न का पता लगाने के लिए उनका साक्षात्कार किया गया। 


 (रुथ मेस, युआन चेन, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन) 

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