मुंबई वासियों को साल भर जिसका इंतजार होता है वह त्यौहार आ गया है। मुंबई में सुबह खुशी और उत्साह के साथ दही हांडी उत्सव शुरू हो गया जिसे मनाने के लिए हजारों प्रतिभागी और दर्शक एकत्र हुए। दही हांडी कृष्ण जन्माष्टमी पर्व का हिस्सा है। इस दौरान ‘गोविंदा' या दही हांडी प्रतिभागी हवा में लटकी ‘दही हांडी' (दही से भरा मिट्टी के बर्तन) को तोड़ने के लिए बहु-स्तरीय मानव पिरामिड बनाते हैं।
शहर की कई आवासीय सोसायटी, सड़कों और सार्वजनिक मैदानों पर फूलों से सजी दही हांडियों को कई फुट की उंचाई पर लटकाया गया। शहर के हर कोने में त्योहार से संबंधित लोकप्रिय गीत तथा बॉलीवुड के गाने चल रहे हैं। विशेष रूप से परेल, लालबाग, वर्ली, दादर, भांडुप, मुलुंड, गोरेगांव और अंधेरी जैसे मराठी बहुल इलाकों में उत्सव को लेकर ज्यादा रौनक देखी जा रही है।
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि उत्सव के दौरान शहर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) की एक विज्ञप्ति के अनुसार, मानव पिरामिड बनाते समय गोविंदाओं के गिरकर घायल होने की आशंका को देखते हुए नागरिक अस्पतालों में 125 बिस्तर की व्यवस्था की गई। स्थानीय निकाय ने नागरिक अस्पतालों में गोविंदा के इलाज के लिए तीन पालियों में स्वास्थ्य अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती की है। विज्ञप्ति में बताया गया कि इसके अलावा, इन अस्पतालों को इंजेक्शन, दवाएं और सर्जरी सामग्री तैयार रखने का निर्देश दिया गया है।
दही-हांडी और श्रीकृष्ण का संबंध
मुंबई में तो इस त्यौहार को आम से लेकर खास सब धूमधाम से मनाते हैं। भगवान कृष्ण दही से बहुत प्यार करते थे और इसीलिए इस त्योहार को बहुत ही मस्ती और खुशी के साथ मनाया जाता है। दरअसल पौराणिक कथाओं की मानें तो बाल गोपाल की शरारतों से तंग आकर वृन्दावन की महिलाएं मथे हुए माखन की मटकी को ऊंचाई पर टांग देती थी, ताकि श्रीकृष्ण उस तक पहुंच ना पाएं। मगर, नटखट कृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और उस मटकी को तोड़कर माखन खाते थे। यही से दही हांडी का चलन शुरू हो गया।
यहां की दही-हांडी है सबसे मशहूर
गुजरात, द्वारका, महाराष्ट्र की दही-हांडी पूरे भारत में सबसे मशहूर है। यहां हर गली-मुहल्ले में दहीं हांडी की प्रतियोगिता रखी जाती है। यहां मटकी में दही के साथ घी, बादाम और सूखे मेवे भी डाले जाते हैं, जिसे युवाओं की टोली मिलकर तोड़ती है। वहीं लड़कियों की एक टोली गीत गाती हैं और उन्हें रोकने की कोशिश करती हैं। तमिलनाडु में दही-हांडी उत्सव को 'उरीदी' भी कहा जाता है। यहां लोग हफ्तों पहले ही ग्रुप बनाकर दही-हांडी की प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं। हांडी फोड़ने वाले को मिठाइयां व उपहार दिए जाते हैं।
कैसे तोड़ी जाती है दही-हांडी
जन्माष्टी से अगले दिन युवाओं की टोलियां काफी ऊंचाई पर बंधी दही की हांडी (एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन) को तोड़ती हैं। इसके लिये मानवीय पिरामिड का निर्माण करते हैं और एक प्रतिभागिता इस पिरामिड के ऊपर चढ़कर मटकी को तोड़ता है। जो टोली दही हांडी को फोड़ती है उसे विजेता घोषित किया जाता है। प्रतियोगिता को मुश्किल बनाने के लिय पानी की बौछार भी की जाती है। इन तमाम बाधाओं को पार कर जो मटकी फोड़ता है वही विजेता होता है।
इस प्रतियोगिता से मिलती है सीख
इस प्रतियोगिता से सीख भी मिलती है कि लक्ष्य भले ही कितना भी कठिन हो लेकिन मिलकर एकजुटता के साथ प्रयत्न करने पर उसमें कामयाबी जरुर मिलती है। यही उपदेश भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के जरिये भी देते हैं।