जहां एक तरफ कोरोना के नए स्ट्रेन को लेकर हड़कंप मचा हुआ है वहीं इसी बीच ब्रिटिश-स्वीडिश बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने एक और नई वैक्सीन तैयार कर ली है। दरअसल, उन्होंने ऐसी एंटीबॉडीज (Antibodies) बनाई है जो गंभीर कोरोना वायरस से बचाव में असरदार है। वहीं, अब वैज्ञानिक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी के जरिए इस वायरस का इलाज करने की सोच रहे हैं।
क्या है मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी?
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी का इस्तेमाल पहले भी कई रोगों का इलाज करने के लिए किया जा चुका है। इस थेरेपी में लैब में वायरस के खिलाफ ऐसा एंटीजेन बनाया जाता है, जो वायरस के प्रोटीन स्पाइक को कमजोर बना देता है। इसमें मरीज को 2 इंजेक्शन दिए जाचे हैं, जिससे वायरस का लोड कम हो जाता है। हालांकि कोरोना के प्रति अभी यह तकनीक परीक्षण के तौर पर की जा रही है।
क्या नए स्ट्रेन से इम्यूनिटी प्रभावित होती है?
वैज्ञानितों का कहना है कि कोरोना के नए स्ट्रेन को लेकर घबराने की जरूरत नहीं। रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन या अन्य देशों में सामने आए इसमें मामलों में मृत्युदर नहीं बढ़ी है। हालांकि यह 70% अधिक तेजी से फैलता है। अगर संक्रमित लोगों में किसी की मृत्यु हुई होगी तो कुल मृत्यु ये दर फिर बढ़ सकती है।
कैसे काम करती है यह थेरेपी?
यह थेरेपी प्लाज्मा थेरेपी (Plasma Therapy) की तरह ही इम्युनिटी मजबूत करती है। इससे वायरस इस कद्र बेअसर हो जाता है कि कोशिकाएं संक्रमित नहीं हो पाती। उन लोगों के यह वरदान है, जिनके शरीर में कुदरती तौर पर इम्युनिटी मजबूत नहीं है।
कैसे बनती हैं मोनोक्लोनल एंटीबॉडी?
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दो तरह से बनाई जाती है। एक तो हैम्स्टर (एक किस्म का चूहा) के अंडाशय के भीतर की कोशिकाओं में बनने वाली एंटीबॉडी से जिसे इंसानों के लिए खास बायोलॉजिकली इंजीनियर किया गया है। दूसरा कोरोना से रिकवर कर चुके मरीजों के शरीर में बनी एंटीबॉडीज से। हालांकि यह थेरेपी बाकी इलाज से थोड़ी महंगी होती है।