उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है। एक के बाद एक ऐसे रहस्य हैं, जिसे जानकर भगवान भोले के भक्त आश्यचर्य चकित रह जाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही रहस्य बताने जा रहे हैं, जिसे जानकार आप भी चौंक जाएंगे। आईए डालते हैे एक नज़र डालते हैं इन रहस्यों पर।
शिव भगवान को पिलाई जाती है शरब
महाकालेश्व मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव को शराब पिलाई जाती है और जहां पूरी दुनिया में मंदिरों के आस-पास शराब आदि की दुकानें हटा दी जाती हैं वहीं दूसरी ओर महाकाल के मंदिर परिसर से लेकर इसके रास्ते तक में बहुत सारी शराब की दुकानें लगवाई गई हैं और यही नहीं यहां प्रसाद बेचने वाले लोग भी शराब अपने पास रखते हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर का शिवलिंग स्वयंभू (अपने आप प्रकट हुआ) माना जाता है। आज तक ये कोई भी नहीं जानता कि भगवान शिव को मदिरा पिलाने का रिवाज कब से आया और आखिर इतनी शराब जो भगवान शिव पीते हैं वो जाती कहां है।
रात को कभी नहीं रुकता कोई मंत्री
इस रहस्यमयी मंदिर के दर्शन करने तो लोग दूर-दूर से आते हैं दौरे के समय कोई भी सीएम या मंत्री रात नहीं बिताते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के राजा स्वयं महाकाल हैं, इसलिए जब कोई शासक यहां रूकता है तो उसकी सत्ता चली जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा विक्रामित्य के समय से ही कोई राजा यहां नहीं रूकता है। भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई एक बार यहां रात में रूके थे, अगले दिन उनकी सत्ता चली गई थी।
स्वंयभू है यहां की शिवलिंग
यहां पर वो जो शिवलिंग है वो स्वंयभू है, इसका मतलब वो खुद से उस स्थान पर निकला है। मान्यता है की भगवान शिव यहां खुद प्रकट हुए थे। किंवदंती के अनुसार, उज्जैन के एक शासक चंद्रसेन थे, जो शिव के एक बड़े भक्त थे। हर समय वो शिव की पूजा करते थे। एक दिन उसने राजा को शिव के नाम का जाप करते हुए सुना और उनके साथ प्रार्थना करने के लिए मंदिर में दौड़ पड़ा। हालांकि उसे वहां पूजा करने की अनुमति नहीं मिली और उसे शहर के बाहर भेज दिया गया। जहां उस बालक ने दुश्मनों को हमले की योजना बनाते हुए सुना। बालक ने इसके बाद अपने राज्य को बचाने के लिए शिव से प्रार्थना करना शुरू दिया। अपने भक्त के अनुरोध पर, भगवान शिव शहर में निवास करने और राज्य के प्रमुख देवता बनने के लिए सहमत हो गए।
भस्म आरती
महाकालेश्व मंदिर एकलौती ऐसी जगह है, जहां शिव को भस्म से आरती की जाती है। प्राचीन कथाओं के अनुसार यहां चिता की राख से यह आरती की जाती थी, हालांकि आज के समय में ऐसा नहीं है। आज कंडे की राख से भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती के समय महिलाओं की उपस्थिति वर्जित है। अगर किसी कारणवश वहां कोई महिला उपस्थित है, तो उसे घूंघट करना अनिवार्य है।
महाकाल नाम ही क्यों?
सबसे बड़ा रहस्य इस ज्योतिर्लिंग के नाम में है। आखिर भगवान शिव को यहां महाकाल क्यों कहा जाता है? दरअसल काल का दो अर्थ है- समय और मृत्यु। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव मृत्यु और काल के देवता हैं। काल और मृत्यु दोनों को परास्त करने वाला महाकाल कहलाता है। भगवान शिव समय और मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं, इसलिए उन्हें इस नाम से बुलाया जाता है।