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हिंदू धर्म में सिंदूर की क्या है अहमियत, जान ले हर भारतीय

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 07 May, 2025 04:52 PM
हिंदू धर्म में सिंदूर की क्या है अहमियत, जान ले हर भारतीय

नारी डेस्क:  भारत में शादी के बाद महिला की मांग में भरे जाने वाला सिंदूर केवल एक रंग नहीं, बल्कि परंपरा, भावनाओं और सामाजिक पहचान का प्रतीक है। यह वही गाढ़ा लाल पाउडर है, जो बाजार में कुछ ही रुपये में मिल जाता है, लेकिन किसी सुहागन की मांग में लगते ही उसकी कीमत अनमोल हो जाती है।

शादी के समय जब दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है, तो वो पल हर किसी के लिए भावुक कर देने वाला होता है। यह परंपरा भारत के हर कोने — चाहे बंगाल हो या उत्तर प्रदेश, बिहार हो या केरल — हर जगह निभाई जाती है। सिंदूर को सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का प्रतीक माना जाता है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस सिंदूर का नाम कहां से आया? पहले इसे कैसे बनाया जाता था? और आज के समय में इसे कैसे तैयार किया जाता है? आइए जानें सिंदूर से जुड़ी ये 3 खास बातें-

 सिंदूर शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई?

‘सिंदूर’ शब्द संस्कृत के शब्द ‘सिंदूरा’ से लिया गया है। यह शब्द प्राचीन ग्रंथों, पूजा विधियों और सामाजिक परंपराओं में सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है। समय के साथ इसका उच्चारण और रूप थोड़े बदले, लेकिन इसका सांस्कृतिक महत्व हमेशा बना रहा।

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प्राचीन भारत में कैसे बनाया जाता था सिंदूर?

पुराने ज़माने में सिंदूर पूरी तरह प्राकृतिक चीज़ों से तैयार किया जाता था।
इसके मुख्य घटक होते थे-

हल्दी

नींबू का रस

फिटकरी (अलम)

इन तीनों को मिलाने पर एक लाल रंग तैयार होता था। कहीं-कहीं इसमें केसर और चंदन भी मिलाया जाता था, जिससे इसकी खुशबू और गुणवत्ता बढ़ाई जाती थी। यह मिश्रण पूरी तरह हर्बल और सुरक्षित होता था, जिसे महिलाएं बेझिझक लगाती थीं।

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आज के समय में सिंदूर कैसे बनता है?

अब ज़माना बदल गया है, और बाज़ार में मिलने वाला सिंदूर ज़्यादातर फैक्ट्री में तैयार किया जाता है। इसमें अब  Natural चीज़ों की जगह कई सिंथेटिक (कृत्रिम) पदार्थ मिलाए जाते हैं, जैसे-

सिंथेटिक डाई (रंग)

टैल्क (पाउडर)

कैल्शियम कार्बोनेट

लेड (सीसा) और मरकरी (पारा) जैसी हानिकारक धातुएं ये पदार्थ सिंदूर की लाइफ बढ़ाने, रंग गहरा करने और ज्यादा मुनाफा कमाने के मकसद से डाले जाते हैं। लेकिन इससे स्वास्थ्य को खतरा भी हो सकता है, खासकर अगर इनमें लेड या मरकरी की मात्रा अधिक हो।

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 महत्व अब भी वही है, चाहे तरीका बदल गया हो

भले ही सिंदूर बनाने के तरीके में बदलाव आया हो, लेकिन इसका महत्व आज भी वैसा ही है जैसा पहले था। हालांकि अब कुछ महिलाएं रोज़ सिंदूर नहीं लगातीं, लेकिन शादी, त्योहार या धार्मिक अवसरों पर यह अब भी हर सुहागन की पहचान बन जाता है।

यह सुर्ख लाल पाउडर एक औरत के सौभाग्य और विवाह की पहचान है — जो उसके जीवन की सबसे खास निशानी मानी जाती है।
 

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