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गर्भावस्था में व्रत करते समय बरतें ये सावधानियां, मां और बच्चे की सेहत रहेगी दुरुस्त

  • Edited By Monika,
  • Updated: 03 Oct, 2025 06:31 PM
गर्भावस्था में व्रत करते समय बरतें ये सावधानियां, मां और बच्चे की सेहत रहेगी दुरुस्त

नारी डेस्क : करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाएं सुखी दांपत्य और अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। गर्भावस्था के दौरान कई बार महिलाएं इस व्रत को करने में कठिनाइयों का सामना करती हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कैसे सावधानी बरतकर न केवल व्रत पूरा किया जा सकता है, बल्कि मां और बच्चे की सेहत भी सुरक्षित रखी जा सकती है।

करवा चौथ का व्रत: समय और मुहूर्त

व्रत तिथि: 10 अक्टूबर, शुक्रवार

आरंभ: 9 अक्टूबर की रात 10:54 बजे

समापन: 10 अक्टूबर की शाम 7:38 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 05:57 बजे से रात 07:11 बजे तक

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चंद्रोदय: शाम के समय

व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला रखा जाता है, यानी इस अवधि में न तो खाना खाया जाता है और न पानी पीते हैं। यही वजह है कि इसे सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।

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गर्भवती महिलाओं के लिए फलाहार और जलाहार का विकल्प

आचार्य आनंद भारद्वाज के अनुसार, व्रत का असली महत्व कठोर नियमों में नहीं बल्कि मन की श्रद्धा और संकल्प में है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर कोई महिला निर्जला उपवास न करके फलाहार या जलाहार करती है, तो भी माता करवा और चंद्रदेव उसकी भावना और श्रद्धा को स्वीकार करते हैं।

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गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी सावधानियां

निर्जला व्रत न रखें: पूरी तरह खाली पेट रहने से मां और बच्चे दोनों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है।

फल और दूध का सेवन करें: केले, अनार, पपीता जैसे फाइबर युक्त फल खाएं, जो दिनभर ऊर्जा बनाए रखें।

मेवे और बीज शामिल करें: बदाम, काजू, अखरोट आदि का सेवन करें।

पर्याप्त पानी और जूस पिएं: शरीर में हाइड्रेशन बनाए रखना जरूरी है।

दूध और दूध से बने उत्पाद लें: पनीर, दही आदि से पोषण मिलेगा।

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डॉक्टर से जरूर लें सलाह

गर्भावस्था में लंबे समय तक निर्जला रहना शरीर में पानी की कमी और कमजोरी पैदा कर सकता है। इसलिए व्रत रखने से पहले अपने गाइनोकॉलजिस्ट या डॉक्टर से सलाह लेना बहुत जरूरी है। गर्भवती महिलाएं करवा चौथ का व्रत श्रद्धा और मन की भावना से रख सकती हैं, लेकिन हमेशा सेहत और सुरक्षा को प्राथमिकता दें। फलाहार या जलाहार विकल्प अपनाकर भी व्रत का आध्यात्मिक महत्व पूरी तरह निभाया जा सकता है।
 

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