नारी डेस्क : बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं उनमें खुशी, गम, निराशा और जलन जैसी कई तरह की भावनाएं भी विकसित होती जाती हैं। खासतौर से बच्चे के आसपास के माहौल का असर उसके स्वभाव पर काफी पड़ता है। इस तरह की भावनाएं उनमें कई बार ईर्ष्या को जन्म देने लगती हैं। इसकी वजह खुद माता-पिता होते हैं। उनकी कही बातें और व्यवहार बच्चों को कब अच्छी लगें और कब बुरी, यह पेरैंट्स भी समझ नहीं पाते। यहां बच्चों में ईर्ष्या पनपने के कुछ कारण बताए जा रहे हैं जिन्हें पेरैंट्स को ध्यान रखना जरूरी है-
ओवर प्रोटेक्टिव
कई माता-पिता ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों को लेकर ओवर प्रोटैक्टिंग होते हैं। वे हर चीज में बच्चों का इतना ज्यादा ख्याल रखते हैं कि बच्चा उससे प्रभावित होने लगता है। पेरैंट्स की यह आदत बच्चे के सामाजिक और व्यावहारिक विकास के साथ उसके आत्मविश्वास पर भी असर डालती है। इस स्थिति में बच्चा हमेशा सोचता है कि उसके माता-पिता ही उसकी सुरक्षा करेंगे। वहीं जब पेरैंट्स उस बच्चे की जगह दूसरे बच्चे पर ध्यान देने लगें तो उसके मन में दूसरे बच्चे के प्रति ईर्ष्या की भावना पनपने लगती है।
बहुत ज्यादा लाड-प्यार
बच्चो का बहुत ज्यादा लाड़-प्यार करना भी ईर्ष्या का कारण बन सकता है। ऐसे बच्चे छोटी-छोटी बातों पर माता-पिता पर निर्भर हो जाते हैं। ऐसे में अगर घर में कोई दूसरा बच्चा आ जाए जिसे उसकी जगह लाड़-प्यार मिले तो वह उस बच्चे से खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं।
दूसरे बच्चों से तुलना
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि माता-पिता रिश्तेदारों या पड़ोसी के बच्चों के अच्छे नंबर आने पर अपने बच्चे की तुलना उनसे करने लगते हैं। तुलना करते समय पेरैंट्स को उस समय यह समझ नहीं आता कि वे क्या कर रहे हैं, लेकिन इसका दुष्प्रभाव बच्चे पर पड़ने लगता है। जाने-अंजाने में आपका बच्चा पड़ोसी या रिश्तेदारों के बच्चों से जलने लगता है। बच्चे के अंदर पनपी यह भावना उन्हें हिंसक भी बना सकती है।
क्या करें पेरेंट्स
- ओवरप्रोटैंक्टिव न बनें
- ज्यादा लाड़-प्यार भी न करें
- दूसरे बच्चे से तुलना करने से बचें
- बच्चे के अंदर पनप रही भावना को समझें
- उसके साथ समय बिताएं