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पुरुषों को कड़ी टक्कर देने वाली बॉलीवुड की पहली महिला डायरेक्टर, बना चुकी हैं कई जबरदस्त फिल्में

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 07 Nov, 2022 11:03 AM
पुरुषों को कड़ी टक्कर देने वाली बॉलीवुड की पहली महिला डायरेक्टर, बना चुकी हैं कई जबरदस्त फिल्में

भारतीय सिनेमा को 110 साल हो चुके हैं,वैसे तो इस इंडस्ट्री में पुरुषों का ज्यादा दबदबा है, लेकिन कुछ महिलाओं ने फिल्मों में अपनी क्रिएटिविटी दिखाकर अब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। चाहे वो अभिनेत्री हों या फिर डायरेक्टर। बॉलीवुड फिल्मों में महिलाओं ने डायरेक्टर के तौर पर जिम्मेदार उठाया और उसे बखूबी निभाया है। लेकिन यह हमेशा से ऐसे नहीं था। 50 से 90 के दशक तक सिनेमा जगत में अभिनेत्रियों के अलावा महिलाओं का अन्य कार्यों में भागीदारी न के बराबर थी। ऐसे में इस धारणा को फ़ातमा बेगम ने तोड़ा था। वह पहली महिला डायरेक्टर थीं जिनका भारतीय सिनेमा में बहुत योगदान है। उन्होंने फ़िल्मों में अभिनय के अलावा निर्देशक और राइटर के तौर पर भी अपना दमखम दिखाया। आईए जानते हैं फ़ातमा की फिल्म सफर की कहानी।

कौन थीं फ़ातमा बेगम? 

फ़ातमा बेगम का जन्म 1892 में सूरत के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। वो बचपन से फ़िल्मों की शौकीन थीं और इसी में अपना करियर बनाना चाहती थी। लेकिन एक कंज़र्वेटिव मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखने वाली फ़ातमा के लिए ये सफर आसान नहीं था। 1910 के दशक में भारतीय सिनेमा में महिलाएं महज एक एक्ट्रेस के तौर पर ही इंडस्ट्री में अपना करियर बना सकती थीं। इसके अलावा अन्य कार्यों में केवल पुरुषों का ही दबदबा था। मगर, फ़ातिमा ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने शुरुआत में उर्दू मंचों से अपनी क़ाबलियत दिखानी शुरू की। इसी बीच उनकी शादी नवाब इब्राहीम मोहम्मद याकूत ख़ान से हो गई। उनकी तीन बेटियां हुईं जुबैदा, सुल्ताना और शहजादी, लेकिन यह रिश्ता चला नहीं और उन्होनें तलाक ले लिया। तलाक के बाद फ़ातमा ने तीनों बेटियों की परवरिश खुद से ही की। 

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1922 में की थी पहली फिल्म

इसके बाद फ़ातमा ने खुद का फिल्मी सफर शुरु किया। साल 1922 में बतौर डायरेक्टर वीर अभिमन्यु फिल्म से फिल्मी जगत में कदम रखा। यह एक मूक फिल्म थी जिसके निर्माता अर्देशिर ईरानी थे। इस फ़िल्म के साथ ही उन्होंने इतिहास में अपना नाम बॉलीवुड की पहली महिला डायरेक्टर के तौर पर दर्ज करवा लिया था।साल 1924 में फ़ातमा बेगम ने बतौर एक्ट्रेस ‘सीता सरदावा’, ‘पृथ्वी बल्लभ’, ‘काला नाग’ और ‘गुल-ए-बकवाली’ जैसी फ़िल्मों में अपने एक्टिंग का जलवा बिखेरा। इसके बाद सन 1925 में ‘मुंबई नी मोहनी’ फ़िल्म में अपनी दमदार अदाकारी से हर किसी का दिल जीतने में क़ामयाब रहीं। सन 1926 में फ़ातमा बेगम ने ख़ुद की फ़िल्म कंपनी शुरू की, जिसका नाम ‘फ़ातमा फ़िल्म्स’ रखा गया। सन 1928 में उन्होंने इसका नाम बदलकर ‘विक्टोरिया फ़ातमा फ़िल्म्स’ कर लिया।

 

बुलबुल-ए-पेरिस्तान’ फ़िल्म से मिली कामयाबी 

फ़िल्म कंपनी बनाने के बाद फ़ातमा बेगम ने 3 साल के अंतराल में लगातार 7 फ़िल्मों का डायरेक्शन किया। साल 1926 में आई ‘बुलबुल-ए-पेरिस्तान’ बेहद सफ़ल रही थी। इसके बाद देवी ऑफ़ लव , हीर रांझा , चन्द्रावली  फ़िल्मों का डायरेक्शन भी किया। साल 1929 में ‘शकुंतला’, ‘मिलान’, ‘कनकटारा’, ‘भाग्य की देवी’ जैसी फ़िल्मों में बतौर एक्ट्रेस काम भी किया।

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फ़ातमा बेगम ने ख़ुद को केवल डायरेक्शन तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने कई फ़िल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी। निर्देशन के साथ ही उन्होंने एक्टिंग में भी एक ऊंचा मुकाम हासिल किया। फ़ातमा ने अपने बैनर के अलावा ‘कोहिनूर’ और ‘इंपीरियल स्टूडियो’ के बैनर तले भी कुछ फ़िल्मों का डायरेक्शन किया था। इस दौरान उनके डायरेक्शन में बनी फ़िल्मों को दर्शकों के बीच काफ़ी पसंद किया और ये भारतीय सिनेमा जगत की सबसे सफ़ल फ़िल्में भी रहीं।

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90 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

बॉलीवुड को अलविदा कहने के बाद फ़ातमा बेग़म की विरासत को उनकी 3 बेटियों जुबैदा, सुल्ताना और शहजादी ने संभाला। ये तीनों भारतीय सिनेमा जगत में अपनी मां की तरह ही अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफ़ल रही थीं। इनमें से जुबैदा बॉलीवुड की मूक फ़िल्मों की सुपर स्टार के तौर पर मशहूर हुई थीं। जुबैदा ने 1931 में भारतीय सिनेमा की पहली साउंड  फ़िल्म ‘आलम आरा’ में भी काम किया था।आख़िरकार सन 1983 में फ़ातमा बेग़म ने 90 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन उन्होनें महिलाओं के लिए फिल्मी जगत में खास जगह बना दी, जिसके चलते आज दुसरी महिलाएं भी बड़ चढ़ कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल पा रही हैं।

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