
नारी डेस्क: राजस्थान की राजधानी जयपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल में लगी आग ने पूरे प्रदेश को हिला दिया है। ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में हुए इस अग्निकांड में कई मरीजों की जान चली गई और अब जांच में एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। पता चला है कि आग बुझाने का पूरा सिस्टम सिर्फ 10 कदम दूर था, लेकिन किसी ने उसे चालू तक नहीं किया।
चालू हालत में था फायर फाइटिंग सिस्टम
घटना के बाद जब मीडिया और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे तो देखा गया कि आईसीयू के गेट से मात्र 10 कदम दूर ही फायर फाइटिंग पाइप और नल मौजूद थे। जब नल को खोला गया तो उससे पानी भी आने लगा, यानी सिस्टम चालू स्थिति में था। लेकिन हादसे की रात कोई कर्मचारी इसे इस्तेमाल करने आगे नहीं आया। यह खुलासा इस बात का प्रमाण है कि अस्पताल में सुरक्षा व्यवस्था तो मौजूद थी, लेकिन उसे चलाने की जिम्मेदारी निभाने वाला कोई नहीं था।
“मॉक ड्रिल” सिर्फ दिखावा साबित हुई
अस्पताल प्रशासन की ओर से समय-समय पर फायर मॉक ड्रिल की जाती रही है। कुछ महीने पहले ही SMS अस्पताल में भी ऐसी ड्रिल आयोजित की गई थी, जिसमें कर्मचारियों को आग बुझाने के तरीके सिखाए गए थे। लेकिन इस घटना से साफ है कि मॉक ड्रिल केवल दिखावे के लिए की जाती हैं। असल आपात स्थिति में कर्मचारियों को न तो प्रक्रिया याद रही, न हिम्मत जुटी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि प्रशिक्षण और अनुशासन की भारी विफलता है।
लापरवाही से गई 8 जिंदगियां
ट्रॉमा सेंटर के उस आईसीयू में कई मरीज वेंटिलेटर पर भर्ती थे। जब आग लगी तो धुआं तेजी से फैल गया और कुछ ही मिनटों में पूरा वार्ड दमघोंटू गैस से भर गया। अगर फायर सिस्टम तुरंत चालू किया जाता, तो आग फैलने से पहले बुझ सकती थी और कम से कम 8 जिंदगियां बचाई जा सकती थीं। इस दर्दनाक हादसे ने अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही की पोल खोल दी है।
जांच कमेटी का गठन
राज्य सरकार ने इस अग्निकांड की जांच के लिए 6 सदस्यीय कमेटी गठित की है। कमेटी का नेतृत्व चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव इकबाल खान कर रहे हैं। अन्य सदस्यों में शामिल हैं
सरकार पर उठ रहे सवाल
लोगों का गुस्सा अब सीधे भजनलाल सरकार पर फूट रहा है। जनता पूछ रही है “जब अस्पताल में सिस्टम मौजूद था, तो जिम्मेदारी किसकी थी कि उसका उपयोग नहीं हुआ?” परिजन और आम नागरिक मांग कर रहे हैं कि इस मामले में जिन कर्मचारियों की लापरवाही से जानें गईं, उन पर कड़ी कार्रवाई और बर्खास्तगी होनी चाहिए। वहीं प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि जांच निष्पक्ष होगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
सवाल जो बाकी हैं…
क्या अस्पताल प्रशासन ने रात में ड्यूटी पर पर्याप्त कर्मचारी तैनात किए थे? क्या फायर सिस्टम की नियमित जांच होती थी? मॉक ड्रिल के बाद रिपोर्ट बनाई गई या नहीं? जिन मरीजों की मौत हुई, उनके परिजनों को न्याय कैसे मिलेगा? इन सवालों के जवाब मिलना जरूरी है, ताकि भविष्य में किसी और अस्पताल में सुरक्षा की यह लापरवाही दोबारा न दोहराई जाए।