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लंदन ओलंपिक की टॉर्च बियरर रहीं पिंकी आज पाई-पाई को मोहताज

  • Edited By Anu Malhotra,
  • Updated: 09 Aug, 2021 06:16 PM
लंदन ओलंपिक की टॉर्च बियरर रहीं पिंकी आज पाई-पाई को मोहताज

एक तरफ जहां देश टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर सम्मान जता रहा है वहीं कुछ ऐसे ओलंपिक दावेदार और खिलाड़ी है जो आज गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। जिन्हें आज पूछने वाला कोई नहीं है। जब हाथ में मेडल हैं तो सारी दुनिया आपके कदमों में है वहीं कुछ साल बीत जाने के बाद यही दुनिया में आप गुम हो जाते हैं कुछ ऐसा ही हुआ है  लंदन ओलंपिक में टॉर्च बियरर रही पिंकी करमाकर के साथ जिनकी आर्थिक हालत इतनी बदतर हो गई है कि वह आज पाई-पाई को मोहताज हो गई हैं। इतना ही नहीं घर का गुजारा करने के लिए वह आज एक 167 रुपए दिहाड़ी पर काम करने पर मजबूर है। आईए जानते हैं इनके इस हालात के बारे में -


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167 रुपये की मजदूरी करनी पड़ रही है
 असम के डिब्रूगढ़ की रहने वाली पिंकी ने महज 17 साल की उम्र में लंदन के नॉटिंघमशायर में ओलंपिक टॉर्च लेकर भारत का प्रतिनिधित्व किया था। आज 26 साल की  हो चुकी पिंकी करमाकर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है उन्हें घर चलाने के लिए बोरबोरूआ चाय बागान में रोजाना 167 रुपये की मजदूरी करनी पड़ रही है। 

इस तरह हुआ था  लंदन ओलंपिक ऑर्गनाइजिंग कमेटी में पिंकी का सेलेक्शन
साल 2012 में 17 साल की उम्र में जब पिंकी 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी तो  उस दौरान वो UNICEF Sports for Development (S4D) चलाती थीं। इस प्रोग्राम के तहत पिंकी करीब 40 महिलाओं को सामाजिक मु्द्दों और फिटनेस के प्रति जागरूक करती थीं।  जिसके बाद लंदन ओलंपिक ऑर्गनाइजिंग कमेटी ने उनका चयन भारत के टॉर्च बिययर के तौर पर किया था। 

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असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने किया था पिंकी का स्वागत
इसके बाद पिंकी को नॉटिंघमशायर की सड़कों पर ओलंपिक टॉर्च लेकर दौड़ते देखा गया था। देश लौटने पर उनका स्वागत ऐसे हुआ था जैसे वो देश के लिए कोई मेडल जीतकर लाई हों। इतना ही नहीं इस दौरान असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया था।  

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बड़े सपने देखें थे लेकिन गरीबी ने सारी हिम्मत तोड़कर रख दी है
अपनी हालत पर  पिंकी ने बताया कि जब उन्हें टॉर्च बियरर बनने का मौका मिला तब वो दसवीं क्लास में पढ़ रही थी। उस दौरान उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ था और बड़े सपने भी देख रही थीं, लेकिन गरीबी ने सारी हिम्मत तोड़कर रख दी है। मां की मौत के बाद उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी थी। जिस वजह से उन्हें चाय के बागान में मजदूरी शुरू कर दी। 

इस बात का है मलाल
वहीं पिंकी को आज इस बात का मलला है कि सरकार और UNICEF की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। ओलंपिक टॉर्च रिलेमें देश का प्रतिनिधित्व करने के बाद उनसे कई वादे किए गए लेकिन वो आजतक पूरे नहीं हुए।

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