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वो तवायफ जिससे शादी के लिए दो ब्राह्मणों ने कबूला था इस्लाम धर्म,  बेटी को बनाया बॉलीवुड की सुपरस्टार

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 24 Jul, 2022 06:25 PM

बॉलीवुड एक्टर संजय दत्त की मां नरगिस दत्त के बारे में तो आप जानते होंगे। वह 50 के दशक की फेमस एक्ट्रेस थी जिन्होंने इंडस्ट्री में खूब नाम कमाया। कोलकाता में जन्मी नरगिस, एक तवायफ की बेटी थी जिनका पालन-पोषण एक कोठे में ही हुआ था लेकिन नरगिस की मां भी कुछ कम फेमस नहीं थीं। वो एक ऐसी तवायफ थी जिनके गाने सुनने का शौक, मुगलों की शान हुआ करता था और एक कोठे से ही भारत को पहली महिला संगीतकार मिलीं थीं। ये वो समय था जब लड़कियों का फिल्मों में काम करना तवायफ के पेशे से भी ज्यादा बुरा माना जाता था तब एक कोठे पर गाने वाली ही भारत की पहली फीमेल म्यूजिक डायरेक्टर बनी। 

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संजय दत्त की नानी ने कबूला था इस्लाम

जी हां ,हम बात कर रहे हैं नरगिस की मां जद्दनबाई की जिनके नाती संजय दत्त हैं। एक ऐसी खूबसूरत और आवाज की जादूगर महिला जिससे शादी करने के लिए दो ब्राह्मणों ने इस्लाम कबूला था। चलिए इस पैकेज में उनके बारे में हीआपको बताते हैं। दरअसल, जद्दनबाई अपनी मां की बदौलत ही तवायफ बनी थीं। साल 1900 के दौर में जब भारत पर अंग्रेजों का राज था तो उन  दिनों भारत के इलाहाबाद जिसे अब प्रयागराज कहा जाता है, के एक कोठे पर एक मशहूर तवायफ थीं दलीपाबाई और जद्दनबाई उन्हीं की बेटी थीं। इलाहाबाद की सबसे मशहूर तवायफ दलीपाबाई और पिता मियां जान की बेटी जद्दन का जन्म बनारस में साल 1892 में हुआ था लेकिन 5 साल की उम्र में ही जद्दन बाई ने अपने पिता को खो दिया। 

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दलीपाबाई की जिंदगी में आए थे बहुत उतार-चढ़ाव 

दलीपाबाई की जिंदगी में भी बहुत उतार-चढ़ाव आए थे। वह अपनी शादी के दिन ही विधवा हो गई थी। वह तवायफ और कोठे से ताल्लुक नहीं रखती थी लेकिन एक हादसे ने उन्हें कोठे पर पहुंचा दिया था। दलीपाबाई का बाल-विवाह हुआ था और जब शादी के बाद उनकी बिदाई लेकर बारात पंजाब के गांव के पास पहुंची तो डाकुओं ने हमला कर दिया। सारा दहेज और सोना लूट लिया गया और दूल्हे को गोली मार दी गई। किसी तरह दलीपा अपनी जान बचाकर तो भाग निकली लेकिन ससुराल वालों ने उन्हें अभागन कहा और विधवा प्रथा के कष्ट देने शुरू कर दिए। उन्हें रोज प्रताड़ित किया जाता था लेकिन एक दिन नदी किनारे वह गुनगुनाते हुए कपड़े धो रही थी तो गांव पहुंची मंडली की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने दलीपा की आवाज सुनकर उन्हें साथ चलने को कहा। दलीपा भी घरवालों से तंग थी, साहस कर वह भी राजी हो गई लेकिन उस मंडली के लोगों ने दलीपा को इलाहाबाद के एक कोठे पर बेच दिया जिसके बाद दलीपाबाई वहां से कभी निकल ही नहीं पाई। 

सांरगी वादक मियां जान से करवाई शादी 

कोठे पर ही काम करते उनकी शादी  सारंगी वादक मियां जान से करवा दी गई। दलीपाबाई जो कि ब्राह्मण परिवार से थी लेकिन जब मियां से शादी हुई तो वह मुस्लिम बन गई और शादी के बाद उनके घर जद्दनबाई हुसैन का जन्म हुआ। परवरिश और गाने की फनकारी गायिकी नाच गाना सब अपनी मां से ही मिला। वह कोठे में ही पली बढ़ी लेकिन ये वो कोठे नहीं थे जहां देह व्यापार होता था बल्कि इन कोठों में सिर्फ ठुमरी और गजलें पेश की जाती थीं। मां के बाद जद्दन ने ही मां की जगह ली लेकिन जद्दन को अपनी मां से ज्यादा पहचान हासिल हुई। जद्दन की एक नजर के लोग इस कद्र दीवाने हो जाते थे कि अपना सबकुछ छोड़ने को राजी हो जाते थे। 

जद्दनबाई ने की 3 शादियां

जद्दनबाई ने 3 शादियां की पहले पति गुजराती हिंदी बिजनेसमैन नरोत्तम दास थे जिन्हें बच्ची बाबू के नाम से जाना जाता था। वह जद्दन के कोठे पर पहुंचे तो उन्हें देखते ही जद्दन से प्यार हो गया और जद्दन के लिए उन्होंने इस्लमा कबूला और शादी की। दोनो का एक बेटा हुआ अख्तर हुसैन लेकिन कुछ सालों बाद नरोत्तम जद्दन को छोड़कर हमेशा के लिए चला गया। जद्दन ने अकेले ही अपने बेटे को पाला, उसके बाद कोठे में ही हारमोनियम बजाने वाले मास्टर उस्ताद इरशाद मीर खान का दिल जद्दन बाई पर आ गया जिससे जद्दन ने दूसरी शादी की और इस शादी से भी उन्हें बेटा हुआ जिसका नाम अनवर हुसैन रखा गया लेकिन ये शादी भी नहीं चली, दोनों अलग हो गए।

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इसी बीच जद्दन की मुश्किलें बढ़ गई थी अंग्रेजों को लगता था कि जद्दन अपने घर पर क्रांतिकारियों को जगह देती हैं जिसके चलते वह लगातार छापामारी करती थी। इससे तंग आकर जद्दन ने बनारस छोड़ा और कोलकाता आ गई और यहां एक कोठे पर गाना शुरू किया। यहां उन्हें लखनऊ के एक रईस परिवार का शख्स मिला जिनका नाम था मोहन बाबू जो पानी के जहाज के जरिए कोलकाता से लंदन डॉक्टरी करने जाने वाला था लेकिन जहाज के रवाना होने में देरी हुई तो वह शाम गुजारने के लिए जद्दन बाई के कोठे पर जा पहुंचे। जद्दन बाई को देखने के बाद मोहन बाबू ने उनसे शादी करने का मन बना लिया लेकिन मोहन बाबू एक अमीर खानदानी परिवार से थे इसलिए वह कभी इस शादी के लिए राजी ना होते जबकि जद्दनबाई दो नाकाम शादियां कर चुकीं थीं, दो बच्चों की मां और कोठेवाली थीं। 

उन्होंने मोहन बाबू को कहा कि वह पहले अपने परिवार को जाकर बताएं कि वह एक मुस्लिम तवायफ से शादी करना चाहते हैं फिर वह उनके प्रस्ताव के बारे में सोचेंगी। मोहनबाबू चले गए और चार साल के बाद लौटे लेकिन पूरे परिवार के साथ नाता तोड़कर। इस साहसी कदम के बाद जद्दनबाई ने भी शादी के लिए हां कह दी। मोहन बाबू ने शादी से पहले इस्लाम कबूला और अब्दुल राशिद बन गए। मोहनबाबू की सारी जिम्मेदारी भी जद्दनबाई ने ही उठाईं। साल 1929 में उनके घर बेटी हुई जिनका नाम था फ़ातिमा रशिद जो 50 के दशक की फेमस हीरोइन नरगिस बनी।

सिंगर बनने के लिए पहुंची कोलकाता

कुछ सालों बाद जद्दनबाई सिंगर बनने के लिए बनारस से कोलकाता पहुंच गई जहां उन्होंने संगीत की शिक्षा ली और देखते ही देखते इनके गाए गाने देशभर में पसंद किए जाने लगे। ब्रिटिश शासक भी इन्हें अलग-अलग जगहों पर महफिल सजाने के लिए बुलवाते।  रेडियो स्टेशनों के जरिए इनके गाने देशभर तक पहुंचने लगे। कहा तो यह भी जाता है कि यूनाइटेड किंगडम की म्यूजिक कंपनी ग्रामोफोन इनकी गजलों को रिकॉर्ड करवाकर ले जाया करते थे। उन्होंने  राजा गोपीचंद फिल्म में हीरो की मां रोल  ऑफर हुआ इस तरह एक्टिंग की दुनिया में भी उनकी एंट्री हो गई उसके बाद उन्होंने इंसान और शैतान फिल्म की और कुछ सालों बाद परिवार को लेकर बॉम्बे शिफ्ट हो गईं। जद्दन ने अपना प्रोडक्शन हाउस खोला और फिल्में बनाना शुरू किया। अपने दोनों बेटों को फिल्मों में उतारा लेकिन वह फ्लॉप रहे और इससे उन्हें काफी नुकसान हुआ। इस नुकसान की बरपाई के लिए जद्दन ने बेटी नरगिस को फिल्मी नगरी में उतारना चाहा हालांकि मोहन बाबू जो कि शादी के लिए डाक्टर बनने का सपना छोड़ चुके थे, वह चाहते थे कि उनकी बेटी नरगिस डॉक्टर बने लेकिन मां जद्दन ने कर्ज अदा करने के लिए नरगिस को फिल्मों में लाना जरूरी समझा।

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6 साल की नरगिस ने एक चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर शुरु किया था करियर 


6 साल की नरगिस को बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्मों में आ गई और कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने के बाद नरगिस को 14 साल की उम्र में तकदीर फिल्म से पहचान मिली। साल 1940 आते-आते जद्दन बाई का प्रोडक्शन हाउस बंद होने की कगार पर था क्योंकि कई और प्रोडक्शन हाउस खुल गए थे। कंपनी बंद हुई तो जद्दन ने फिल्मों से दूरी बना लीं। जद्दन का यहीं सपना था कि वह अपनी बेटी नरगिस को सुपरस्टार बनते देखे लेकिन अफसोस ये सपना उनका पूरा नहीं हो पाया। 8 अप्रैल 1949 में कैंसर से जद्दन बाई का निधन हो गया। उन्हें मुंबई के बाबा कब्रिस्तान में दफन किया गया। नरगिस सुपरस्टार हीरोइन बनी और उन्होंने सुनील दत्त से शादी की। साल 1981 में नरगिस की मौत भी कैंसर से हुई और उन्हें भी अपनी मां जद्दनबाई की कब्र के पास ही दफनाया गया। 

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