लम्बोदरा संकष्टी चतुर्थी हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक शुभ दिन है। कृष्ण पक्ष चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित है और भक्त प्रत्येक कृष्ण पक्ष चतुर्थी पर संकष्टी चतुर्थी का उपवास करते हैं। हालांकि माघ महीने के दौरान कृष्ण पक्ष चतुर्थी को सकट चौथ के रूप में भी मनाया जाता है और यह मुख्य रूप से उत्तर भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। सकट चौथ देवी सकट को समर्पित है और महिलाएं उसी दिन अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए उपवास रखती हैं। सकट चौथ की कथा देवी सकात के दयालु स्वभाव का वर्णन करती है।
चांद को देखकर खोला जाता है व्रत
सकट चौथ पर भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सुख-समृद्धि आती है। सकट चौथ को संकट चौथ, तिल-कुटा चौथ, वक्रा-टुंडी चतुर्थी और माघी चौथ के नाम से भी जाना जाता है। सकट चौथ या लम्बोदरा संकष्टी चतुर्थी के दिन उपवास सूर्योदय से चंद्रोदय तक मनाया जाता है, जहां भक्त अपना उपवास खोलते हैं और चंद्रमा को देखकर पारण करते हैं।
सकट चौथ शुभ मूहूर्त
सकट चौथ शुक्रवार, जनवरी 21, 2022
सकट चौथ के दिन चंद्रोदय - 09:06 PM
चतुर्थी तिथि शुरू - 21 जनवरी 2022 को सुबह 08:51 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त - 22 जनवरी, 2022 को पूर्वाह्न 09:14
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं पर विपदा आने पर वह भगवान शिव के पास गए। भोलेनाथ ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि देवताओं की मदद के लिए कौन जाएगा? तब बप्पा ने खुद को इसके लिए सक्षम बताया। इसपर भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेते हुए कहा, "सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटने वाला ही देवताओं की मदद करेगा।"
भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर निकल पड़े लेकिन बप्पा चूहे पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करते। तभी वह हाथ जोड़कर माता-पिता यानि भगवान-शिव और माता पार्वती की परिक्रमा करने लगे। जब भगवान शिव ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि माता पिता के चरणों में ही समस्त लोक समाया है। फिर भोलेनाथ ने गणपति को विजेता घोषित करके देवताओं की मदद के लिए भेजा। साथ ही उन्होंने आशीर्वाद दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन बप्पा की पूजा करके चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और उन्हें पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की भी कमी नहीं रहेगी।
यह व्रत कथा भी है प्रचलित
एक नगर में कुम्हार रहा करता था। एक बार उसने आंवला लगाया लेकिन बहुत दिन बाद भी वो पके नहीं। इसपर कुम्हार ने राजा से जाकर कहा कि पता नहीं क्यों आंवला पक नहीं रहे। राजा ने पंडित से इसका कारण पूछा, जिसपर उन्होंने कहा जब भी आंवला बोया जाएगा एक बच्ची की बलि देनी होगी। राजा के आदेश पर यज्ञ शुरू हुआ और सभी परिवार बारी-बारी अपने पुत्र को भेजते रहे।
कुछ दिनों के बाद, एक बूढ़ी औरत के बेटे की बारी आई। बुजुर्ग औरत यह सोचकर चिंतित हो गई कि अगर उससे बुढ़ापे का सहारा भी छीन गया तो उसका क्या होगा। तभी उसने सुपारी व दूर्वा का बीड़ा देकर पुत्र को आंवला के पास बैठे रहने और भगवान का नाम जपने को कहा। पहले आंवला पकने में काफी दिन लग जाते थे ेलकिन इस बार वो एक ही रात में पक गए। आंवला पकाते ही सभी हैरान रह गए और बुजुर्ग का लड़का भी सुरक्षित था।
इसी तरह जो भी भगवान गणेश की विधि-विधान पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।