04 NOVMONDAY2024 10:19:17 PM
Nari

KarwaChauth 2024: रानी वीरावती की कहानी नहीं सुनी तो अधूूरा रहेगा व्रत, इसे क्यों कहते हैं करवा का चौथ ?

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 18 Oct, 2024 04:17 PM
KarwaChauth 2024: रानी वीरावती की कहानी नहीं सुनी तो अधूूरा रहेगा व्रत, इसे क्यों कहते हैं करवा का चौथ ?

नारी डेस्कः Karwa Chauth 2024: हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत करती हैं। यह व्रत हिंदू परंपरा में खास महत्व रखता है। इस दिन सुहागिनें सोलह-श्रृंगार कर निर्जला व्रत रखती हैं शाम को कथा सुनती हैं और विधिवत पूजन करती हैं और रात को चंद्र अर्घ्य के साथ अपने व्रत को संपूर्ण करती हैं लेकिन इस व्रत को रखने के पीछे करवाचौथ की कहानी आप जानते हैं। वैसे तो करवाचौथ व्रत से बहुत ही पौराणिक कथाएं जुड़ी लेकिन एक कथा सबसे प्रसिद्ध है औऱ कहते हैं इस कथा को सुने बिना आपका व्रत संपूर्ण नहीं माना जाता तो चलिए आपको वहीं प्राचीन कथा सुनाते हैं।

वीरावती के पति प्रेम से जुड़ी है करवाचौथ की प्रसिद्ध कथा | Rani Verawati Karwachauth Katha

करवाचौथ व्रत की कहानियों में एक स्त्री वीरावती की कथा बहुत प्रसिद्ध है। सात भाइयों की इकलौती बहन राजकुमारी वीरावती, एक सेठ की पुत्री थी। वह अपने पिता और भाइयों की बहुत लाडली थी। अपने पति के लिए वह करवा चौथ का व्रत करती हैं लेकिन भाई अपनी बहन को भूखा देखकर काफी दुखी होते हैं और खेतों में आग लगाकर आगे पर्दा करते हैं और आग को चांद बता कर उसे झूठ ही कह देते हैं कि
चांद निकल आया है इसलिए वह भोजन ग्रहण कर लें। 

PunjabKesari

भाइयों की बात मान वीरावती चांद को देखे बिना ही भोजन कर लेती है।  करवाचौथ का व्रत भंग होने पर भगवान गणेश वीरा से नाराज हो जाते हैं। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उसका पति बीमार हो जाता है। पति को ठीक करने के लिए वह पूरा साल करवाचौथ आने तक पश्चाताप और अनुष्ठान करती है, और अपने अपना करवाचौथ का व्रत संपूर्ण करती हैं जिससे उसका पति पहले की तरह स्वस्थ व जीवित हो जाता है। करवाचौथ के तौर पर लगभग सभी ने यही कथा सुनी है।

करवाचौथ से जुड़ी अन्य कथाएं भी यहां पढ़िए...

यमराज का वरदान है करवाचौथ व्रत, पतिव्रता स्त्री करवा के नाम से पड़ा व्रत का नाम 

हालांकि करवाचौथ का नाम करवाचौथ कैसे पड़ा? इसके पीछे भी एक कहानी बताई जाती है। कार्तिक की चतुर्थी का नाम करवाचौथ पड़ा था। जो असल में करवा नाम की एक दूसरी स्त्री की कहानी है, जिसने सावित्री की ही तरह अपने पति के प्राण यमराज से बचा लिए थे। तब यमराज ने करवा के पति के प्रति असीम प्रेम और श्रद्धा देखकर वरदान दिया था कि इस विशेष दिन को तुम्हारे नाम के व्रत से जाना जाएगा और जो स्त्री ये व्रत करेगी उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। तबसे ही करवाचौथ व्रत की परंपरा शुरू हो गई। 

यह भी पढ़ेंः अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करवा चौथ के दिन करें 8 चीजों का दान

सुनिए पतिव्रता स्त्री करवा की कहानी 

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री तुंगभद्रा नदी के किनारे अपने पति के साथ रहती थी। करवा नामक धोबिन का पति काफी बुजुर्ग था। एक दिन स्नान करने गए उसके पति को एक मगर ने पकड़ लिया। वह मदद के लिए 'करवा करवा' चिल्लाकर अपनी पत्नी को सहायता के लिए पुकारने लगा। करवा पतिव्रता स्त्री थी. आवाज़ को सुनकर करवा भागकर अपने पति के पास पहुंची और दौड़कर कच्चे धागे से मगर को आन देकर बांध दिया। सूत के कच्चे धागे से मगरमच्छ को बांधने के बाद करवा यमराज के पास पहुंची थी।

यमराज देव उस समय चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे। करवा ने सात सींक ले उन्हें झाड़ना शुरू किया, यमराज के खाते आकाश में उड़ने लगे। यमराज घबरा गए और बोले- 'देवी! तू क्या चाहती है?'  करवा ने कहा- 'हे प्रभु! एक मगर ने नदी के जल में मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को आप अपनी शक्ति से अपने लोक (नरक) में ले आओ और मेरे पति को चिरायु करो।' करवा की बात सुनकर यमराज बोले- 'देवी! अभी मगर की आयु शेष है। अत: आयु रहते हुए मैं असमय मगर को मार नहीं सकता।' इस पर करवा ने कहा- 'यदि मगर को मारकर आप मेरे पति की रक्षा नहीं करोगे, तो मैं शाप देकर आपको नष्ट कर दूंगी।' 

PunjabKesari

करवा की बात सुन यमराज करवा के साथ वहां आए, जहां मगर ने उसके पति को पकड़ रखा था। यमराज ने मगर को मारकर यमलोक पहुंचा दिया और करवा के पति की प्राण रक्षा कर उसे दीर्घायु प्रदान की। जाते समय यमराज ने करवा को यह वरदान भी दिया- 'जो स्त्री इस दिन व्रत करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा।' करवा ने पतिव्रत के बल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी। तभी से यह दिन करवाचौथ का व्रत यानि करवा के नाम से प्रचलित हो गया। जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ थी। हे करवा माता! जैसे आपने (करवा) अपने पति की प्राण रक्षा की वैसे ही सबके पतियों के जीवन की रक्षा करना। तभी से विवाहित महिलाएं महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैं। करवाचौथ में महिलाएं सुबह से चंद्रमा के निकलने तक व्रत रखती हैं।

यह भी पढ़ेंः KarwaChauth Mehendi Designs 2024: इतना गहरा आएगा रंग कि सखियां पूछेगी राज

मां पार्वती ने रखा था सबसे पहले करवा चौथ का व्रत| Karwa Chauth Mein Kis Devi Ki Puja Hoti Hai

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, करवा चौथ का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने अपने पति भगवान शिव के लिए रखा था। माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को निर्जला व्रत रखा था। इस व्रत के बाद ही उनका विवाह शिव के साथ हुआ था।  कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से ही माता पार्वती को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था और तभी से सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद पाने के लिए करवा चौथ का व्रत रख रही हैं। करवा चौथ की पूजा में दो करवे रखे जाते हैं। इनमें से एक करवा, देवी मां का होता है और दूसरा सुहागिन महिला का। 

PunjabKesari

करवाचौथ पर मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा 

बहुत से लोगों के मन में यह सवाल आता है कि करवाचौथ के दिन किसकी पूजा की जाती है तो बता दें कि इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश, और चंद्रमा की पूजा की जाती है। करवा चौथ का व्रत अनादि काल से चली आ रही परंपरा है। महिलाएं इस दिन बिना जल और अन्न के दिनभर व्रत रखती हैं। भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा की जाती है। पूजा के लिए बालू या सफ़ेद मिट्टी की वेदी बनाकर सभी देवी-देवताओं को स्थापित किया जाता है। मां पार्वती को सोल्ह-श्रृंगार, जैसे मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, और बिछुआ आदि अर्पित किया जाता है। करवा चौथ की पूजा में करवा माता को भी पूजा जाता है। करवा चौथ की रात सुहागिन महिलाएं छलनी से चांद देखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। शाम को चंद्रमा की पूजा के बाद पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोला जाता है। कहा जाता है कि करवा चौथ के दिन चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है।

यह भी पढ़ेंः करवाचौथ पर चंद्र पूजन के सही नियम, चांद को अर्घ्य देते जरूर बोले ये मंत्र

स्वर्ग की देवियों ने रखा था व्रत

एक पौराणिक कथा के अनुसार,  देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध छिड़ा था तो सभी देवियां बेहद चिंतित थीं। वे ब्रह्मदेव के पास पहुंचीं और ब्रह्मदेव से अपनी पतियों की रक्षा के लिए सुझाव मांगा था। कहते हैं, तब ब्रह्मा जी देवियों को कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को व्रत रखने की सलाह दी थी। देवियों ने अपने पति की रक्षा के लिए ये व्रत किया था जो बाद में यह तिथि करवा चौथ के रूप में प्रचलित हुई।

माता सीता ने किया था करवा चौथ उपवास

करवा चौथ व्रत के दिन उपवास का संबंध रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है। मान्यताओं के अनुसार,  माता सीता ने भगवान श्री राम के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था।

महाभारत काल में द्रौपदी ने रखा था व्रत

मान्यताओं के अनुसार,महाभारत से भी करवाचौथ का संबंध बताया जाता है। कहा जाता है कि द्रौपदी, सभी पांडव भाइयों और परिवार से बेहद प्रेम करती थी। महाभारत का युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले की बात है जब एक दिन द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्‍ण से पांडवों के संकट से उभरने का उपाय पूछा था। तब उन्होंने उन्‍हें कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि के दिन करवा का व्रत करने को कहा था। कहते हैं, माता करवा की कृपा से पांडव सकुशल बचे थे। 


 

Related News