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गुड़ी पड़वा के पीछे की पौराणिक कथा और जानिए स्थापना की सही विधि

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 30 Mar, 2022 11:28 AM
गुड़ी पड़वा के पीछे की पौराणिक कथा और जानिए स्थापना की सही विधि

तिथि के आधार पर चैत्र मास की शुक्ला पक्ष को गुडी  पड़वा का त्योहार मनाया जाता है। इसी दिन चैत्र मास के नवरात्रे भी शुरु होती है। गुड़ी पड़वा को उगादी और संवत्सर पड़वो भी कहते हैं। इस त्योहार को महाराष्ट्र, गोवा और आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है। यहां के लोग इस पर्व को नए साल के पहले दिन की तरह बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। इसी दिन लोग माता शैलपुत्री की पूजा करते हैं और घरों में कलश की स्थापना करते हैं। तो चलिए बताते हैं इस त्योहार का महत्व और पूजा का सही समय... 

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त्योहार का महत्व 

गुड़ी शब्द का अर्थ है - 'विजय पातका'। ऐसी मान्यता है कि शालिवाहन नाम के कुम्हार के बेटे ने मिट्टी की एक सेना तैयार की थी और उनके ऊपर पानी का छिड़काव करके अपनी जान दी थी । जिसके बाद सेना ने शत्रुओं को हराकर विजय प्राप्त की। शालिवाहन शक का आरंभ इसी बात का प्रतीक माना जाता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे शहरों में यह त्योहार उगदी और महाराष्ट्र में इस त्योहार को गुड़ी पड़वा के रुप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और इसी दिन सतयुग की शुरुआत हुई थी।

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 पूजा का शुभ मुहूर्त 

पंचाग के मुताबिक, 01 अप्रैल शुक्रवार 11:53 मिनट पर चैत्र शुक्ला पक्ष की तिथि का आरंभ हो रहा है। 2 अप्रैल, शनिवार 11:58 तक यह शुभ मुहूर्त रहेगा। जिसके बाद गुड़ूी पड़वा का पावन त्योहार शुरु हो जाएगा। 

घर पर कैसे बनाएं गुड़ी? 

इस दिन घर पर एक उल्टा पीतल का बर्तन रखा जाता है। जिसके ऊपर सूर्य की सीधी किरणें पड़ती हैं। इसे गहरे रंग की पीली साड़ी और फूलों की सुंदर माला से सजाया जाता है। घर के बाहर इसे आम के पत्तों और नारियल के साथ फहराने की तरह लटका दिया जाता है। घर के दरवाजे पर ऊंचे खड़े रहकर स्वाभिमान और जीवन की किसी भी परेशानी को अटूटता से लड़ने का संदेश देता है। इसकी स्थापना इस तरीके से की जाती है कि यह दूर से भी अच्छे से दिखाई दे सके। इसे समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। 

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