देश भर में कोरोना वैक्सीन का अभियान चल रहा है। 1 मार्च से देश में वैक्सीन का दूसरा चरण भी शुरू कर दिया गया है। वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में अभी भी बहुत सारे सवाल हैं। वहीं हाल ही में कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड के दोनों डोज लेने के समय के अंतर को बढ़ा दिया गया है।
डोज देने के बीच के अंतर पर किया गया विचार
दरअसल हाल ही में कोविशील्ड के दो डोज के बीच अंतराल पर नेशनल टेक्निकल एडवायजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (NTAGI) और कोविड-19 के वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन पर नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप (NEGVAC) ने डोज देने के बीच के समय अंतर पर दोबारा विचार किया है। वहीं कोविशील्ड की दूसरी डोज को पहले डोज के बाद 4-8 हफ्ते के अंतराल पर लगाने का सुझाव दिया गया है। आपको बता दें कि यह अंतराल इससे पहले 4 से 6 हफ्तों का था। साथ ही आपको ये भी बता दें कि दो डोज के बीच यह संशोधित समय सिर्फ कोविशील्ड पर लागू होगा न कि कोवैक्सीन पर।
अब इस समय के अंतराल के बाद लगेगी वैक्सीन
इस फैसले के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को खत लिखा और कहा कि भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने NTAGI और NEGVAC के सुझावों को मान लिया है। साथ ही केंद्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार NTAGI और वैक्सीनेशन एक्सपर्ट ग्रुप की ताजा रिसर्च के बाद फैसला लिया गया है कि अगर वैक्सीन की दूसरी डोज 6 से 8 हफ्ते के बीच में दी जाती है तो इससे ज्यादा लाभ होगा।
बता दें कि केंद्र के निर्देशों के अनुसार कोविशील्ड की पहली और दूसरी डोज के बीच कम से कम 6 से 8 हफ्ते का अंतर होना चाहिए। पहली और दूसरी डोज के बीच का अंतर 28 दिन का है। इसका अर्थ है कि अब एक से दूसरी डोज के बीच का अंतर एक महीने से बढ़ा दिया गया है।
इन लोगों में देखी जा रही अधिक गतिशीलता
गौरतलब है कि कोरोना का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। पंजाब और महाराष्ट्र से इसके सबसे ज्यादा केस सामने आ रहे हैं। बात पंजाब की करें तो राज्य में लगभग दो तिहाई रोगियों में कोरोना की दूसरी लहर देखी गई। ये लोग 20 और 60 के बीच आयु वर्ग के हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इस आयु वर्ग के लोगों में अधिक गतिशीलता देखी जा रही है क्योंकि उन्हें काम के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है। आंकड़ों की मानें तो 31 से 40 वर्ष की आयु के लोग वायरस से सबसे अधिक असुरक्षित हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
इस पर विशेषज्ञ कहते हैं कि उनके विश्लेषण से यह पता चलता है कि जान गंवाने वालों में से 78% को तब अस्पताल लाया गया जब उनके लक्षण गंभीर हो गए थे। कोरोना से मौतों के पीछे सबसे बड़ा कारण लक्षणों की रिपोर्टिंग में देरी है।