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मिलिए 80 साल की दादी 'फूलों की रानी' से, जो व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे कर रही बिजनेस

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 25 Oct, 2020 12:43 PM
मिलिए 80 साल की दादी 'फूलों की रानी' से, जो व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे कर रही बिजनेस

विकलांगता व्यक्ति के शरीर नहीं बल्कि दिमाग में होती है। अगर कोई ठान ले कि उसके कुछ करना है तो हाथों-पैरों की विकलांता उसे मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। इस बात कि मिसाल है 80 साल की उद्यमी दादी स्वदेश चड्ढा, जो अपने घर से सजावट फूलों का बिजनेस चलाती हैं। 'फूलों की रानी' के नाम से मशहूर स्वदेश व्हीलचेयर पर बैठकर खुद का बिजनेस कर रही हैं। चलिए आपको बताते हैं इनकी प्रेरित करने वाली कहानी...

रावलपिंडी से झांसी तक का सफर 

दिल्ली की रहने वाली स्वदेश बताती हैं कि बंटवारे के बाद वह रावलपिंडी (पाकिस्तान) छोड़ उत्तर प्रदेश के झांसी आ गए। इसके बाद उन्होंने आगरा के सेंट जोसेफ कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और 25 साल की उम्र में उनके परिवार ने उनकी शादी एक आर्मी ऑफिसर से हर दिया। पति की वजह से स्वदेश को दुनिया का हर कोना देखने का मौका मिला और साथ ही अलग-अलग तरह के फूल भी। इसी दौरान उनके पति की पोस्टिंग देहरादून में हुई तो उन्हें एक एकड़ जमीन तक फैला आर्मी हाउस दिया गया। ऐसे में उन्होंने वहां बागवानी शुरू कर दी, जिसके लोग ग्लैडियोली हाउस से पुकारने लगे और फूलों को भी देखने के लिए आने लगे।

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बेटी से मिली प्ररेणा

इसके बाद स्वदेश अपनी बेटी पुनीता के साथ नोएडा से गुरुग्राम शिफ्ट हो गई। उनकी बेटी अपने परिवार के साथ रहती थी और यहीं से उनके बिजनेस की भी शुरूआत हुई। पुनीता वीकेंड पर लगने वाले बाजार में फूलों की सजावट का काम करती थी। तब एक दिन स्वदेश बेटी की मदद के लिए उनसे साथ गई लेकिन पुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि वह उन्हें किस काम पर लगाएं, खासकर जब वह व्हीलचेयर पर बैठी हों। इसपर स्वदेश ने उन्हें कहा कि वह फूलों की सजावट के काम में हाथ बटां सकती हैं। इसके बाद उन्होंने देखा कि दिल्ली की मार्केट में अच्छे फूल नहीं मिल रहे थे तो उन्होंने इसे बदलने का सोचा। उनकी इसी इच्छा के चलते 'फूलों की रानी' को स्टार्ट मिला। स्वदेश को उनके परिवार के लोग व दोस्त रानी कहकर बुलाते हैं इसलिए उन्होंने अपने बिजनेस को भी 'फूलों की रानी' नाम दे दिया। रोजाना Delhi-NCR के कई घरों में करीब 100 फूलों के गुच्छे भेजे जाते हैं, जिसकी संख्या लगातार बढ़ रही है।

घरों को महका रहा है फूलों की रानी

इसके बाद उन्होंने गुरुग्राम के होराइजन प्लाजा वीकेंड बाजार में उन्होंने पहला फ्लावर स्टॉल लगाया। फूल बेचने के लिए स्वदेश अपने छोटे मिनीबॉक्स को लेकर बैठ गई और ग्राहकों को फूल बेचने के साथ उसे मेंटेन रखने के टिप्स भी देती रहीं। कुछ महीने तक तो उनका काम काफी अच्छा चलता रहा लेकिन फिर लॉकडाउन की वजह से काम बंद करना पड़ा। मगर, लॉकडाउन के पहले महीने से ग्राहकों ने उन्हें फोन करना शुरू कर दिया कि क्या वो उन्हें फूल भेजना कब शुरू करेंगी। इससे उन्होंने उत्साहित होकर अपने ग्राहकों को फूल बेचने और डिलीवरी सर्विस शुरू कर दी। सबसे खास बात यह है कि स्वदेश द्वारा बेचे जाने वाले फूल मार्केट में आसानी से नहीं मिलते।

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ग्राहकों को भेजे जाते हैं फ्रेश फूल

पुनीता बताती हैं कि उनके पास किसान और थोक विक्रेताओं का नेटवर्क है, जिनसे वह फूल खरीदकर बेचती हैं। उनके द्वारा बेचने जाने वाले फूल फ्रेश व खिले हुए होते हैं। कई बार उनके पास पहुंचते-पहुंचे फूल मुरझा भी जाते हैं लेकिन फिर वह उन्हें बेचती नहीं। डिलीवरी से पहले स्वदेश खुद हर ऑर्डर चेक करती हैं। यही नहीं, वह व्हाट्सएप के जरिए ग्राहकों को फूलों की देखभाल के टिप्स भी देती हैं।

फूलों के लिए स्वदेश का जुनून

एक किस्से को याद करते हुए उनकी बेटी ने बताया, "एक बार हम श्रीनगर घूमने गए थे कि तभी डल झील में मां को एक बैंगनी कमल का फूल दिखा। उन्होंने फूल को देहरादून ले जाने का फैसला किया और पौधे को जड़ समेत पानी से बाहर खींच लिया। हमने मां को रोका कि कहीं वह पानी में ना गिए जाए लेकिन वह हार मानने वाली नहीं थी। इसके बाद हमारे देहरादून में भी बैंगनी कमल खिल गए। पौधे को इकट्ठा करना और उनकी देखभाल मां के स्वभाव में शुरू से ही है।"

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34 साल की उम्र में अर्थराइटिस लेकिन...

34 साल की उम्र में स्वदेश को अर्थराइटिस होने के कारण हिप-रिप्लेसमेंट सर्जरी करवानी पड़ी लेकिन फूलों के लिए उनका जुनून कम नहीं हुआ। वह हमेशा की पॉजिटिव रहने की कोशिश करती हैं, फिर परिस्थिति चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों ना हो। स्वदेश कहती हैं, "इतने सारे फूलों में से किसी 1-2 को चुनना बहुत मुश्किल है लेकिन रजनीगंधा, नरगिस, गैल्डिओली आदि अधिक पसंद है।"

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पैसा रखता है मायने 

उनकी बेटी का कहना है, 'हम ये नहीं कह सकते के कितना मुनाफा हो रहा है। बिना किसी इन्फ्रास्ट्रक्चर में पैसे लगाए भी हम थोड़ा बहुत कमा रहे हैं। कभी-कभी लगभग 6,000 रुपए कमाई हो जाती है तो कभी वह भी नहीं मिलता। जो भी कमाई होती है उसे स्वदेश के खाते में जमा किया जाता है।

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