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आखिर क्यों की जाती है शिवलिंग की आधी परिक्रमा ? जानिए कारण

  • Edited By palak,
  • Updated: 09 Aug, 2023 05:07 PM
आखिर क्यों की जाती है शिवलिंग की आधी परिक्रमा ? जानिए कारण

परिक्रमा करना कई धर्मों का चलन है। माना जाता है कि परिक्रमा करने से व्यक्ति के जन्मों-जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि परिक्रमा का एक-एक कदम चलने से कई तरह के पापों का नाश होता है। परंतु आपने परिक्रमा करते वक्त इस बात पर ध्यान दिया होगा कि सभी देवी-देवताओं की पूरी परिक्रमा की जाती है परंतु शिवलिंग की सिर्फ आधी परिक्रमा की जाती है। शिव आदि देव हैं। उनकी पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों रुपों में ही की जाती है। परंतु भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पूजा करने के नियम अलग हैं। शिवलिंग की पूजा करने की कुछ अलग मर्यादाएं भी बताई गई हैं। शिवलिंग की आधी परिक्रमा करना शास्त्रों में शुभ माना गया है इस परिक्रमा को चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। इस दौरान जलाधारी को लांगना मना होता है परंतु आधी परिक्रमा के पीछे का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण क्या है आज आपको इसके बारे में बताएंगे....

शिवलिंग को माना जाता है इस बात का प्रतीक

ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, शिव पुराण समेत कई सारे शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का नियम बताया गया है। वहीं इसका धार्मिक कारण है कि शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग पर लगातार जल अर्पित किया जाता है और यह जल बहुत ही पवित्र माना जाता है। जिस मार्ग से यह जल बाहर निकलता है उसे निर्मली,  सोमसूत्र और जलाधारी कहते हैं।

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क्यों नहीं लांघी जाती जलाधारी? 

शिवलिंग इतनी शक्तिशाली होती है कि जब उस पर जल चढ़ाया जाए तो उस जल में शिव और शक्ति दोनों की ऊर्जा के कुछ अंश मिल जाता हैं। इस जल में इतनी ऊर्जा होता है कि यदि व्यक्ति इसे लांघे तो यह ऊर्जा लांघते हुए उसके शरीर में चली जाती है जिसके कारण व्यक्ति को वीर्य और रज से जुड़ी शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए शास्त्रों के अनुसार, जलाधारी को लांघना शुभ नहीं माना जाता है।

वैज्ञानिक कारण भी जुड़ा है इसके पीछे 

वहीं अगर वैज्ञानिक कारण की बात करें तो शिवलिंग ऊर्जा और शक्ति का भंडार मानी जाती है। इसके आस-पास के क्षेत्रों में रेडियो एक्टिव तत्वों के अंश भी मौजूद होती है। काशी के भूजल में यूरेनियम के अंश भी मिले हैं। यदि हम भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप देखते हैं तो इससे पता चलता है कि शिवलिंग के आस-पास के क्षेत्रों में रेडिएशन मौजूद होता है। यदि अपने एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार पर गौर करते हैं तो शिवलिंग के आकार और एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार में भी आपको समानता दिखेगी। ऐसे में जब शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाए तो इतनी ज्यादा एनर्जी होती है जिसे लांघने से व्यक्ति को बहुत ही ज्यादा नुकसान हो सकता है। इसलिए शिवलिंग की जलाधारी को लांघना वैज्ञानिक कारणों में मना किया गया है। 

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ऐसी स्थिति में लांघी जा सकती है जलाधारी 

ज्योतिष मान्यताओं की मानें तो कहीं-कहीं पर शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल सीधे भूमि में जाता है तो वहां पर कहीं भी जलाधारी ढकी नहीं होती। ऐसी स्थिति में आप शिवलिंग की पूरी परिक्रमा कर सकते हैं और ऐसे में जलाधारी को लांघने से भी कोई दोष नहीं लगता। 

चंद्राकार की परिक्रमा का अर्थ

शिवलिंग की परिक्रमा के दौरान भक्त जलाधारी तक जाकर घर वापिस आते हैं। ऐसे में अर्द्ध चंद्र का आकार बनता है और इसलिए इस परिक्रमा को चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। इस परिक्रमा के कुछ नियम हैं। आमतौर पर यह परिक्रमा दाई ओर से की जाती है परंतु शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाई ओर से ही की जाती है। फिर जलाधारी से वापस दाई और लौटकर आप घर आ सकते हैं। 

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