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रीति-रिवाजों और सात फेरों के बिना नहीं मानी जाएगी हिंदू शादी, Supreme Court का फैसला

  • Edited By palak,
  • Updated: 02 May, 2024 11:20 AM
रीति-रिवाजों और सात फेरों के बिना नहीं मानी जाएगी हिंदू शादी, Supreme Court का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने शादी को लेकर अब एक अहम फैसला सुनाया है। एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है और यह सॉन्ग डांस, वाइनिंग-डायनिंग का आयोजन नहीं है। यदि अपेक्षित सेरेमनी नहीं हुई है तो हिंदू विवाह अमान्य होगा और पंजीकरण भी इस तरह की शादी को वैध नहीं बताता। इस फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत कानूनी जरुरतों की पवित्रता को भी साफ किया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑग्स्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 19 अप्रैल को इस संबंध में फैसला सुनाया है। पीठ ने युवा पुरुष और महिलाओं से यह आग्रह भी किया है कि शादी से पहले वह इस विवास संस्कार के बारे में गहराई से सोचें और यह भी कि भारतीय समाज में ये संस्कार कितने पवित्र हैं। 

शादी एक पवित्र समारोह है 

शीर्ष अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह सिर्फ नाच-गाने और खाने-पीने या दहेज और गिफ्ट मांगने जैसे अनुचित दबाव डालने का मौका नहीं होते। ऐसी किसी भी शिकायत के बाद आपराधिक कार्यवाही शुरु होने की भी संभावना है। पीठ ने आगे कहा कि शादी का मतलब कोई व्यावसायिक लेन देन नहीं होता। यह एक पवित्र समारोह है जिसे एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए आयोजित किया जाता है। इसमें एक लड़का और लड़की भविष्य में एक परिवार के लिए पति-पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं जो भारतीय समाज की एक मुख्य ईकाई है।

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सात फेरे लेना जरुरी 

कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 7 की उपधारा (2) में यह साफ कहा गया है कि ऐसे संस्कारों और समारोहों में सात फेरे शामिल हैं। पवित्र अग्नि के आगे फेरे लेना जरुरी होता है। इस दौरान सातवां कदम उठाने के बाद शादी पूरी हो जाती है और ऐसे में हिंदू शादी के अनुष्ठान में अपेक्षित समारोह लागू हुए रीति-रिवाजों के अनुसार, ही होने चाहिए। 

इस मामले पर हुई सुनवाई 

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला की याचिका के दौरान सुनाया। यह तलाक की याचिका थी जिसे बिहार के मुजफ्फरपुर की एक अदालत से झारखंड के रांची की एक अदालत में ट्रांसफर करने की मांग रखी गई थी। याचिका लंबी होने के कारण महिला उनके पहले साथी ने संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत एक संयुक्त आवेदन दायर करके विवाद सुलझाने की कोशिश की। इस जोड़े की सगाई 7 मार्च 2021 में होने वाली थी लेकिन उन्होंने दावा किया कि 7 जुलाई 2021 को उनकी शादी खत्म हो गई। उन्होंने वैदिक जनकल्याण समिति से एक मैरिज सर्टिफिकेट भी लिया। इस सर्टिफिकेट के आधार पर उन्होंने उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम 2017 के अंतगर्त मैरिज सर्टिफिकेट भी लिया। वहीं उनके परिवारों ने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, शादी की तारीख 25 अक्टूबर 2022 को तय की और वे अलग-अलग रहते थे परंतु उनके बीच मतभेद पैदा हो गए और यह मामला कोर्ट तक पहुंच गया।

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मैरिज सर्टिफिकेट से नहीं मिलेगी शादी को मान्यता 

पीठ ने फैसले पर कहा कि हिंदू विवाह यदि रीति-रिवाजों, संस्कारों और सत फेरे जैसे तय नियमों के अनुसार, नहीं होता तो उसे हिंदू मैरिज नीहं माना जााएगा। अधिनियम के अंतर्त एक वैध शादी के लिए अपेक्षित समारोह करने जरुरी है। कोई विवाद यदि उत्पन्न होता है तो उस समारोक के प्रदर्शन का सर्टिफिकेट भी होना चाहिए। जब तक दोनों पक्षों ने ऐसे समारोह नहीं किए तब तक अधिनियम की धारा 7 के अनुसार, कोई भी हिंदू शादी नहीं मानी जाएगी।  

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