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ब्लाउज से पहले क्या था फैशन? जानिए क्यों बदला महिलाओं का पहनावा

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 21 Jun, 2025 04:30 PM
ब्लाउज से पहले क्या था फैशन? जानिए क्यों बदला महिलाओं का पहनावा

नारी डेस्क: साड़ी के साथ पहनने वाला ब्लाउज आज हर महिला की अलमारी में आम है। बाजार में आपको हर तरह के डिज़ाइन के ब्लाउज आसानी से मिल जाते हैं-जैसे डीप नेक, वी-नेक, राउंड नेक, स्लीवलेस और भी बहुत कुछ। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ब्लाउज का इतिहास कितना पुराना और दिलचस्प है? एक वक्त था जब ब्लाउज नाम की चीज़ के बारे में लोग जानते तक नहीं थे। तब महिलाएं साड़ी के साथ क्या पहनती थीं? और यह ब्लाउज आखिर आया कैसे?

क्या महिलाएं पहले ब्लाउज पहनती थीं?

पुरानी मूर्तियों और चित्रों में आप महिलाओं को साड़ी में तो देखेंगे, लेकिन ब्लाउज नहीं दिखेंगे। इसका मतलब यह है कि पहले ब्लाउज जैसा कोई कपड़ा नहीं था। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, बंगाल में Victorian युग तक कुछ महिलाएं साड़ी के नीचे ब्लाउज नहीं पहनती थीं। समय के साथ यह चलन बदलने लगा और धीरे-धीरे ब्लाउज पहनना आम हो गया। भारत के अलग-अलग राज्यों में साड़ी पहनने के कई तरीके होते थे और ब्लाउज का चलन हर जगह अलग-अलग समय पर शुरू हुआ।

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ब्लाउज से पहले महिलाएं क्या पहनती थीं?

ब्लाउज से पहले महिलाएं “अंतरिया” और “उत्तरीय” पहनती थीं। ये दोनों बिना सिले हुए कपड़े होते थे।  शरीर के निचले हिस्से को ढकने के लिए। ऊपरी हिस्से को ढकने के लिए। इसके अलावा स्तनों को ढकने के लिए “स्तन पत्ता” का इस्तेमाल होता था। ये सभी कपड़े आज के ब्लाउज से अलग थे, जो खास तौर पर सिलकर बनाए जाते हैं।

भारत में ब्लाउज का आइडिया कब आया?

18वीं सदी से पहले ब्लाउज का मतलब आज के ब्लाउज से बहुत अलग था। ब्रिटिश राज के दौरान जब पश्चिमी कपड़ों का प्रभाव बढ़ा, तो ब्लाउज और पेटीकोट पहनने का चलन भारत में धीरे-धीरे शुरू हुआ। हालांकि महिलाओं को ब्लाउज के बारे में जागरूक करना और इसे लोकप्रिय बनाना कोई आसान काम नहीं था।

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इस काम में सबसे बड़ा योगदान रवींद्रनाथ टैगोर की भाभी ज्ञानदानंदिनी देवी का माना जाता है।

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रवींद्रनाथ टैगोर की भाभी और ब्लाउज का कनेक्शन

ज्ञानदानंदिनी देवी, रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर की पत्नी थीं। वे महिलाओं के लिए ब्लाउज और कमीज़ को प्रचलित बनाने वाली पहली महिला मानी जाती हैं। कहा जाता है कि ब्रिटिश काल में एक बार उन्हें क्लब में एंट्री नहीं दी गई क्योंकि उन्होंने साड़ी के साथ ब्लाउज नहीं पहना था। इस घटना ने ब्लाउज पहनने का चलन शुरू करने में मदद की। तब से कई महिलाएं ब्लाउज पहनने लगीं।

साड़ी पहनने की ट्रेनिंग भी दी ज्ञानदानंदिनी ने

ज्ञानदानंदिनी देवी ने सिर्फ ब्लाउज ही नहीं, बल्कि साड़ी पहनने के नए-नए तरीके भी महिलाओं को सिखाए। उन्होंने कई महिलाओं को एक साथ बुलाकर उन्हें साड़ी को कैसे स्टाइलिश तरीके से पहनना है, यह बताया। उन्होंने ब्रह्मिका साड़ी बांधने का तरीका भी लोकप्रिय किया। आज भी भारत में महिलाएं साड़ी पहनने के कई अलग-अलग स्टाइल आजमाती हैं, जिनका क्रेडिट ज्ञानदानंदिनी देवी को जाता है।

आज के आधुनिक ब्लाउज के डिजाइन

आज के समय में ब्लाउज सिर्फ एक कपड़ा नहीं बल्कि फैशन का हिस्सा बन गया है। हॉल्टर नेक, स्लीवलेस, वी-नेक, डीप नेक, बैकलेस जैसे कई तरह के ब्लाउज डिज़ाइन आपको बाजार में आसानी से मिल जाएंगे। यह न केवल भारतीय महिलाएं बल्कि विदेशी महिलाएं भी साड़ी के साथ पहनती हैं।

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ब्लाउज: अब सिर्फ एक कपड़ा नहीं, भारतीय संस्कृति का हिस्सा

ब्लाउज अब सिर्फ साड़ी का साथी नहीं रह गया, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। जवान लड़कियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक हर उम्र की महिला ब्लाउज को अपने स्टाइल के हिसाब से पहनती है। ब्लाउज की इस विकास यात्रा ने भारतीय फैशन की एक नई पहचान बनाई है।

तो अगली बार जब आप नया ब्लाउज पहनें, तो इसके पीछे छुपी इस दिलचस्प और लंबी कहानी को जरूर याद रखें!

  

 
 

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