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अजीबो गरीब बीमारी से जूझ रही 5 महीने की बच्ची, करोड़ों में है इसके एक इंजेक्शन की कीमत

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 11 Feb, 2021 11:50 AM
अजीबो गरीब बीमारी से जूझ रही 5 महीने की बच्ची, करोड़ों में है इसके एक इंजेक्शन की कीमत

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक बच्ची की तस्वीर जमकर वायरल हो रही है जिसके इलाज के लिए अब उसे 16 करोड़ का टीका लगेगा। आज भारत चाहे आगे बढ़ चुका है लेकिन अभी भी भारत में कुछ बीमारियों के इलाज नहीं हैं। इन्हीं में से एक है जिससे 5 महीने की बच्ची तीरा गुजर रही है। आपने इन दिनों सोशल मीडिया पर तीरा की तस्वीरें देखी होंगी जिसके इलाज के लिए पीएम मोदी ने भी इस इंजेक्शन पर लगने वाला टैक्स माफ कर दिया है। तो चलिए आज हम आपको इस बीमारी और इस मंहगे इंजेक्शन के बारे में सब कुछ बताते हैं। 

5 महीने की तीरा को है यह बीमारी 

खबरों की मानें तो तीरा को जो इंजेक्शन लगाया जाना है उसकी कीमत करोड़ों में हैं और यह इंजेक्शन अमेरिका से मंगाया जाना है। सोशल मीडिया पर जब इस इंजेक्शन के बारे में लोगों को पता चला तो हर कहीं इस बीमारी के बारे में ही चर्चा होने लगी। दरअसल 5 महीने की तीरा स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी नाम की गंभीर बीमारी से जूझ रही है। यह एक ऐसी बीमारी है जो एक स्वस्थ इंसान को भी कमजोर कर देती है। हालांकि भारत में इस बीमारी का अभी इलाज नहीं आ पाया है। 

धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है शरीर

स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसके कारण बच्चा काफी कमजोर हो जाता है। उसके शरीर के कईं हिस्से काम करना बंद कर देते हैं यानि कि बॉडी के कईं हिस्सों में मूवमेंट नहीं हो पाती है। हालत इतनी खराब हो जाती है कि बच्चा चल फिर भी नहीं पाता है। इसका कारण यह होता है कि शरीर की मांसपेशियां का कंट्रोल पूरी तरह खत्म हो जाता है। 

शरीर को ऐसे घेर लेती है यह बीमारी 

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इस डिसऑर्डर के कारण बॉडी पर साफ असर दिखने लगता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो जेनेटिक भी हो सकती है यानि कि आने वाली पीढ़ी को भी हो सकती है। हम सब जानते हैं कि हमारी पूरी बॉडी नर्व सेल्स के कारण ही काम करता है। वह हमें इशारा देता है और हमारी बॉडी काम करती है लेकिन इस डिसऑर्डर के कारण ब्रेन की नर्व सेल्स और स्पाइनल कॉर्ड डैमेज कर देती है जिसके कारण बॉडी को कोई धीरे धीरे मसल्स कंट्रोल करने का भी मैसेज नहीं मिल पाता है। ऐसे में बच्चा मूवमेंट करना बंद कर देता है स्थिती इतनी खराब हो जाती है बच्चा हिल डुल भी नहीं पाता है। 

5 महीने की तीरा में दिखने लगे थे यह लक्षण 

मीडिया रिपोर्टस की मानें तो तीरा जब मां का दूध पीती थी तो उसका दम घुटने लगा था इतना ही नहीं तीरा के शरीर में पानी की कमी भी होने लगी थी। कईं बार तो तीरा की कुछ सेकेंड के लिए सांसे भी रूक जाती। जब तीरा की बॉडी में यह लक्षण दिखाए देने लगे तो माता-पिता को खतरे का अंदाजा हुआ और जब डॉक्टर से बातचीत की गई तो पता चला कि बच्ची को एसएमए टाइप 1 है। दरअसल विशेषज्ञों की मानें तो इंसानों के शरीर में एक ऐसा जीन होता है जो प्रोटीन बनाता है और इससे मांसपेशियां और तंत्रिकाएं जीवित रहती हैं लेकिन तीरा के शरीर में यह जीन मौजूद नहीं था। 

अब आपको बताते हैं इसके इंजेक्शन के बारे में जिसकी कीमत करोड़ों में है

आपको बता दें कि 5 महीने की तीरा को जो इंजेक्शन लगेगा उसका नाम Zolgensma इंजेक्शन है जिसे स्विट्ज़रलैंड की कंपनी नोवार्टिस ने तैयार किया है। खबरों की मानें तो ये इंजेक्शन जीन थेरेपी के आधार पर काम करती है। अगर 2 साल से छोटा बच्चा इस डिसऑर्डर से जूझ रहा है तो उसे ये इंजेक्शन लगता है, तो उसकी जेनेटिक बीमारी ठीक की जा सकती है। दरअसल यह डिसऑर्डर जीन की खराबी के कारण होता है ऐसे में Zolgensma इंजेक्शन उसे नए जीन से रिप्लेस करता है।  जिसके बाद शरीर में दोबारा यह बीमारी नहीं होती इसका कारण होता है कि बच्चे के डीएनए में नया जीन शामिल हो जाता है।

स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी के होते हैं इतने टाइप 

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यह बीमारी सुनने में चाहे छोटी लगती है लेकिन इससे जूझ रहे व्यक्ति को ही इस बीमारी का अंदाजा हो पाता है। खबरों की मानें तो इस बीमारी के 5 टाइप होते हैं। 

. पहले जब बच्चा पेट में होता है तो जन्म से ही बच्चों के जोड़ों में दर्द की समस्या रहती है
. दूसरी स्थिती में बच्चा सिर भी नहीं हिला पाता है, कुछ निगलने तक में भी दिक्कत आती है
. इसके अलावा इस बीमारी का हाथों-पैरों में ज्यादा देखने को मिलता है
. कईं बार तो आने वाले समय में व्हीलचेर तक की जरूरत पड़ जाती है
. इसका अलावा यह वयस्कों में भी दिखता है। मांसपेशियां में कमजोर हो जाती है और सांस लेने में तकलीफ होती है। हाथ-पैरों पर असर दिखता है।

क्या असरदार है इसका इंजेक्शन?

करोड़ों में कीमत रखने वाला क्या यह इंजेक्शन सच में कारगर है? इस पर विशेषज्ञों की मानें तो कुछ बच्चों पर इसका क्लीनिकल ट्रायल किया गया था और उसके नतीजों की मानें तो उनमें से 10 बच्चों में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले थे। देखा जाए तो इसके अलावा इस बीमारी का और कोई इलाज भी नहीं है।

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