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गुरू अर्जुन देव जी के जन्म से लेकर शहीदी के वो 3 दिन

  • Edited By Harpreet,
  • Updated: 26 May, 2020 04:19 PM
गुरू अर्जुन देव जी के जन्म से लेकर शहीदी के वो 3 दिन

इंसानियत की सच्ची मूर्त गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी गुरपर्व पूरी दुनिया में पूरे भावपूर्वक तरीके से आज मनाया जा रहा है। गुरू अर्जुन देव जी सिक्खों के पांचवे गुरू थे, जो आज भी शब्द रूप में साहिब श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में विराजमान हैं। गुरू साहिब बचपन से ही काफी शांत स्वभाव के थे। अपने पूरे जीवन काल में वह बहुत कम बोले। गुरू अर्जुन देव जी एक बहुत ही सूझवान और लोगों के हित में सोचने वाले लीडर थे। उन्होंने लोगों की सेवा करने और उनकी तकलीफों को दूर करने के लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया। उनके मन में सिक्ख धर्म के अलावा सभी धर्मों के लिए अपार प्रेम और इज्जत थी। मुग्ल शासकों द्वारा उन्हें गर्म तवे पर बिठाकर शहीद किया गया। उनकी यह शहीदी पूरी दुनिया में इनकलाबी की एक लहर लेकर आई।

जन्म, माता-पिता और बच्चे

गुरू साहिब का जन्म 2 मई, 1563 ईसवीं को पंजाब के गांव गोविंदवाल में हुआ। उनके पिता जी का नाम श्री गुरू रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी जी है। गुरू साहिब का विवाह माता गंगा जी से हुआ और उनके घर हरगोबिंद साहिब जी ने जन्म लिया, जो आगे चलकर सिक्खों के छठे गुरू बने। उनके पिता जी गुरू रामदास जी भी सिक्खों के चौथे गुरु थे।

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लोग करते थे अथाह प्रेम

गुरु साहिब को गर्म तवे पर बिठाकर शहीद करने वाला जहांगीर था। असल में अपने भाईचारे के लोगों का गुरु साहिब के पास जाकर उनकी बातें सुनना जहांगीर को पसंद नहीं था। जिस वजह से वह हमेशा गुरू साहिब के विरूद्ध साजिशें करता रहता। मगर देवों की मूर्त गुरू अर्जुन देव जी के मन में सभी के प्रति इतना स्नेह था कि लोग उनके दर्शन किये बगैर रह ही नहीं पाते थे। गुरू साहिब की चुप्पी का फायदा उठाते हुए जहांगीर ने एक दिन गुरू साहिब को बंदी बना लिया। लगातार आए दिन वह गुरु साहिब पर अत्याचार करता रहा, उन्हें सिक्ख धर्म छोड़कर मुस्लिम बनने के लिए मजबूर करता रहा। मगर गुरू साहिब भले सभी धर्मों का सत्कार करते थे, मगर उन्होंने जिस घर, जिस धर्म में खुद जन्म लिया, उसे अपने आखिरी सांस तक निभाने का उन्होंने प्रण लिया था।

3 दिन तक किया अत्याचार

अंत में जब सभी अत्याचारों के बाद भी जहांगीर गुरू साहिब से धर्म परिवर्तित नहीं करवा सका तो उसने जल्लादों को गुरु साहिब को गर्म तवे पर बिठाकर शहीद करने के आदेश दिए। गुरू साहिब चुपचाप बैठे रहे। गर्म तवे पर बैठकर गुरू साहिब ने गुरू नानक देव जी की बाणी जप जी साहिब का पाठ आरंभ कर दिया। सभी लोग वहां खड़े हैरान रह गई कि गुरू साहिब गर्म तवे पर भी किस तरह इतने शांत बैठे हैं। उस दिन के बाद लोगों के मन में गुरू साहिब के लिए प्यार, सत्कार और स्नेह और भी बढ़ गया। गर्म तवे पर बिठाकर जल्लादों ने उनके केस यानि बालों में गर्म रेत डाली। लगातार 3 दिन तक गुरू साहिब को गर्म तवे पर बिठाया गया। धीरे-धीरे करके उनके शरीर से चमड़ी उतरने लगी।

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रावी नदी में स्नान

जब जहांगीर ने देखा कि गुरू साहिब पर इस अत्याचार का कोई असर नहीं पड़ा, तो उसने गाय का चमड़ा लाने के आदेश दिए। जब गुरू साहिब ने सुना तो तब उन्होंने रावी नदी में जाकर स्नान करने की बात जहांगीर को कही। जहांगीर उनकी बात मान गया। जब गुरू साहिब रावी नदी में स्नान करने गए तो वहीं लुप्त हो गए। असल में वो नहीं चाहते थे कि गाय जैसे मासूम जीव का कत्ल हो। जहांगीर की सेना ने गुरू साहिब को बहुत ढूंढने की कोशिश की, मगर गुरू साहिब तो कब के परमात्मा ज्योति में विलीन हो चुके थे।

सिक्ख पंथ द्वारा लंगर

आज गुरू साहिब के इस शहीदी पर्व के मौके पर सिक्ख पंथ जगह जगह पर लंगर, ठंडे-मीठे पानी के जल लगाकर संगत की सेवा करते हैं। ताकि गुरू साहिब जैसी सहन शक्ति, धर्म के प्रति जान बलिदान करने का साहस और गरीब मजलूमों के प्रति मन में दया सदैव बनी रहे। 

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