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बेहद दर्द में जी रही है पहलगाम हमले में मारे गए शुभम द्विवेदी की पत्नी, बोली- हमारा कसूर क्या था

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 28 Jul, 2025 05:09 PM
बेहद दर्द में जी रही है पहलगाम हमले में मारे गए शुभम द्विवेदी की पत्नी, बोली- हमारा कसूर क्या था

नारी डेस्क:  सोमवार को लोकसभा में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर चर्चा के दौरान, पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ित शुभम द्विवेदी की पत्नी ऐशन्या द्विवेदी ने इस भयावह घटना के सभी 26 पीड़ितों के लिए 'शहीद' का दर्जा देने की मांग की। उन्होंने राजनीतिक नेताओं पर इस साल 22 अप्रैल के हमले की गंभीरता को कम आंकने का भी आरोप लगाया और उन्हें याद दिलाया कि "आतंकवादियों ने किसी की जाति या राजनीतिक दल नहीं पूछा - उन्होंने भारतीयों पर हमला किया"।

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ऐशन्या ने पीटीआई-भाषा को बताया- "पहलगाम आतंकी हमले को तीन महीने हो गए हैं और अब जाकर इस मामले पर संसद में चर्चा हो रही है।" ऐशान्या ने कहा- "यह इतनी बड़ी त्रासदी है, और 'ऑपरेशन सिंदूर' के ज़रिए ही इसे मान्यता मिल रही है। हम अभी भी मान्यता (शहीद का दर्जा) के लिए संघर्ष कर रहे हैं।" उन्होंने कहा कि  "देश को शोक संतप्त परिवारों के साथ खड़ा होना चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए। मैं सिर्फ़ 27 या 28 साल की हूं मुझे नहीं पता कि लोग हमसे क्या करने की उम्मीद करते हैं या वे हमसे कैसे आगे बढ़ने की उम्मीद करते हैं। लेकिन मैं एक बात जानती हूं मैं इस देश की बेटी हूं और वह इस धरती के सपूत थे।अगर यह देश सचमुच अपने नागरिकों के साथ खड़ा है, तो यही समय है इसे ज़ाहिर करने का" ।

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शुभम की पत्नी ने कहा कि यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। उन्होंने पीटीआई से कहा- "मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कुछ लोग - XYZ या कोई भी ऐसे असंवेदनशील बयान क्यों दे रहे हैं। क्या वे भूल जाते हैं कि वे पहले भारतीय हैं?" उन्होंने कहा, "यह आतंकवादी हमला किसी की राजनीतिक संबद्धता पूछकर नहीं किया गया था... यह भारतीयों पर, हमारे अपने लोगों पर, इस देश में शांति से रह रहे हिंदुओं पर हमला था।" साथ ही, उन्होंने कहा कि देश आतंकवाद से कैसे लड़ेगा, इस सवाल पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके पति शुभम द्विवेदी और आतंकी हमले में मारे गए 25 अन्य लोगों को 'शहीद' का दर्जा दिलाना उनकी प्राथमिकता है।

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ऐशन्या ने आगे कहा- "शुभम सिर्फ़ मरा नहीं उसने देश के लिए अपनी जान दे दी। शहीद कहलाने के लिए इससे ज़्यादा और क्या चाहिए?" उनका कहना है कि पीड़ितों के परिवारों - खासकर उनकी पत्नियों को "कोई आधिकारिक आश्वासन, कोई सार्थक राहत और कोई मान्यता नहीं मिली है। उनके पीछे छूट गए परिवारों का क्या? सरकार उनकी पत्नियों, बच्चों और हममें से उन लोगों के लिए क्या कर रही है जिन्हें अब इस नुकसान के साथ जीना पड़ रहा है? ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई है। 26 महिलाओं के लिए, 'पति' शब्द अब अस्तित्व में नहीं है। हमने किसी प्रियजन से ज़्यादा खोया है; हमने अपना सहारा, अपना भविष्य खो दिया है। लेकिन अब तक, सरकार की ओर से एक भी कदम ऐसा नहीं उठा है जिससे हमें एहसास हो कि हमें उनकी परवाह है,।

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