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राजा प्रियव्रत की कहानी से जुड़ी है छठ की पूजा, जानिए कैसे हुई इस पर्व की शुरुआत

  • Edited By palak,
  • Updated: 29 Oct, 2022 05:03 PM
राजा प्रियव्रत की कहानी से जुड़ी है छठ की पूजा, जानिए कैसे हुई इस पर्व की शुरुआत

कार्तिक शुक्ल पक्ष के छठे दिन छठी का महापर्व बहुत ही धूमधाम से बिहार, पूर्वी उत्तर-प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता है। परंतु त्योहार की आस्था और महत्व को देखते हुए ये त्योहार देश के साथ-साथ विदेशी भारतीय मूल लोग भी मनाते हैं। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, यह पर्व कार्तिक महीने में धूमधाम से मनाया जाता है। छठ के पर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है और पूरे 4 दिन तक यह पर्व मनाया जाता है। लेकिन इस त्योहार को मनाया क्यों जाता है और इसकी शुरुआत कैसे हुई आपको इसके बारे में बताते हैं....

वैदिक काल से मनाया जा रहा है छठ का पर्व 

छठ का पर्व वैदिक काल से मनाया जा रहा है। इस बार व्रत की शुरुआत 28 अक्टूबर यानी की पिछले कल से हो चुकी है। 28 अक्टूबर से लेकर व्रत 31 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाएगा। यह पर्व सूर्य देव और प्रकृति से जुड़ा है जिसे वैदिक काल से मनाया जा रहा है। 

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महाभारत और रामायण से जुड़ी है छठ की कहानी 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ की पौराणिक कथा रामायण और महाभारत के साथ जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे उस समय द्रोपदी ने चार दिनों तक इस व्रत को रखा था। वहीं कुछ कथाओं के अनुसार मां सीता ने छठ के पर्व को खत्म किया था। पुराणों में भी इस पर्व की शुरुआत और महत्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। परंतु राजा प्रियव्रत की कथा का महत्व पुराणों में सबसे ज्यादा मिलता है। माना जाता है कि इस कहानी के बाद आप छठ के व्रत और महत्व को अच्छे से समझ पाएंगे। 

राजा प्रियव्रत की महाकथा 

छठ की पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी। जिसके कारण वह और उनकी पत्नी बहुत ही दुखी रहते थे। संतान की प्राप्ति की इच्छा के साथ राजा और उनकी पत्नी महार्षि कश्यप के पास गए। महार्षि कश्यप ने यज्ञ करवाया और इसके बाद राजा की पत्नी गर्भवती हो घई परंतु नौ महीने बाद उसने संतान के रुप में पुत्र को जन्म दिया। लेकिन वह पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। इसी को देखकर प्रियव्रत और उसकी रानी और भी दुखी हो गए। 

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षष्ठी देवी हुई थी उत्पन्न 

संतान न हो पाने के कारण राजा ने अपने बेटे के साथ ही श्मशान पर ही प्राण त्यागने और आत्महत्या करने का मन बना लिया था। लेकिन जैसे राजा प्राण त्यागने लगे तो वहां पर देवी प्रकट हुई । यह देवी ब्रह्मा  की पुत्री देवसेना थी। देवी ने राजा से बताया कि वह सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से पैदा हुई हैं। उन्होंने कहा मैं षष्ठी देवी हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे और बाकी लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करोगे तो मैं पुत्र रत्न प्रदान करुंगी। राजा ने मां की आज्ञा मानकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी की पूजा पूरे विधि-विधान से व्रत रखकर की। पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करने के बाद राजा को बेटे की प्राप्ति हुई थी। राजा ने कार्तिक महीने की शुक्ल षष्ठी को यह व्रत किया। मान्यताओं के अनुसार, इसी के बाद छठ के व्रत की शुरुआत हुई। 

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