नारी डेस्क: हर वर्ष जनवरी माह में मकर संक्रांति से पूर्व लोहड़ी का उत्सव मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन भगवान सूर्यदेव व अग्नि की पूजा करने का विधान है। लोहड़ी के त्यौहार से जुड़ी कई पौराणिक और लोक कथाएं हैं, जिनमें से एक कथा भगवान कृष्ण और माता सती से संबंधित है। इस कथा के माध्यम से लोहड़ी के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को समझा जा सकता है।
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माता सती की कथा
यह कथा तब की है जब माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में भाग लिया था। राजा दक्ष ने अपने इस यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था, जिससे माता सती अपमानित महसूस कर रही थीं। यज्ञ के दौरान, राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे क्रोधित होकर माता सती ने ने अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। माना जाता है कि सती के अग्नि में समर्पित होने के कारण लोहड़ी का पर्व मनाया जाने लगा और तब से यह परंपरा चली आ रही है।
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भगवान कृष्ण की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापरयुग में एक समय मकर संक्रांति का पर्व मनाया गया। सभी लोग उसमें व्यस्त थे तब बालकृष्ण को मारने के लिए कंस ने एक राक्षसी को भेजा, जिसका नाम लोहिता था, लेकिन श्रीकृष्ण ने खेल ही खेल में लोहिता राक्षसी का वध कर दिया। मान्यता है कि लोहिता के वध के उपलक्ष्य में लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।
लोहड़ी का संबंध
यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बन गया। लोहड़ी की अग्नि को यज्ञ की आग का प्रतीक माना जाता है, जिसमें लोग अन्न, रेवड़ी, मूंगफली, और गजक अर्पित करते हैं, जिससे वे भगवान को धन्यवाद देते हैं और समृद्धि की कामना करते हैं।