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तुलसी विवाह 2024: भगवान विष्णु ने क्यों किया था तुलसी से विवाह? जानें तुलसी विवाह के नियम और विधि

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 04 Nov, 2024 04:01 PM
तुलसी विवाह 2024: भगवान विष्णु ने क्यों किया था तुलसी से विवाह? जानें तुलसी विवाह के नियम और विधि

नारी डेस्क: तुलसी विवाह 2024: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पवित्र उत्सव 13 नवंबर 2024 को आयोजित किया जाएगा। इस लेख में हम जानेंगे कि भगवान विष्णु ने तुलसी से विवाह क्यों किया और इस पर्व की पूजा विधि क्या है।

तुलसी विवाह का महत्व

तुलसी विवाह का त्योहार सनातन पंचांग के अनुसार देवउठनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा से जागते हैं और उनका विवाह तुलसी जी के साथ होता है। यही दिन है जब सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है, और शहनाई बजने लगती है।

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भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह

पौराणिक कथा के अनुसार, दैत्यों के राजा जलंधर ने तीनों लोकों में आतंक मचाया था, और वह अपनी पतिव्रता पत्नी वृंदा के कारण अजेय था। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण करके वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग किया, जिससे जलंधर भगवान शिव के हाथों मारा गया।

इस घटना के बाद वृंदा ने आत्मदाह कर लिया और भगवान विष्णु को पत्थर बनने का शाप दिया। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि तुलसी का विवाह उनके शालिग्राम स्वरूप से होगा, क्योंकि वृंदा के आत्मदाह के स्थान पर एक तुलसी का पौधा प्रकट हुआ। तभी से तुलसी और विष्णु के बीच का यह विवाह अनंत काल तक चलता है।

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तुलसी विवाह की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है

स्नान और पूजा

सबसे पहले, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें ताकि आप ताजगी और पवित्रता के साथ पूजा शुरू कर सकें। स्नान के बाद, शंख और घंटा बजाते हुए भगवान विष्णु को जगाएं। यह आपके दिन की शुरुआत को शुभ बनाता है और वातावरण में धार्मिकता का संचार करता है।

विवाह की तैयारी

घर और मंदिरों में दीये जलाएं ताकि वातावरण में उजाला और उत्सव का माहौल बन सके। शाम को सूर्यास्त के समय गोधूलि वेला में भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह सम्पन्न होता है, जो कि एक पवित्र समय होता है। इस समय विशेष रूप से परिवार के सभी सदस्यों का एकत्रित होना जरूरी है।

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मंडप सजाना

एक चौकी पर आसन बिछाकर तुलसी और शालिग्राम की मूर्ति स्थापित करें। चौकी के चारों ओर गन्ने और केले का मंडप सजाएं, जो इस विवाह समारोह की भव्यता को और बढ़ाता है। यह सजावट न केवल धार्मिक होती है, बल्कि यह आपके घर को भी आनंदमय बनाती है।

पूजन सामग्री

कलश और गौरी-गणेश का पूजन करें, क्योंकि ये सभी मांगलिक कार्यों के आरंभ का प्रतीक होते हैं। माता तुलसी को श्रृंगार के सभी सामान और लाल चुनरी अर्पित करें, जिससे उनका आभा और भी बढ़ जाए। यह प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है, जो आपकी भक्ति को दर्शाता है।

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मंगलाष्टक का पाठ

पूजा के बाद तुलसी मंगलाष्टक का पाठ करें। परिवार के लोग विवाह के गीत और मंगलगान गा सकते हैं, जिससे वातावरण में खुशी और उल्लास का संचार होता है। यह पूजा को और अधिक शुभ बनाता है और सभी को एक साथ बांधता है।

फेरे

हाथ में आसन सहित शालिग्राम को लेकर तुलसी के सात फेरे लें। यह फेरे न केवल विवाह का महत्व दर्शाते हैं, बल्कि प्रेम, समर्पण और एकता का भी प्रतीक होते हैं। फेरे पूरे होने के बाद भगवान विष्णु और तुलसी माता की आरती करें, जो इस पवित्र अनुष्ठान का समापन करती है।

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प्रसाद वितरण

आरती के बाद सपरिवार भगवान विष्णु और तुलसी माता को प्रणाम करें और पूजा के अंत में प्रसाद बांटें। यह प्रसाद न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह परिवार में एकता और प्रेम को भी बढ़ाता है। सभी को प्रसाद ग्रहण करने से मानसिक और आध्यात्मिक लाभ होता है।

तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भगवान विष्णु और तुलसी के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से हम अपनी आस्था को और मजबूत कर सकते हैं और अपने जीवन में सकारात्मकता ला सकते हैं। इस विशेष दिन का पालन करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि यह हमारे परिवार में प्रेम और एकता का संचार भी करता है।

आप सभी को तुलसी विवाह की शुभकामनाएं!

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