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जानिए कैसे मिला भगवान शिव को तीसरा नेत्र, ये है पौराणिक कथा

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 17 Sep, 2024 05:11 PM
जानिए कैसे मिला भगवान शिव को तीसरा नेत्र, ये है पौराणिक कथा

नारी डेस्क: भगवान शिव का तीसरा नेत्र, जो उनके मस्तक के बीच में स्थित है, भारतीय पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण और रहस्यमय माना जाता है। यह नेत्र ज्ञान का प्रतीक है और अज्ञानता को समाप्त करने की क्षमता से युक्त है। इसके साथ ही, इसे प्रलय के समय सृष्टि के संहार का संकेत भी माना जाता है। आइए जानते हैं भगवान शिव को यह तीसरा नेत्र कैसे मिला और इसकी पौराणिक कथा क्या है।

 महाभारत की कथा के अनुसार

भगवान शिव के तीसरे नेत्र के बारे में महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें नारद मुनि भगवान शिव और माता पार्वती के बीच बातचीत को स्पष्ट करते हैं। इस कथा के अनुसार, हिमालय पर भगवान शिव की सभा में सभी प्राणी, देवता, और ऋषि-मुनि एकत्रित थे। 

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 भगवान शिव के नेत्र

जब भगवान शिव की आंखें बंद हो गईं, तो संसार में अंधकार छा गया और ऐसा प्रतीत होने लगा कि सूर्य का अस्तित्व समाप्त हो गया है। इस स्थिति को देखकर भगवान शिव के माथे से स्वयं एक ज्योतिपुंज प्रकट हुआ, जो उनके तीसरे नेत्र के रूप में प्रकट हुआ। 

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माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत

माता पार्वती ने जब इस ज्योतिपुंज के बारे में शिव से पूछा, तो भगवान शिव ने उत्तर दिया कि, "मैं इस जगत का पालनहार हूं। जब मेरी आंखें बंद होती हैं, तो इस संसार का नाश हो जाता है। इसलिए मैंने अपने तीसरे नेत्र को प्रकट किया।"

तीसरे नेत्र का महत्व

ज्ञान और विवेक का प्रतीक तीसरा नेत्र ज्ञान और विवेक का प्रतीक है। यह अज्ञानता और अंधकार को समाप्त करने की शक्ति रखता है। प्रलय का संकेत प्रलय के समय भगवान शिव अपने तीसरे नेत्र को खोलते हैं, जिससे सृष्टि का संहार होता है और नए सृजन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। शक्ति और समृद्धि यह नेत्र भगवान शिव की अनंत शक्ति और समृद्धि को भी दर्शाता है, जो सृष्टि के हर क्षेत्र में प्रभावी है। संतुलन और न्याय भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रकट होना यह सुनिश्चित करता है कि सृष्टि में संतुलन और न्याय बना रहे, और किसी भी असामान्यता को तत्काल समाप्त किया जा सके। यह नेत्र भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान प्राप्त करने की प्रेरणा देता है।

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इस प्रकार, भगवान शिव का तीसरा नेत्र न केवल उनके दिव्य स्वरूप को दर्शाता है, बल्कि ब्रह्मांड के संतुलन और सृजन के महत्व को भी रेखांकित करता है।

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