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ऋषि पंचमी का व्रत आज, जानिए इसका महत्व और पूजा की विधि

  • Edited By palak,
  • Updated: 01 Sep, 2022 11:10 AM
ऋषि पंचमी का व्रत आज, जानिए इसका महत्व और पूजा की विधि

हिंदू पंचांग के मुताबिक, हर साल भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी मनाई जाती है।  ऋषि पंचमी का व्रत शास्त्रों के अनुसार, गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है। इस साल ऋषि पंचमी का व्रत आज यानी की 01 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन 7 ऋषियों को पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि ऋषि पंचमी के दिन गंगा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। तो चलिए आपको बताते है इस व्रत की कथा और महत्व...

क्या है व्रत का महत्व? 

ऋषि पंचमी का व्रत पाप से मुक्ति पाने के लिए रखा जाता है। ऐसा माना जाता है जो महिलाएं ये व्रत रखती हैं उनसे जाने-अनजाने में हुई भूल और पाप खत्म हो जाते हैं। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व होता है। पंचागों के मुताबिक, पूजा का शुभ मुहूर्त 1 सितंबर यानी आज सुबह 11 बजकर 5 मिनट से लेकर दोपहर के 1 बजकर 37 मिनट तक है। व्रत के दिन सूर्योदय से पहले गंगा नदी में स्नान करना उत्तम माना जाता है। यदि आप गंगा नदी में स्नान नहीं कर सकते तो घर में गंगाजल डालकर आप स्नान कर सकते हैं। 

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पूजा की विधि 

आप शुभ मुहूर्त में पूजा के स्थान पर गोबर से लेप करें फिर चौकोर मंडल से सप्त ऋषि कश्यप यानी कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वषिष्ठ की स्थापना करें। फिर षोडोपचार से पूजन करें। इसके बाद सप्तऋषियों को मिठाई, पुष्प, जनेऊ, फूल चढ़ाएं। पूजा करने के बाद कथा पढ़ें। इसके बाद केला, घी, चीनी व दक्षिणा रखकर ब्राह्मण या ब्राह्मणी को दान करें। इस व्रत के दौरान दिन में एक बार भोजन किया जाता है। व्रत में दूध, दही, चीनी, अनाज किसी भी चीज का सेवन नहीं किया जाता। फल और मेवे भी व्रत में नहीं खाए जाते। 

न करें ये गलतियां 

धार्मिक मान्यता के मुताबिक, व्रत करने वाली स्त्रियां ऋषि पंचमी के दिन जमीन में बोए हुए अनाज का सेवन न करें। दिन में सिर्फ एकबार भोजन ही करें। मोरधन, कंद, मूल, आहार का सेवन कर व्रत करें। सारा दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें। 

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ये चीजें करें दान 

इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को दान भी जरुर करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि व्रत करने से फल जल्दी मिलता है। आप किसी भी ब्राह्मण को केला, घी, शक्कर का दान करें। दान के अलावा आप अपनी इच्छा के मुताबिक, दक्षिणा भी दें। 

ऋषि पंचमी के व्रत की कथा 

पुराणों के मुताबिक, राजा सिताश्व जी ने एक बार ब्रह्माजी से पूछा - हे पितामह, सब व्रतों में श्रेष्ठ और तुंरत फल देने वाला व्रत कौन सा है। इस पर ब्रह्मा जी ने जवाब दिया ऋषि पंचमी का व्रत सारे व्रतों में श्रेष्ठ और पाप को विनाश करने वाला होता है। ब्रह्माजी ने बताया कि - हे राजन विदर्भ देश में एक उत्तंक नाम का सदाचारी ब्राह्माण रहता था। ब्राह्माण की पत्नी सुशीला पतिव्रता थी। उसका एक बेटा और बेटी थे। ब्राह्माण की बेटी शादी के बाद विधवा हो गई थी। जिसके बाद दुखी ब्राह्माण दंपत्ति अपने बेटी के साथ गंगा किनारे कुटिया बनाकर रहने लगा। कुछ समय के बाद उत्तंक को पता चला कि उसकी बेटी और जन्म में महीना होने पर भी पूजा के बर्तनों को हाथ लगा लेती थी। जिसके बाद उसके शरीर में कीड़े पड़ गए थे। धर्म शास्त्रों के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि महीना होने पर स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी और तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। चौथे दिन ही स्त्री स्नान करने के बाद शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन के साथ ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसे पाप से मुक्ती मिल सकती है। पिता की बात मान कर बेटी ने पूरे विधि विधान के साथ ऋषि पंचमी का व्रत और पूजा की। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई थी। इसके साथ ही उसे अगले जन्म में अखंड सौभाग्य होने का वर प्राप्त हुआ।  

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