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यश चोपड़ा ने दिलाया था 'खय्याम साहब' को बदकिस्मती का अहसास, जानिए कुछ अनसुनी बातें

  • Edited By Priya dhir,
  • Updated: 20 Aug, 2019 04:46 PM
यश चोपड़ा ने दिलाया था 'खय्याम साहब' को बदकिस्मती का अहसास, जानिए कुछ अनसुनी बातें

हिंदी सिनेमा के मशहूर संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम सोमवार 19 अगस्त को दुनिया से अलविदा कह गए। वह 28 जुलाई से मुंबई अस्पताल के आईसीयू में थे। पद्मभूषण से सम्मानित खय्याम फेफड़ों की इंफेक्शन के चलते भर्ती हुए थे। डॉक्टर्स ने उनकी मौत की वजह कार्डिएक अरेस्ट बताई है। उनकी मौत की खबर सुनकर हिंदी सिनेमा में शोक की लहर है। चलिए आज हम आपको इस महान संगीतकार के जिंदगी के सफर के बारे में बताते हैं...

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पंजाब के जालंधर जिले में जन्मे खय्याम साहब का नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी था बचपन से ही वह सिनेमा की ओर आकर्षित हो गए। वह केएल सहगल की तरह सिंगर-ऐक्टर बनना चाहते थे हालांकि वह महान संगीतकार बने। 'कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है', 'मैं पल दो पल का शायर हूं' जैसी दिल को छू लेने वाली धुन तैयार करने वाले खय्याम के म्यूजिक करियर की शुरुआत 17 साल की उम्र में हो गई थी। साल 1953 में उन्होंने बॉलीवुड में एंट्री ली। उनकी पहली फिल्म 'फुटपाथ'थी। आखिरी खत, कभी कभी, त्रिशूल, नूरी, बाजार, उमराव जान और यात्रा जैसी फिल्मों के शानदार म्यूजिक ने खय्याम को दर्शकों के दिल में बैठा दिया।

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वह जितने उम्दा कंपोजर थे उससे भी बेहतर शख्सियत थे। उन्होंने अपने 89वें जन्मदिन पर नए आर्टिस्ट्स को सपॉर्ट करने के लिए पूरी दौलत लगभग 10 करोड़ रुपए दान करने का ऐलान किया था।

आशा और लता को कहते थे पटरानी और महारानी...

खय्याम लता मंगेशकर, आशा भोंसले, किशोर कुमार, अनवर अली, मुकेश, शमशाद बेगम, मोहम्मद रफी जैसे बेहतरीन गायकों के साथ काम कर चुके हैं। आशा और लता दोनों बहनों की आवाज़ में उनका संगीत बहुत कामयाब रहा। 

खय्याम साहब दोनों बहनों के बारे में कहते थे- 'मैं इन दो बहनों के लिए कहूंगा कि एक संगीत की पटरानी हैं तो दूसरी महारानी। मैं जब भी इनसे मिलता हूं तो हम बस यही बात करते हैं कि कैसे जमाना बदल गया है।'

खय्याम साहब से जुड़ा बदकिस्मती का किस्सा...

कुछ लोग उन्हें बदकिस्मत भी कहते थे और इस बात का अहसास उन्हें यश चोपड़ा ने करवाया था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि खय्याम की सभी फिल्मों का म्यूजिक तो हिट होता था लेकिन कभी भी सिल्वर जुबली नहीं कर पाया था। 

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इस बारे में खय्याम ने एक इंटरव्यू में कहा था-'यश चोपड़ा अपनी एक फिल्म का म्यूजिक मुझसे करवाना चाहते थे लेकिन सभी उन्हें मेरे साथ काम करने के लिए मना कर रहे थे। उन्होंने मुझे कहा भी था कि इंडस्ट्री में कई लोग कहते हैं कि खय्याम बहुत बदकिस्मत आदमी हैं और उनका म्यूजिक हिट तो होता है लेकिन जुबली नहीं करता।' इसके आगे खय्याम कहते हैं- 'इन सब बातों के बावजूद मैंने यश चोपड़ा की फिल्म का म्यूजिक दिया और उस फिल्म ने डबल-जुबली कर डाली और सबका मुंह बंद कर दिया।'

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खय्याम साहब 'उमराव जान' का संगीत बनाते समय डरे हुए थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- 'पाकीज़ा और उमराव जान की पृष्ठभूमि एक जैसी थी। 'पाकीजा' कमाल अमरोही साहब ने बनाई थी जिसमें मीना कुमारी, अशोक कुमार, राज कुमार थे। इसका संगीत गुलाम मोहम्मद ने दिया था और यह बड़ी हिट फ़िल्म थी। ऐसे में 'उमराव जान' का संगीत बनाते समय मैं बहुत डरा हुआ था और वो मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती थी।'

इसके लिए खय्याम साहब ने इतिहास को पढ़ा और आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और 1982 में रिलीज हुई 'उमराव जान' ने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए। खय्याम ने कहा था- 'रेखा ने मेरे संगीत में जान डाल दी थी। उनके अभिनय को देखकर लगता है कि रेखा पिछले जन्म में उमराव जान ही थी।'

बता दें कि खय्याम साहब की पत्नी जगजीत कौर भी अच्छी गायिका हैं। उन्होंने खय्याम के साथ 'बाज़ार', 'शगुन' और 'उमराव जान' जैसी फिल्मों में काम भी किया था। इस महान संगीतकार के धुनें हमेशा अमर रहेंगी।
 

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