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हनुमान जयंती पर जाखू मंदिर में लगा दो क्विंटल रोट का भोग, यहां आज भी हैं बजरंगबली के पद-चिह्न

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 24 Apr, 2024 10:37 AM
हनुमान जयंती पर जाखू मंदिर में लगा दो क्विंटल रोट का भोग, यहां आज भी हैं बजरंगबली के पद-चिह्न

हनुमान जयंती के अवसर पर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के जाखू मंदिर में  कल भक्तों की भारी भीड़ रही। हनुमान जयंती पर सुबह चार बजे मंदिर के कपाट खोल दिए गए थे। इसके बाद प्रभु का भव्य श्रृंगार किया गया। सुबह सात बजे से हनुमान जी की आरती की गई। उसके बाद ही हनुमान जी को रोट, हलवे और भंडारे का भोग लगाया गया। इस दौरान पूरे मंदिर को फूलों की मालाओं से सजाया गया था। 

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मंदिर में किया गया  सुंदरकांड का पाठ

इस बार हनुमान जी को दो क्विंटल के रोट का भोग लगाया गया है।वहीं, सुबह 9:00 बजे हवन और 10:30 बजे सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया गया। हनुमान जयंती पर श्रद्धालु सुबह पांच से रात आठ बजे तक हनुमान मंदिर जाखू में प्रभु के दर्शन कर सकेंगे।  धार्मिक मान्यता के अनुसार हनुमान चालीसा को हनुमानजी की कृपा पाने के लिए श्रेष्ठ स्तुति माना गया है।

मंदिर में जुटी भारी भीड़

जाखू मंदिर के पुजारी बीपी शर्मा ने बताया कि भगवान हनुमान रुद्र के अवतार हैं। सुबह मंदिर के कपाट खुलने के साथ ही श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुट गई। आरती के समय भी मंदिर में काफी भीड़ हो गई थी। वहीं भक्तों का कहना था कि हनुमान जयंती के अवसर पर वह भगवान के दर्शन पाकर बेहद खुश हैं। बता दें कि धार्मिक पर्यटन के अलावा यह स्थान ट्रैकिंग के लिए भी प्रसिद्ध है।  वर्ष 2010 में हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकार ने यहां 108 फीट की हनुमान प्रतिमा स्थापित की थी। यह भारत की दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति है। इस मूर्ति को पूरे शिमला से देखा जा सकता है। 

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ये है इस मंदिर की कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार, रामायण की लड़ाई के दौरान जब लक्ष्मण को एक तीर से बेहोश कर दिया गया था तब वैद्य सुशेन के अनुरोध पर भगवान राम ने उन्हें ठीक करने के लिए अपने भक्त हनुमान से हिमालय से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा। जब हनुमान संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे, रास्ते में उन्होंने एक ऋषि को एक पहाड़ पर ध्यान करते हुए देखा। संजीवनी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, हनुमान उस पर्वत पर उतरे और "यक्ष" ऋषि से मिले।

 

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हनुमान जी ऋषि के सामने हुए थे प्रकट

ऋषि यक्ष द्वारा निर्देशित पाकर हनुमान ने उनसे हिमालय लौटने का वादा किया था लेकिन उन्हें रास्ते में कालनेमि राक्षस ने युद्ध को ललकारा। राक्षस को युद्ध में परास्त कर हनुमान मे संजीवनी प्राप्त की लेकिन इस कारण हुए विलंब के कारण हनुमान "यक्ष" ऋषि से मिलने वापस नहीं जा सके। जब हनुमान जी नहीं लौटे तो ऋषि चिंतित हो गए तो हनुमान स्वयं ऋषि के सामने पर्वत पर प्रकट हुए। ऐसा कहा जाता है कि ऋषियों ने उसी स्थान पर हनुमान की एक मूर्ति स्थापित की थी, आज भी यह मूर्ति मंदिर में स्थापित है।

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