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शिक्षा ही जीवन का मूल आधार : परमपाल कौर मलूका

  • Updated: 03 Mar, 2014 08:07 AM
शिक्षा ही जीवन का मूल आधार  : परमपाल कौर मलूका

जिंदगी एक युद्ध भूमि है जहां कायरता वर्जित है। अपने हृदय को विशाल बनाकर और निर्भयता का पहनावा पहन कर मैदान में उतरना एक पवित्र कार्य है।  ऐसे ही विचारों का प्रतिनिधित्व करतीं ऊंचे कद, तीखे नक्श, मीठी जुबान वाली परमपाल कौर जहां भी जाती हैं फिजा में अपनी महक बिखेरती रहती हैं। उन्होंने अपनी प्रशासनिक सेवाओं तथा शिक्षा के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दी है। विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने जहां छात्रों में मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहन देने का कार्य किया, वहीं सामाजिक सरोकारों से भी गहराई से जुड़ी रहीं।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

 22 अक्तूबर 1964 को परमपाल कौर का जन्म स. गुरबचन सिंह तथा माता सिमरजीत कौर के घर में हुआ। उनके परिवार का मुख्य व्यवसाय कृषि था। उनके दादा अविभाजित पंजाब में हॉर्टीकल्चर में डिप्टी डायरैक्टर के तौर पर कार्य कर चुके थे। पारिवारिक पृष्ठभूमि पढ़ी-लिखी होने के कारण  उन्हें शिक्षा का वरदान विरासत में मिला।

उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जोसेफ स्कूल भटिंडा से प्राप्त की।  उन्होंने हंसराज महिला महाविद्यालय जालन्धर से बी.एससी. मैडीकल तथा पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से एम.एससी., एम.फिल (जीव विज्ञान) की डिग्री ग्रहण की।

करियर

सन् 1995 में उन्होंने पी.पी.एस.सी. द्वारा आयोजित बी.डी.ओ. की परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया। सन् 2006 में बतौर बी.डी.ओ. सुधार लुधियाना तथा अन्य कई स्थानों पर अपनी सेवाएं देने के बाद आजकल वह मानसा में डी.डी.पी.ओ. के तौर पर नियुक्त हैं।

रुचियां

स्कूल और कालेज के दौरान वह सांस्कृतिक तथा स्पोट्रस संबंधी गतिविधियों में समय-समय पर हिस्सा लेती रहीं। उनके अनुसार अक्षरों का ज्ञान जहां जीवन को सुयोग्य बनाता है, वहीं कालेज के समय से ही पढऩे के उनके शौक ने उनके अंतर्मन को लिखने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने आतंकवाद की शिकार औरतों के दर्द को  अपनी रचनाओं द्वारा अभिव्यक्ति दी जो उस समय प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘फैमिना’ में समय-समय पर प्रकाशित होती रहीं। आज भी जब उन्हें फुर्सत मिलती है तो कुछ न कुछ पढ़-लिख लेती हैं।

राजनीतिक परिवार में प्रवेश

बी.डी.ओ. के तौर पर नौकरी करते हुए रोजाना ही वह पंचों-सरपंचों से मिला करती थीं इसलिए राजनीतिक परिवार के माहौल में रच-बस जाना सहज ही हो गया। उन्हें जहां एक ओर ससुराल में मायके जैसा स्नेह मिला, वहीं उनकी जिंदगी को प्रफुल्लित करने के लिए भी सभी सदस्यों का सहयोग मिला। उनके पति स. गुरप्रीत सिंह मलूका जहां जिला परिषद के चेयरमैन हैं, वहीं वह पारिवारिक दायित्वों को भी पूरी गंभीरता से निभाते हैं। उनकी पुत्री अनमोल अरमान उनके लिए प्रकृति की बहुमूल्य देन है।

शिक्षा जीवन का मूल आधार

परमपाल कौर के अनुसार शिक्षा चिंता का ही नहीं बल्कि चिंतन का विषय है। आज का मनुष्य विचारशील है, जहां विचार जागता है वहां चेतना का द्वार खुलता है, ज्ञान के नए सूर्य उदय होते हैं। शिक्षा का उद्देश्य सूचनाएं देना ही नहीं बल्कि ज्ञान के साथ आपको जोडऩा है। ज्ञान और बुद्धि का विकास अत्यधिक जरूरी है।

ए.एस.पी.डी. के तौर पर उपलब्धियां

परमपाल कौर ने जब से शिक्षा विभाग में बतौर ए.एस.पी.डी. जिम्मेदारी संभाली है तब से ही इस क्षेत्र में कुछ बेहतर करने के उद्देश्य के साथ शिक्षा को सिर्फ क्लासरूमों तक सीमित न रखते हुए इसे वातावरण तथा सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ जोडऩे की प्रथा शुरू की है। इसी संदर्भ में पंजाब के छात्रों ने राष्ट्रीय स्तर के ‘वाटर कंजर्वेशन’, ‘इंस्पायर अवार्ड्स (साइंस)’, ‘एनर्जी कंजर्वेशन’ तथा ‘अंजलि (सी.डब्ल्यू.एस.एन.)’ इत्यादि प्रतिस्पर्धाओं में न सिर्फ हिस्सा ही लिया बल्कि पहली पोजीशन प्राप्त करके राज्य का नाम राष्ट्रीय स्तर पर ऊंचा किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने समय की नब्ज को पहचानते हुए गणित के विषय को रोचक बनाने हेतु ‘टेबल कंपीटीशन’ तथा ‘फार्मूला कंपीटीशन’ जैसी विलक्षण गतिविधियों को शिक्षा का हिस्सा बनाया है।

जिंदगी के प्रति नजरिया

परमपाल कौर का मानना है कि कोई व्यक्ति मां की कोख से ही अपराधी नहीं पैदा होता। कभी-कभी प्रतिकूल परिस्थितियों का शिकार होकर भी व्यक्ति अपराधी बन जाता है इसलिए अपराधी के कर्मों की बजाय उसकी जिंदगी की परिस्थितियों की जांच होना जरूरी है।

संदेश

उनके अनुसार हमारा जन्म प्रकृति की देन है परन्तु जीवन का निर्माण हमें स्वयं करना पड़ता है। इसके लिए मनुष्य को शिक्षा की आवश्यकता होती है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य जीवन जीने की कला सिखाना है। युवाओं के लिए जहां एक ओर साहस, मेहनत और लगन जरूरी हैं, वहीं मानवीय मूल्यों के बिना कोई भी व्यक्ति अपूर्ण है। आज के युवाओं को खुद को पहचानने, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने और अपने दायित्वों के प्रति प्रतिबद्ध होने की अत्यधिक आवश्यकता है।        
                                                                                                                                               -प्रस्तुति : सुमन बत्रा, पटियाला

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