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टैबलेट्स और कैप्सूल्स रंग-बिरंगे क्यों होते हैं, क्या दवाइयों के रंग से बीमारी का है कोई संबंध?

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 05 Nov, 2024 04:45 PM
टैबलेट्स और कैप्सूल्स रंग-बिरंगे क्यों होते हैं, क्या दवाइयों के रंग से बीमारी का है कोई संबंध?

नारी डेस्क: क्या आपने कभी सोचा है कि दवाइयां रंग-बिरंगी क्यों होती हैं? मेडिकल साइंस में दवाओं के रंग और आकार का एक विशेष महत्व है, और इन रंगों का उपयोग सिर्फ सौंदर्य या आकर्षण के लिए नहीं किया जाता। बल्कि, दवाइयों के रंग का सीधा संबंध उनके प्रभाव, डोज़, और उन में मौजूद रसायनों से होता है। आइए जानते हैं दवाइयों के रंग-बिरंगे होने के पीछे के कारण और इसके कई फायदे।

दवाइयों के रंग का केमिकल से संबंध

दवाइयां मुख्य रूप से रासायनिक तत्वों या ड्रग्स से तैयार की जाती हैं। जैसे-जैसे दवाइयों में उपयोग होने वाले केमिकल्स का रंग अलग-अलग होता है, वैसे ही दवाओं का रंग भी तय होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी दवाई में कार्बन का प्रयोग किया गया है, तो वह दवा काली रंग की हो सकती है। इसी तरह से, जिन दवाइयों में अन्य रासायनिक तत्व होते हैं, उनके रंग भी उस तत्व से मेल खाते हैं।

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 रंगों का प्रभाव पर असर

दवाइयों के रंगों का असर केवल उनकी पहचान तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह मरीजों की मानसिकता और उनके शरीर पर भी प्रभाव डाल सकता है। अमेरिका में किए गए एक शोध में यह पाया गया कि दवाइयों के रंगों का मरीजों की प्रतिक्रिया पर गहरा असर होता है। उदाहरण के लिए, हल्के नीले रंग की दवाइयां बेहतर नींद के लिए दी जाती हैं, वहीं अगर किसी मरीज को जल्दी आराम चाहिए, तो उसे लाल रंग की दवाइयां दी जाती हैं।

दवाइयों के रंग का चुनाव अक्सर उनके स्वाद और गंध के आधार पर भी किया जाता है। प्राचीन समय में लोग भोजन को रंगों के आधार पर खा या न खा पाने का निर्णय लेते थे। उदाहरण के लिए, मक्खन को पीले रंग में रंगा जाता था ताकि लोग इसे खाने के लिए आकर्षित हों।

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दवाइयों के रंगों का तापमान से संबंध

कुछ रिसर्च यह भी बताती हैं कि दवाइयों के रंगों का संबंध तापमान से भी होता है। नीला रंग ठंडे तापमान का प्रतीक माना जाता है, जबकि ऑरेंज रंग गर्मी का संकेत देता है। यह रंग दवाइयों को मरीजों के मानसिक स्तर पर एक संकेत प्रदान करते हैं, जिससे वे दवाइयों को समझने में सहज महसूस करते हैं।

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 रंग-बिरंगी दवाइयां और बुजुर्गों के लिए आसानी

रंगीन दवाइयां खासकर बुजुर्गों और अनपढ़ लोगों के लिए बहुत फायदेमंद होती हैं। यह उन्हें दवाइयों के बीच अंतर पहचानने में मदद करती हैं। अगर किसी व्यक्ति की नजर कमजोर है या वह पढ़-लिख नहीं सकता, तो वह आसानी से दवाइयों को रंग के आधार पर पहचान सकता है। इस तरह से दवाइयों का रंग उनकी स्व-निर्धारण क्षमता को बढ़ाता है और सही समय पर सही दवा लेने में मदद करता है।

दवाइयों के रंग का व्यावसायिक कारण

फार्मा कंपनियां दवाइयों के रंगों का चुनाव अपनी ब्रांड इमेज को मजबूत करने के लिए भी करती हैं। अलग-अलग रंग के कैप्सूल और टैबलेट्स ग्राहकों को आकर्षित करते हैं और चिकित्सा स्टोर में खड़ी दवाइयों को अधिक आसानी से पहचानने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, कई बार लोग किसी खास रंग के दवाइयों को पहचान कर उसी दवा को खरीदते हैं, जो पहले उन्होंने उपयोग की थी।

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 कैप्सूल का दो रंगों में होना

अगर आपने ध्यान दिया है, तो अधिकांश कैप्सूल के कवर दो अलग-अलग रंगों में होते हैं। इसका कारण केवल डिजाइन नहीं होता, बल्कि यह एक व्यावसायिक और कार्यात्मक कारण से जुड़ा होता है। कैप्सूल में एक हिस्सा "कैप" और दूसरा हिस्सा "कंटेनर" होता है। दवाइयों को भरने के बाद, कैप को कंटेनर से बंद किया जाता है। इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए, इन हिस्सों के रंग अलग-अलग होते हैं, ताकि कर्मचारियों से कोई गलती न हो। हालांकि, इससे फार्मा कंपनियों की लागत बढ़ जाती है, लेकिन यह गलती से बचने का एक महत्वपूर्ण तरीका होता है।

दवाइयों का रंग और मरीज की मानसिकता

एक दिलचस्प शोध यह भी बताता है कि दवाइयों के रंगों का मरीजों की मानसिकता और अनुभव पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को गुस्सा आ रहा है या तनाव महसूस हो रहा है, तो उसे नीली या हरे रंग की दवाइयां दी जाती हैं क्योंकि ये रंग शांति और सुकून का प्रतीक माने जाते हैं। जबकि अगर किसी मरीज को तेजी से सुधार चाहिए, तो उसे लाल रंग की दवाइयां दी जा सकती हैं क्योंकि यह रंग ऊर्जा और सक्रियता का प्रतीक होता है।

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दवाइयों में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक तत्वों के कारण रंग का निर्धारण

दवाइयों के रंग में बदलाव मुख्य रूप से उन रासायनिक तत्वों और ड्रग्स के आधार पर होता है, जो दवाइयों के निर्माण में उपयोग किए जाते हैं। इन रासायनिक तत्वों का रंग तय करता है कि दवा किस रंग में होगी। उदाहरण के लिए, यदि दवाइयों में आयरन या अन्य धातुओं का उपयोग होता है, तो उनका रंग काला या गहरा हो सकता है। इससे चिकित्सक और मरीज को दवा की पहचान में मदद मिलती है।

दवाइयों का रंग सिर्फ सौंदर्य या आकर्षण का मामला नहीं है, बल्कि यह उनके कार्य, प्रभाव, और रासायनिक तत्वों से गहरे तौर पर जुड़ा हुआ है। यह रंग दवाइयों को पहचानने में आसान बनाते हैं, मरीजों की मानसिक स्थिति पर प्रभाव डालते हैं, और दवाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाते हैं। इसलिए, अगली बार जब आप किसी दवाई का रंग देखें, तो याद रखें कि इसके पीछे एक विज्ञान और कारण छिपा हुआ होता है।
 

 

 

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