मां दुर्गा हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवी, शक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। नवरात्रि के दौरान नव दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान, उपासना व आराधना की जाती है तथा नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां दुर्गा के एक-एक शक्ति रूप का पूजन किया जाता है। मां के बारे में तो हमने बहुत सुना है लेकिन क्या आपने कभी इस पर ध्यान दिया है कि दुर्गा माता की मूर्ति का निर्माण किस मिट्टी से किया जाता है
मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए कहीं पांच तो कहीं दस तरह कि मिट्टी ली जाती है, लेकिन बहुत कम लोग ये बात जानते होंगे कि कोलकाता में दुर्गा की मूर्ति के लिए मिट्टी सोनागाछी से खरीदी जाती है। यह कोलकाता का रेड लाइट एरिया है, जहां वेश्याएं रहती हैं। वेश्याओं के आंगन की मिट्टी को 'निषिद्धो पाली की मिट्टी’ कहा जाता है। मान्यतानुसार जब तक इस जगह की मिट्टी नहीं मिलती है तब तक दुर्गा मूर्ति का निर्माण अधूरा माना जाता है। यदि किसी वजह से इस मिट्टी के बिना ही दुर्गा प्रतिमा बना दी जाती है तो उस मूर्ति का पूजन माता दुर्गा स्वीकार नहीं करती हैं।
हालांकि प्रतिमा बनाने में वेश्यालय की मिट्टी के अलावे गंगा तट की मिट्टी, गौमूत्र, और गोबर का भी इस्तेमाल किया जाता है। पौराणिक कथाओं की मानें तो एक वेश्या मां दुर्गा की बड़ी भक्त थी, लेकिन वो समाज में अपने तिरस्कार से बहुत दुखी थीं। तब मां दुर्गा ने उसकी सच्ची श्रद्धा को देखते हुए ये वरदान दिया था कि जब तक उसकी प्रतिमा में वेश्यालय की मिट्टी को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक देवी का उस मूर्ति में वास नहीं होगा।
दूसरी मान्यता यह भी है कि वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिस्कृत माना जाता है और उन्हें एक सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए इस प्रथा का चलन शुरू किया गया। उनके आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है और उसका उपयोग मूर्ति के लिए किया जाता है। माना तो यह भी जाता है कि प्रतिमा बनाने वाला व्यक्ति भी माता के प्रति इतना समर्पित होता है कि वैश्यालय के अंगने की मिट्टी लाने के समय उसके मन में बुरे विचार नहीं आते और एक तरह से ऐसा करते हुए वह व्यक्ति अपना कमिटमेंट पूरा कर रहा होता है। इस परीक्षा से गुज़रने के बाद ही उसे प्रतिमा निर्माण करने के काबिल समझा जाता है।
इन सभी मान्यताओं की वजह से इस अनोखी प्रथा का चलन शुरू हुआ और दुर्गा प्रतिमा के निर्माण के लिए वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल जरूरी हो गया। पहले के समय में केवल मंदिर का पुजारी ही वेश्यालय के बाहर जाकर वेश्याओं से उनके आंगन की मिट्टी मांगते थे, परंतु अब पुजारी के अलावा मूर्तिकार भी वेश्यालय से मिट्टी मांगने जाते है।