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Bhandasar Jain Temple: 40 हजार किलो देसी घी से रखी गई थी इस ऐतिहासिक मंदिर की नींव

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 27 Jan, 2023 05:28 PM
Bhandasar Jain Temple: 40 हजार किलो देसी घी से रखी गई थी इस ऐतिहासिक मंदिर की नींव

भारत के पश्चिम में स्थित राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां रेत के टीलों और राजपूतों की आन बान-शान की गवाही धरती देती है। एक से बढ़कर एक किले, हवेलियां देखकर किसी को भी इतिहास में दिलचस्पी बढ़ जाएगी। थार के रेगिस्तान से घिरा बीकेनेर शहर जिसे हजार हवेलियों का शहर कहा जाता है। यूं तो बीकानेर रसगुल्लों की मिठास और भुजिया के तीखापन के कारण पूरी दुनिया में मशहूर है, लेकिन अगर आपने बीकानेर का भांडाशाह जैन मंदिर नहीं देखा तो मान लीजिए कि कुछ नहीं देखा। ये एक ऐसा मंदिर है, जिसकी नींव पानी से नहीं, बल्कि 40 हजार लीटर देसी घी से भरी गई थी। आइए जानते हैं इस अनोखे मंदिर के इतिहास के बारे में..

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 जमीन से करीब 108 फीट ऊंचा है ये जैन मंदिर 

बीकानेर के लक्ष्मीनाथ मंदिर के पास मौजूद पांच शताब्दी से ज्यादा प्राचीन भांडाशाह जैन मंदिर दुनिया में अपनी अलग ही ख्याति रखता है।  इसका निर्माण भांडाशाह नाम के व्यापारी ने 1468 में शुरू करवाया और 1541 में उनकी पुत्री ने इसे पूरा कराया था। मंदिर का निर्माण भांडाशाह जैन द्वारा करवाने के कारण इसका नाम भांडाशाह पड़ा गया।  जमीन से करीब 108 फीट ऊंचे इस जैन मंदिर में पांचवें तीर्थकर भगवान सुमतिनाथ जी मूल वेदी के रूप में विराजमान हैं। यह पूरा मंदिर तीन मंजिलों में बंटा है। इस मंदिर को लाल बलुआ पत्थरों और संगमरमर से बनाया गया है। मंदिर के भीतर की सजावट बहुत सुंदर है।

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ऐसे हुआ मंदिर का निर्माण 

मंदिर का निर्माण भांडाशाह ओसवाल ने करवाया, जो घी के व्यापारी थे। जब मंदिर के निर्माण को लेकर उनकी बैठक मिस्त्री के साथ चल रही थी, तब दुकान में रखे घी के पात्र में एक मक्खी गिर कर मर गयी, तो सेठ ने मक्खी को उठाकर अपने जूते पर रगड़ लिया और मक्खी को दूर फेंक दिया। पास बैठा मिस्त्री ये सब देखकर आश्चर्यचकित हो गया, कि सेठ कितना कंजूस है। मक्खी में लगे घी से भी अपने जूते चमका लिए। फिर मिस्त्री ने सेठ की दानवीरता की परीक्षा लेने की ठानी। मिस्त्री बोला सेठ जी मंदिर को शताब्दियों तक मजबूती देने के लिए इसमें उपयोग होने वाले मिश्रण में पानी की जगह घी का उपयोग करना उचित रहेगा। सेठ भोले-भाले थे और तभी उन्होंने घी का प्रबंध कर दिया।

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मंदिर का निर्माण जब शुरू हो रहा था, उस समय मिस्त्री घी को देखकर आश्चर्य चकित हो उठा और तभी सेठ से क्षमा मांगी और कहा कि मैंने एक दिन आपको घी में पड़ी मक्खी से अपने जूते चमकाते देखा, तो सोचा की आप बहुत कंजूस हो, लेकिन सेठ जी आप तो बहुत बड़े दानवीर हो, मुझे माफ कर दीजिए, ये घी वापस ले जाइए, मैं मंदिर निर्माण में पानी का ही प्रयोग करूंगा।  तब सेठ ने कहा कि 'वो तुम्हारी ना समझी थी कि तुमने मेरी परीक्षा ली। अब ये घी भगवान के नाम मैंने दान कर दिया है, सो अब इसका उपयोग तुमको मंदिर निर्माण में करना ही होगा।' तब मिस्त्री ने मंदिर निर्माण में 40 हजार लीटर घी का प्रयोग किया।आज भी तेज गर्मी के दिनों में इस जैन मंदिर की दीवार और फर्श से घी रिसता है।

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