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कभी फैक्ट्री की भट्ठी में चूना पत्थर डालने वाले Ratan Tata कैसा बने उद्योग जगत के रत्न ?

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 28 Dec, 2023 03:40 PM
कभी फैक्ट्री की भट्ठी में चूना पत्थर डालने वाले Ratan Tata कैसा बने उद्योग जगत के रत्न  ?


देश के उद्योग जगत के रत्न और टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा आज अपना 86 वां जन्मदिन मना रहे हैं। रतन टाटा ने टाटा कंपनी को न सिर्फ नई बुलंदियों पर पहुंचाया बल्कि पूरी दुनिया में टाटा कंपनी को एक अलग पहचान दिला दी है। इतनी कामयाबी और शोहरत हासिल करने के बाद भी रतन टाटा का स्वाभव बहुत ही सरल और सादगी भरा है। वो लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का श्रोत हैं। आइए आपको बताते हैं रतन टाटा ने कैसे तय किया है यहां तक का सफलता का सफर...

10 साल की उम्र तक दादी के हाथों पले थे रतन टाटा

28 दिसंबर 1937 को रतन टाटा का जन्म मुंबई के नवल टाटा और सूनी टाटा के घर हुआ था। 10 साल की उम्र  तक  उनका पालन पोषण उनकी दादी लेडी नवाजबाई ने किया था। इसके बाद रतन आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका के कॉरनेल यूनिवर्सिटी गए। फिर उन्होंने साल 1962 में  कुछ समय के लिए जोन्स और इमोन्स नामक कंपनी में नौकरी की। 1962 में भारत लौटने के बाद उन्होंने टाटा ग्रुप ज्वाइन किया। ग्रुप में उन्हें पहला काम जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील डिविजन में मिला। साल 1975 में उन्होंने हार्वार्ड बिजनेस स्कूल से प्रबंधन का कोर्स किया। वहीं साल 1991 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने। ये तो वो बातें हैं कि जो रतन टाटा के बारे में सब जानते हैं। रतन टाटा के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं जो कम ही लोगों को पता है....

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टाटा स्टील में कर चुके हैं चूना पत्थर डालने का भी कर चुके हैं काम

अमेरिका तकनीकी दिग्गज आईबीएम के साथ नौकरी को दरकिनारे कर  रतन ने भारत लौटाने का निश्चय लिया और टाटा कंपनी में बतौर सामान्य कर्मचारी काम करने लगे। उन्होंने टाटा स्टील के प्लांट में चूना पत्थर को भट्ठियों में डालने जैसे काम से शुरुआत की। 

फोर्ड कंपनी के चेयरमैन के अपमान का 9 साल बाद लिया था बदला

 90 के दस्तक में रतन टाटा जब कंपनी का विस्तार कर रहे थे तो उनके नेतृत्व में टाटा मोटर्स ने टाटा इंडिका कार लॉन्च की। कार तो बन गई, लेकिन उस वक्त देश में कारों की सेल कुछ खास नहीं थी। जैसे रतन टाटा ने सोचा था कि इंडिका कार को लेकर लोगों का रिस्पांस वैसा नहीं था। कंपनी पर घाटे का दवाब बढ़ने लगा तो रतन टाटा ने पैसेंजर कार डिवीजन को बेचने का फैसला किया।

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अपमान का घूंट पीकर रह गए थे रतन टाटा

रतन ने अपने पैंजेकर कार डिवीजन को बेचने के लिए अमेरिका कार मैन्चुफैक्चरिंग कंपनी फोर्ड मोटर्स (Ford Motors) से बात शुरू की। इस डील के लिए रतन टाटा अमेरिका में फोर्ड के मुख्यालय पहुंचें। उस वक्त फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड थे। उन्होंने मीटिंग में रतन टाटा का खूब मजाक बनाया। उन्होंने रतन को कहा की जब वो कार के बारे में कुछ जानते नहीं है तो कार बनाई ही क्यों? साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि अगर वो रतन टाटा ने उस कोरबार को खरीदते हैं तो उनपर बढ़ा एहसान ही करेंगे। रतन टाटा अपमान के इस घूंट को चुपचाप पीकर रह गए।

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ऐसे दिया करारा जवाब

उन्होंने अपनी पैसेंजर कार को बेचने का फैसला टाल दिया और अपने ऑटोमोबाइल सेक्टर को बड़ा करने का लक्ष्य तय कर लिया। बिना थके, बिना रुके रतन टाटा काम करते रहे और 10 सालों में उन्होंने टाटा मोटर्स को ऑटोसेक्टर में बादशाह बना दिया। टाटा मोटर्स बुलंदियों की नई ऊंचाईयों को छू रहा था, वहीं फोर्ड की हालत खराब हो रही थी। 10 साल बाद फोर्ड मोटर्स दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया। कंपनी बिक रही थी। रतन टाटा ने फोर्ड के Jaguar और Land Rover ब्रांड को खरीज लिया। इस डील के दौरान जब दोबारा से रतन टाटा और बिल फोर्ड मिले तो सीन बदल चुका था। जिस शख्स ने रतन टाटा का अपमान किया था, वो आज उन्हें थैंक्यू बोल रहा था। उनसे रतन टाटा से कहा कि आपने जैगुआर और लैंड रोवर खरीदकर हमपर एहसान किया है।  
 

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