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दिलीप कुमार जी का विदा होना एक पारिवारिक क्षति- शहनाज हुसैन

  • Edited By Bhawna sharma,
  • Updated: 11 Jul, 2021 02:17 PM
दिलीप कुमार जी का विदा होना एक पारिवारिक क्षति- शहनाज हुसैन

बाॅलीवुड के ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार के निधन से पूरा देश शोक में डूबा हुआ है। फैंस से लेकर बड़ी-बड़ी हस्तियां उन्हें याद कर रही हैं। हाल ही में शहनाज हुसैन ग्रुप ऑफ कंपनी की चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर शहनाज हुसैन ने दिलीप कुमार को याद किया है। उन्होंने कहा कि दिलीप साहिब का इस दुनिया से विदा होना एक पारिवारिक क्षति है। वह एक महान और सरल व्यक्ति थे तथा उनके पिता स्वर्गीय जस्टिस नासिर उल्लाह बेग से भावनात्मक तौर पर जुड़े थे। 

शहनाज हुसैन कहती हैं, 'दिलीप साहिब के साथ हमारा तीन पीढ़ियों से पारिवारिक रिश्ता है और उनके चले जाने से भारतीय सिनेमा में एक युग का अंत हो गया और वह कई ऐसी यादें छोड़ कर गए जो बरसों तक याद आएंगी। मैं बहुत दुखी हूं, निशब्द हूं और यह प्रार्थना करती हूं की उनकी आत्मा को शांति मिले। दिलीप कुमार जी के निधन से मुझे बरसों पुराने वो पल याद आ गए जब उन्होंने  तीन दशक पहले वर्ष 1991 में ग्रेटर कैलाश 2 में हमारे शहनाज़ हुसैन सिग्नेचर सैलून का उद्घाटन किया था। मैंने जब उनसे इस सैलून के उद्घाटन का अनुरोध किया तो मुझे कुछ संशय था की शायद वह इसे स्वीकार न करें लेकिन उन्होंने मेरे अनुरोध को स्वीकार करते हुए कहा की आप जल्दी से डेट तय कीजिये।' 

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वह आगे कहती हैं, 'उन्होंने सौन्दर्य में हर्बल के क्षेत्र में किये गए हमारे काम को गहरी रूचि से समझा और पूरी टीम के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने हमारी पूरी टीम के साथ सहज माहौल में चर्चा की और सब के साथ ग्रुप फोटो खिंचवाई। वह हमारे घर में एक मेहमान की बजाय पारिवारिक सदस्य के तौर पर रहना पसंद करते थे और हम सब से घुल मिल जाते थे मानो वह बरसों से हमारे साथ रहते हों। वह हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार थे। सिल्वर स्क्रीन पर उनकी अदाकारी लोगों को रुला देती थी। जिससे वह ट्रेजेडी किंग के रूप में लोकप्रिय हुए लेकिन सामान्य जीवन में वह काफी हंसमुख और सीधे साधे थे।' 

 

शहनाज हुसैन ने बताया, 'दिल्ली में वह जब भी आते तो अक्सर हमारे घर आना होता था और अगर बह ज्यादा व्यस्त होते थे तो हम लोग उनसे मिलने के लिए चले जाते थे लेकिन वह दिल्ली पहुंचने से पहले ही फोन पर अपने आने की सुचना जरूर दे देते थे जिससे उनके बढ़पन और अपनेपन का अहसास होता था। दिलीप साहिब को घर का खाना बहुत पसन्द था और अगर वह होटल में भी  ठहरते थे तो मैं उनके लिए घर का खाना लेकर पहुंच जाती थी। जिसे वह बहुत चाव से खाया करते थे। खाने में उनको बरियानी और सादी शाकाहारी सब्ज़ियां दोनों पसन्द थी लेकिन रात में वह डिनर के बाद आइसक्रीम के बेहद शौक़ीन थे।' 

 

उन्होंने आगे कहा, 'वह मुझे हमेशा हर्बल प्रसाधनों की प्रमोशन के लिए प्रेरित करते थे और खुद भी हमेशा हर्बल प्रसाधन ही उपयोग करते थे। मेरा यह मानना है की हालांकि उन्होंने ब्लैक एंड वाइट फिल्में की तथा उस समय जन संचार माध्यम भी कोई ज्यादा प्रभावी नहीं थे लेकिन फिर भी उन्होंने लोकप्रियता के उस शिखर को छुआ जोकि आजकल सभी जन संचार के संसाधनों के उपयोग से भी सम्भव नहीं हो पा रहा है। वह अपने प्रशंसकों की बहुत कद्र करते थे और मुझे याद है की देवदास फ़िल्म हिट होने के बाद जब वह हमारे घर दिल्ली आये तो हमारे घर के बाहर उनके प्रशंसक जमा होने शुरू हो गए। वह अपने प्रसंशकों से मिलने के लिए घर से बाहर निकले और लगभग एक घण्टा तक प्रसंशकों से बातचीत करते रहे और उनको ऑटोग्राफ देकर मुंबई आने का निमंत्रण दिया।'

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शहनाज हुसैन यही नहीं रूकी, वह आगे कहती है, 'मुग़ले आज़म, गंगा जमुना, कर्मा, नया दौर जैसी हिट फिल्मों के बादशाह दिलीप कुमार में घमण्ड नाम की चीज कभी भी घर नहीं कर सकी। हालांकि उस जमाने के समाचार पत्रों, मैगज़ीन आदि उनकी तारीफ से भरी पड़ी रहती थीं लेकिन उनका मानना था की कलाकार का सही आकलन केवल मात्र दर्शक ही कर सकता है। सन् 1944 में पहली फिल्म ज्वार भाटा रिलीज होने पहले वह काफी नर्वस नजर आ रहे थे। उन्होंने मुझसे से फिल्म के सीन, डायरेक्शन, प्रोडक्शन आदि कई पहलुओं पर चर्चा की और फिल्म रिलीज होने के बाद वह दर्शकों के रिस्पांस से ज्यादा सन्तुष्ट नहीं थे लेकिन उन्होंने मुझे बताया की एक कलाकार को दर्शकों की आशाओं के अनुरूप उतरने की हमेशा कोशिश करनी चाहिए और कलाकार जब दर्शकों से भावनात्मक रिश्ता स्थापित कर लेता है वही कलाकार ऊंचाइयों को छू सकता है। फिल्म जुगनू की कामयाबी के बाद वह बेहद आसत व्यस्त और आसान दिख रहे थे।'


   
उन्होंने आगे कहा, 'दिलीप साहिब मेरी हमेशा इज्जत करते थे हालांकि मैं उम्र में उनसे बहुत छोटी थी लेकिन जब भी दिल्ली आते तो मेरे लिए एक सुन्दर सा उपहार जरूर लाते थे। मैंने आज तक उनके दिए उपहार सुरक्षित रखे हैं। आज जब में उन उपहारों को देखती हूं तो मुझे उनमे दिलीप साहिब की आत्मा का अहसास होता है। मुझे लगता है की उनकी आत्मा इन सुन्दर उपहारों की तरह थी जिसने इस दुनिया को हर पल जीवंत रहने का अहसास करवाया। एक सरल हृदय बाले बेहद विनम्र पारिवारिक सदस्य के चले जाने से मुझे ऐसे लग रहा है मानो मैंने अपना मार्गदर्शक, गुरु और संगरक्षक खो दिया है।'

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